प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 मई नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इसी तारीख को 140 साल पहले साल 1883 में विनायक दामोदर सावरकर का जन्म हुआ था। इस तरह देखा जाए तो सावरकर की 140वीं जयंती के दिन ही नए संसद भवन का उद्घाटन हुआ।  

सावरकर कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) के सदस्य नहीं रहे लेकिन इन संगठनों से सावरकर को बहुत सम्मान मिला। हालांकि गांधी हत्या में सावरकर का नाम आने के बाद संघ परिवार ने उनपर लंबे समय के लिए सार्वजनिक चुप्पी साध ली थी।

सावरकर को अपनाने में संघ परिवार को काफी समय लगा। जनसंघ ने 1951 से 1977 तक कभी भी उनके बारे में या हिंदुत्व के बारे में बात नहीं की। 1980 में बनी भाजपा ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के माध्यम से 1990 में हिंदुत्व और 2000 में सावरकर को अपनाया।

साल 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देने का प्रस्ताव भेजा था। राष्ट्रपति ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।

संसद में पोर्ट्रेट का अनावरण

26 फरवरी, 2003 को, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के आह्वान पर राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने संसद के सेंट्रल हॉल में सावरकर के चित्र का अनावरण किया था। विपक्ष के इस कदम का पुरजोर विरोध किया था।

विपक्ष का हमेशा से यह तर्क रहा है कि सावरकर विवादित “हिंदुत्व” की अवधारणा के प्रवर्तक हैं और उन्होंने सेल्यूलर जेल (अंडमान) की कठोर कैद से बाहर निकलने के लिए बार-बार ब्रिटिश सरकार को वचन और क्षमायाचना दी थी।

संसद के सेंट्रल हॉल में सावरकर के चित्र का अनावरण के 10 महीने पहले भी विपक्ष ने विरोध किया था, जब 4 मई, 2002 को केंद्रीय गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे का नाम वीर सावरकर हवाई अड्डा कर दिया था।

संसद में टंगा पोर्ट्रेट और नरेंद्र मोदी

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के लिए 26 मई, 2014 को शपथ ली थी। इसके ठीक दो दिन बाद सावरकर की 131वीं जयंती थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन में सावरकर के चित्र के सामने सिर झुका कर श्रद्धांजलि दी थी।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में बहुचर्चित किताब ‘द आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट’ लिखने वाले नीलांजन मुखोपाध्याय ने इस घटना को बड़ा प्रतिकात्मक कदम बताया था। उन्होंने कहा था, “हम नहीं भूल सकते कि गांधी हत्याकांड में उनके खिलाफ केस चला था। वो छूट ज़रूर गए थे, लेकिन उनके जीवन काल में ही उसकी जांच के लिए कपूर आयोग बैठा था और उसकी रिपोर्ट में शक की सुई सावरकर से हटी नहीं थी। उस नेता को सार्वजनिक रूप से इतना सम्मान देना मोदी की तरफ से एक बहुत बड़ा प्रतीकात्मक कदम था।”

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी का मानना है कि सावरकर जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन करना इत्तेफाक नहीं है और ये समझ-बूझ कर किया गया फैसला है।