पाकिस्तान में चुनाव के तीन दिन बाद भी अगली सरकार किसकी बनेगी इसे लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। पहले ऐसा लग रहा था कि चुनाव नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) के पक्ष में जा रहा हैं, क्योंकि उन्हें सेना का समर्थन प्राप्त है। लेकिन चुनाव के नतीजों ने आश्चर्यचकित कर दिया और अंतिम आंकड़ा काफी देर के बाद जारी किया गया।

धांधली के आरोपों के बीच – निर्दलीय उम्मीदवारों ने अधिकतम 101 सीटें हासिल की है। इनमें से अधिकांश निर्दलीय इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा समर्थित हैं, क्योंकि उन्हें चुनाव आयोग ने पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ने से रोक दिया था।

पीएमएल-एन 75 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही है और बिलावल भुट्टो-जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) 54 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है। कोई भी गुट सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है और निर्दलियों की बड़ी संख्या ने विशेष स्थिति पैदा कर दी है।

नेशनल असेंबली संख्याएं कैसे बढ़ती हैं?

संभावना जताई जा रही है कि पीटीआई समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों को सत्ता से दूर रखने के लिए पीएमएल-एन और पीपीपी गठबंधन कर सकती हैं। दोनों पार्टियां पहले भी साथ मिलकर सरकार चला चुकी हैं। लेकिन अगर इस बार वे हाथ मिलाते हैं, तो भी सरकार बनाने के लिए अनिवार्य आधे आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाएंगे।

पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 336 सीटें हैं। 266 सदस्य प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से चुने जाते हैं, जबकि 70 सीटें आरक्षित हैं (60 महिलाओं के लिए और 10 गैर-मुसलमानों के लिए)। आरक्षित सीटों ने इस चुनाव और जटिल बना दिया है, क्योंकि इन 70 सीटों पर सीधा चुनाव नहीं होता बल्कि उन पार्टियों को अलॉट कर दिया जाता है, जो चुनाव में अच्छा प्रदर्शन (सीट जीतने के संदर्भ में) करती हैं। इस बार सबसे अधिक संख्या निर्दलीय उम्मीदवारों की है। लेकिन नियम के मुताबिक, आरक्षित सीटें केवल पार्टियों को अलॉट हो सकती हैं, निर्दलीय को नहीं।

निर्दलीयों के लिए क्या हैं नियम?

पाकिस्तान के चुनाव नियमों के नियम 92(6) के तहत, एक बार जीत की घोषणा हो जाने के बाद, स्वतंत्र उम्मीदवारों के पास राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए तीन दिन का समय होता है। स्वतंत्र उम्मीदवार को राजनीतिक दल के प्रमुख को आवेदन करना होता है, जो चुनाव आयोग को सूचित करते हैं। निर्दलीय भी एक नाम के तहत एकजुट होने का विकल्प चुन सकते हैं।

आरक्षित सीटें कैसे भरी जाती हैं?

महिलाओं और गैर-मुसलमानों के लिए आरक्षण पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 51(2ए) से आता है। राजनीतिक दल इन 70 सीटों को अपने विजयी उम्मीदवारों के अनुपात में भर सकते हैं। महिलाओं में, 60 सीटों को इस प्रकार विभाजित किया गया है: पंजाब के लिए 32, सिंध के लिए 14, खैबर पख्तूनख्वा के लिए 10 और बलूचिस्तान के लिए चार। 10 गैर-मुस्लिम उम्मीदवारों को प्रांतों में विभाजित नहीं किया जाता है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के पाकिस्तानी लेखक और फेलो याकूब खान बंगश बताते हैं, “सभी राजनीतिक दल नामांकन दाखिल करते समय आरक्षित सीटों के लिए अपनी पसंद के उम्मीदवारों की एक सूची जमा करते हैं, और यह सूची चुनाव आयोग की जांच से गुजरती है। नतीजों के बाद, जिस पार्टी के प्रतिनिधियों की संख्या सबसे अधिक होगी, उसकी सूची में से सबसे अधिक संख्या में आरक्षित उम्मीदवार निर्वाचित होंगे।”

यदि पीटीआई समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं, तो उन्हें अपनी संयुक्त ताकत के आधार पर आरक्षित सीटें भरने को मिलेंगी। बंगश ने कहा, “इस नए ब्लॉक को अपने उम्मीदवारों की सूची जमा करने का समय मिलेगा।”

अब पीटीआई समर्थित निर्दलीय क्या कर सकते हैं?

अभी तक इसे लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। पीटीआई फिलहाल विरोध प्रदर्शन कर रही है और आरोप लगा रही है कि उसकी वास्तविक संख्या अधिक है और चुनाव परिणामों में धांधली हुई है। उसने चुनाव में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए अदालत में कई याचिकाएं भी दायर की हैं।

ऐसी संभावना है कि 101 विजेताओं में से कुछ पीटीआई के विरोधी दलों से हाथ मिलाएंगे और सरकार का हिस्सा बनेंगे। हालांकि, कहां के स्वतंत्र उम्मीदवार आसानी से किसी पार्टी के साथ जा सकेंगे और कहां के नहीं, यह अलग-अलग प्रांतों के मिजाज पर निर्भर करता है। पंजाब में ऐसा क्रॉसओवर आसान हो सकता है। लेकिन खैबर पख्तूनख्वा में, जहां पीटीआई समर्थित उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, ऐसे दलबदल को मतदाताओं द्वारा माफ नहीं किया जा सकता है।

क्या पहले कभी ऐसा हुआ है?

1985 के चुनावों में, किसी भी राजनीतिक दल को भाग लेने की अनुमति नहीं थी और इस प्रकार प्रत्येक उम्मीदवार ने पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्थन के बावजूद, अपने व्यक्तिगत नाम पर चुनाव लड़ा था। चुनाव के बाद केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों को ही राजनीतिक दल बनाने की अनुमति थी। इस बार केवल (राजनीतिक दलों में) पीटीआई उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से लड़े, अन्य ने अपनी पार्टियों के नाम और सिंबल पर चुनाव लड़ा है।