यह कहानी है अब्दुस समद की। जो देश के बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन, दिल हिंंदुस्तान में बसा था। वह हिंदुस्तान लौटना चाहते थे। लेकिन, यह हो न सका। पंडित जवाहर लाल नेहरू की कोशिश के बाद भी नहीं। पाकिस्तान ने ऐसा रोड़ा अटकाया और फरेब से भरी ऐसी सौदेबाजी की कि अब्दुस समद को मजबूरन पाकिस्तानी बन कर पाकिस्तान में ही रहना पड़ा। यह किस्सा पूर्व राजनयिक और कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने जगरनॉट बुक्स से प्रकाशित अपनी आत्मकथा Memoirs of A Maverick : The First Fifty Years (1941–1991) में बयां किया है।
1970 के दशक की बात है। मणिशंकर अय्यर की दिली ख्वाहिश थी कि पाकिस्तान में उनकी तैनाती हो जाए। लेकिन, हालात ऐसे नहीं थे कि यह संभव हो। वह बगदाद चले गए। वहां उनकी तैनाती को दो ही साल हुए थे कि कुछ ऐसा हुआ जो उन्होंने सोचा भी नहीं था।
1977 में इंदिरा गांधी की चुनावी हार के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री और अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने। वाजपेयी के विदेश मंत्री बनने के बाद अय्यर को लगा था कि अब तो पाकिस्तान तैनाती की उनकी ख्वाहिश शायद ही कभी पूरी हो। उन्हें लगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से होने के चलते वाजपेयी पाकिस्तान के प्रति बेहद सख्त रुख रखेंगे। लेकिन, उनकी सोच गलत साबित हुई। अय्यर ने किताब में लिखा है- असल में वाजपेयी ने पाकिस्तान को लेकर सबसे ज्यादा सकारात्मक रुख दिखाया था।
अक्तूबर, 1978 की एक शाम बगदाद में जब अय्यर ने रेडियो ऑन किया तो यह सुनकर दंग रह गए कि भारत सरकार ने कराची में वर्षों से बंद पड़ा अपना वाणज्यकि दूतावास खोलने का फैसला किया था और वह भी बिना किसी देर के। अय्यर को लगा कि अभी तो बगदाद में उन्हें दो ही साल हुए हैं और कम से कम एक साल और बिताना होगा। ऐसे में कराची की तैनाती तो कोई और ले जाएगा। लेकिन, 15 दिन बाद ही एक टेलीग्राम ने अय्यर को आश्चर्य भरी खुशी से सराबोर कर दिया। टेलीग्राम में अय्यर के लिए कराची में तैनाती का आदेश लिखा था।
14 दिसंबर, 1978 की दोपहर। करीब एक बजे का वक्त। मणिशंकर अय्यर कराची एयरपोर्ट पर उतर चुके थे। वहां उनका स्वागत करने के लिए जो कुछ लोग आए थे, उनमें से एक, मुबारक शाह भी थे। शाह के पास अय्यर के लिए एक संदेश था। यह संदेश शाह के बॉस अब्दुस समद ने भिजवाया था। समद प्रीमियर टोबैको कंपनी के चेयरमैन थे। वह मूल रूप से मद्रास के रहने वाले थे।
शाह ने अय्यर को बताया कि अब्दुस समद साहब ने उन्हें अपने घर पर मेहमाननवाजी का मौका देने का अनुरोध किया है। अय्यर ने कहा- हवाई अड्डे से सीधे अब्दुस समद के घर जाना ठीक नहीं होगा। वह अपने दफ्तर रवाना हो गए और शाह को बाद में आने का भरोसा दिलाया।
बाद में शाह के साथ अय्यर अब्दुस समद की शाही हवेली पहुंचे। समद दरवाजे पर स्वागत में खड़े थे। काफी लंबे गलियारे से होते हुए वह अय्यर को बैठकखाने में ले गए। पूरे गलियारे में अय्ययर की बाईं तरफ कई औरतें और दाहिनी तरफ उतने ही मर्द कतारबद्ध खड़े थे। पता चला कि ये सब समद के बेटे-बहू और बेटी-दामाद थे। बैठकखाने में बैठते ही अय्यर ने समाद से पूछा- आपने अपने सभी बेटे-बेटियों की शादी भारतीयों से क्यों की है? जवाब मिला- क्योंकि मैं भारतीय हूं। जवाब सुन अय्यर हैरान थे। पर, अब्दुस समद आगे की कहानी बयां करते गए। कहानी कुछ यूं थी:
अब्दुस समद कैसे आए पाकिस्तान
