सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सोमवार को हेट स्पीच (Hate Speech) की घटनाओं के खिलाफ कदम उठाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। अदालत ने विशेष रूप से 5 फरवरी को मुंबई में आयोजित हिंदू जन आक्रोश मोर्चा (Hindu Janakrosh Morcha) के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई की।
जस्टिस केएम जोसेफ (Justice KM Joseph) और जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice B.V.Nagarathna) की पीठ के सामने महाराष्ट्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) और याचिकाकर्ताओं के वकील निज़ाम पाशा (Advocate Nizam Pasha) पेश हुए।
SG की दलील
3 फरवरी को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मोर्चा की अनुमति केवल इस शर्त पर दी जा सकती है कि कार्यक्रम में अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं किया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने कार्यक्रम की वीडियोग्राफी कराने का भी आदेश दिया था।
सोमवार को जब मामले की सुनवाई हुई तो पीठ ने पूछा कि कार्यक्रम में क्या हुआ था? महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने दलील दी कि कोई भी अप्रिय घटना नहीं हुई।
याचिकाकर्ताओं के वकील का जवाब
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील निज़ाम पाशा ने कहा कि हिंदू जन आक्रोश मोर्चा से जुड़े कार्यक्रमों में हेट स्पीच के उदाहरण मिलते हैं। हम कार्यक्रम के भाषण के ट्रांसक्रिप्ट का इंतजार कर रहे हैं।
इसके बाद पीठ ने कहा कि वह हिंदू जन आक्रोश मोर्चा की रैली के वीडियो की जांच करना चाहेगी। बेंच की योजना सुनते ही एसजी तुषार मेहता ने सवाल उठाया कि केस केवल इंटरलॉक्यूटरी एप्लीकेशन्स की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
जस्टिस जोसेफ की टिप्पणी
सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता मेहता की दलील पर जस्टिस केएम जोसेफ ने उन्हें याद दिलाया कि केस की सुनवाई का असली मकसद क्या है। जस्टिस जोसेफ ने कहा, “हमें आवेदन सुनने में कोई आपत्ति नहीं है, वे हमारे दुश्मन नहीं हैं। हमारा साझा दुश्मन हेट स्पीच है।”
हेट स्पीच की परिभाषा को लेकर पसोपेश
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारतीय कानून में हेट स्पीच की कोई ठोस परिभाषा नहीं है। जब भी इस तरह के अपमानजनक भाषण दिए जाते हैं तो क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 153ए का सहारा लेना पड़ता है।
धारा 153A के तहत धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वालों को सजा दी जाती है।
कोर्ट ने कहा, “ऐसा नहीं है कि जो कुछ भी कहा जाता है वह हेट स्पीच है या 153ए के अंतर्गत आता है। हमें इसे भी ध्यान में रखना होगा। चिंता यह है कि हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए हमें 153ए पर वापस आना होगा।” मामले की अगली सुनवाई 21 मार्च को होगी।