साल 1969 में 19 जुलाई को 14 बड़े प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। भारत के आर्थिक इतिहास में यह एक बड़ा कदम था। तब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं। उनके इस फैसले से नाराज होकर वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने पद छोड़ दिया था। इंदिरा ने 12 जुलाई को अपनी यह मंशा जाहिर की थी और 19 जुलाई को राष्ट्रपति वी.वी. गिरी की मंजूरी लेकर इसे अंजाम तक पहुंचा दिया था। 20 जुलाई को गिरी को चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देना था। इससे पहले इंदिरा यह काम करा लेना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने अपने तीन भरोसेमंद अफसरों को काम पर लगा रखा था। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर इनमें शामिल थे, लेकिन गवर्नर को अंतिम क्षण तक इसकी भनक भी नहीं थी।
19 जुलाई 1969 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रात 8.30 बजे देश के सामने 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण के इस फैसले की घोषणा की थी। इन 14 बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक, यूको बैंक, कैनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक, सिंडीकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र के नाम शामिल थे।
12 जुलाई, 1969 को इंदिरा गांधी ने बेंगलुरु में कांग्रेस सत्र में कहा कि प्राइवेट बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना होगा। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि वह अगले हफ्ते ही इस योजना को आगे बढ़ाने का इरादा रखती हैं। उनके वित्त मंत्री मोरारजी देसाई इस फैसले के पक्ष में नहीं थे। सो, उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
वित्त मंत्रालय में बैंकिंग विभाग के तत्कालीन उप सचिव डी एन घोष ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि कैसे इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी एन हक्सर और आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ए बख्शी समेत तीन लोगों को ड्राफ्ट तैयार करने के काम पर लगाया गया था।

ड्राफ्ट तैयार करने की प्रक्रिया में कौन-कौन शामिल थे?
न तो आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर एल के झा और न ही मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव आईजी पटेल आखिरी मिनट तक ड्राफ्ट तैयार करने की इस प्रक्रिया में शामिल थे, हालांकि पटेल ने पहले इस दिशा में कदम उठाने के पक्ष में सलाह दी थी। इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि ग्रामीण क्षेत्र को लोन उपलब्ध हो, जिसे निजी बैंक प्रदान करने में विफल रहे थे। 1951 और 1968 के बीच उद्योगों को लगभग 68% बैंक लोन मिला था जबकि इस दौरान कृषि क्षेत्र को महज 2% बैंक लोन मिला था।
19 जुलाई 1969 को 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण
24 घंटे के भीतर तैयार किए गए अध्यादेश के साथ इंदिरा ने 19 जुलाई को शाम 5 बजे कैबिनेट बैठक बुलाई। जिसने अध्यादेश को मंजूरी दे दी। कुछ ही घंटों के भीतर राष्ट्रपति गिरि ने इस पर मोहर लगा दी और इंदिरा गांधी ने रात 8.30 बजे राष्ट्र को संबोधित किया।
19 जुलाई 1969 को जिन 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया उनका कुल प्रॉफ़िट उस समय 5.7 करोड़ था। वहीं, 2019 में इन 14 बैंकों का कुल नुकसान 49,700 करोड़ रुपये था।

बैंक राष्ट्रीयकरण केवल आर्थिक निर्णय नहीं बल्कि इसमें राजनीति भी शामिल थी
पूर्व आरबीआई गवर्नर सी रंगराजन ने कहा था, “1969 का बैंक राष्ट्रीयकरण केवल एक आर्थिक निर्णय नहीं था बल्कि इसमें राजनीति भी शामिल थी। 1969 का राष्ट्रीयकरण एक महत्वपूर्ण कदम था जिससे बैंकिंग का विस्तार हुआ। 1990 के दशक के बैंकिंग सुधारों ने एक कुशल बैंकिंग प्रणाली बनाने में मदद की। बैंक राष्ट्रीयकरण ने बैंकिंग को नए क्षेत्रों, ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाने में मदद की और 1991 के बैंकिंग सुधारों ने बैंकिंग प्रणाली में स्थिरता और मजबूती प्रदान की।”
राष्ट्रीयकरण केवल 14 सबसे बड़े भारतीय बैंकों तक सीमित था, जिन्हें आरबीआई द्वारा ‘मेजर’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इनमें ऐसे बैंक शामिल थे जिनकी जमा राशि 50 करोड़ रुपये से अधिक थी, जो बैंकों में जमा राशि का 85% शेयर था।
इस दौरान सरकारी तंत्र में चर्चा हुई कि क्या राष्ट्रीय और ग्रिंडलेज, एक विदेशी स्वामित्व वाला बैंक, इस सूची में शामिल होना चाहिए या नहीं, लेकिन यह फैसला लिया गया कि विदेशी बैंको को न जोड़ना ही बेहतर होगा।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस घटना को याद दिलाते हुए 19 जुलाई, 2024 को एक ट्वीट किया। वह अपने ट्वीट में लिखते हैं कि 1969 में जब बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो शुरुआत में भारतीय जनसंघ जैसे कुछ राजनीतिक दल इसके खिलाफ थे लेकिन पांच महीने के भीतर ही जनसंघ सार्वजनिक रूप से विदेशी बैंकों के भी राष्ट्रीयकरण की मांग करने लगा।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से जुड़े बड़े नाम
- इंदिरा गांधी- तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि बैंकिंग को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना आवश्यक है, लेकिन उन पर राजनीतिक लाभ के लिए इसे आगे बढ़ाने का आरोप लगाया गया।
- एलके झा- आरबीआई गवर्नर के रूप में राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया का निरीक्षण किया।
- आईजी पटेल- तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव को घोषणा से 24 घंटे पहले कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए कहा गया था।
- पीएन हक्सर– पीएम के तत्कालीन प्रमुख सचिव कार्यान्वयन की देखरेख कर रहे थे।
- ए बक्सी– आरबीआई के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर ए बक्सी इस घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले कुछ लोगों में से एक थे।
- वीवी गिरि- कार्यवाहक राष्ट्रपति ने चुनाव लड़ने के लिए पद छोड़ने से एक दिन पहले अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए
- मोरारजी देसाई- बैंकों के राष्ट्रीयकरण की योजना पर अपनी असहमति दर्ज कराने के लिए उन्होंने घोषणा से एक सप्ताह पहले वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
अब किस बैंक का किसमें हो चुका है विलय?
- 1 अप्रैल 2020 को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स का पंजाब नेशनल बैंक में विलय हो गया।
- 1 अप्रैल 2020 को सिंडिकेट बैंक को केनरा बैंक का हिस्सा बना दिया गया।
- 1 अप्रैल 2020 को इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में विलय हो गया।
- 2020 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक का विलय हो गया।
- 1 अप्रैल 2019 को विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय कर दिया गया।
- स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और भारतीय महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक ने अधिग्रहण कर लिया था।