बंटवारे के वक्त अब्दुस समद महज 17-18 साल के थे। सुक्कूर में उनके पिता का एक हिंंदू एजेंट था। समद के पिता की तमिलनाडु में कंपनियां थीं। वहां बनने वाली बीड़ी व तंबाकू की मार्केटिंंग सुक्कूर का वही हिंंदू एजेंट करता था। बंटवारे के दौरान वह इंदौर भाग गया था। ऐसे में पिता ने समद से कहा कि वह सुक्कूर आकर तुरंत कंपनी का कामकाज संभाल ले। उन्होंने पिता की बात पर अमल किया। और वह खुश भी थे क्योंकि अक्सर परिवार से मिलने मद्रास चले जाया करते थे। लेकिन, कुछ साल बाद हालात बदल गए।
हालात ये बदले कि सितंबर 1949 में भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापार लगभग पूरी तरह बंद कर दिया। समद ने परिवार से बात की और तय हुआ कि वह कारोबार समेट कर घर (भारत) लौट आएं।
नेहरू के सामने उठाना पड़ा मुद्दा
समद ने भारतीय उच्चायोग में भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन दिया। लेकिन, उच्चायोग की बात सुन उनके होश उड़ गए। उन्हें बताया गया- आप पाकिस्तानी नागरिक हो गए हैंं और आपके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट है। भारत सरकार अब आपको भारतीय नागरिक बनने का मौका नहीं दे सकती।
समद ने भारत में अपने परिवार को यह बात बताई। उनका परिवार मद्रास प्रांत में कांग्रेस को भारी आर्थिक मदद दिया करता था। इस वजह से कामराज और मद्रास के अन्य कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली में पंडित जवाहर लाल नेहरू के सामने मुद्दा उठाया। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा- अगर समद भारतीय नहीं है तो हम भी नहीं हैं। नेहरू ने समस्या का कोई समाधान निकालने का भरोसा दिला कर कांग्रेस नेताओं का गुस्सा ठंडा किया। कुछ वक्त बाद समाद को उच्चायोग से बताया गया कि वह भारतीय पासपोर्ट ले जा सकते हैं।
पाकिस्तान ने चली घटिया चाल
समद को लगा कि अब उनकी समस्या का वाकई समाधान हो गया है। लेकिन, समस्या और बढ़ गई। पाकिस्तान सरकार को जब समद के बारे में पता चला तो उन पर टैक्स बकाया का मामला बना कर इतना भारी जुर्माना लगा दिया कि उसे भरने पर परिवार के सामने दिवालिया होने की नौबत आ सकती थी।
एक तरफ समद पर पाकिस्तान सरकार ने भारी जुर्माने का बोझ लाद दिया, दूसरी तरफ चुपके से यह भी बता दिया कि अगर भारतीय पासपोर्ट लेने का ऑफर ठुकरा दें तो जुर्माने से बचने का रास्ता निकल सकता है।
अब केवल अय्यर का था सहारा
समद ने अभी भी हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने बताया- मेरे दिमाग में एक ही नाम आया जो मुझे बचा सकता था। वह नाम भी ‘आप ही की तरह एक अय्यर का था। इनकम टैक्स एडवाइजर वह अय्यर समाद का केस लड़ने के लिए अक्सर भारत से कराची आया करते थे। लेकिन, जैसे ही टैक्स अधिकारियों को उनके कराची आने की खबर लगती थी, वे अपने उलझाऊ मामलों की फाइलें उनके सामने रख कर उन पर उनकी राय मांगने लगते थे। ऐसे में मेरा केस पीछे ही रह जाता था। और, एक सुबह जब मैंने अखबार खोला तो उस अय्यर के विमान हादसे में मारे जाने की खबर पढ़ने को मिली। यह सुनते ही मणिशंकर अय्यर बीच में ही बोल पड़े- आप मेरे पिता की बात कर रहे हैं।
समद उठ खड़े हुए और सिर हिलाते हुए कहा- मुझे अनुमान लगा लेना चाहिए था। वह वी. शंकर अय्यर थे और आप मणि शंकर अय्यर हैं।’ समद बोलते गए- मैं समझ गया था कि मुझे पाकिस्तानी बन कर ही रहना होगा, क्योंकि और कोई था ही नहीं जो मुझे बचा सके।
मणिशंकर अय्यर लिखते हैं- समद की आंखें भर आई थीं। उन्होंने आंसू पोंछे और इस तरह मुझे पता चला कि समय से पहले जान गंवा कर मेरे पिता ने पाकिस्तान को एक करोड़पति गंवाने से बचा लिया था।