ओडिशा के चुनावी मैदान में इस बार मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और बीजेडी के बीच है। एक तरफ जहां, नवीन पटनायक बीजेडी के लिए सबसे बड़ा फायदा साबित हो सकते हैं। दूसरी ओर, बीजेडी के साथ गठबंधन की कोशिशें असफल होने के बाद बीजेपी को कोई ऐसा चेहरा नहीं मिल पाया है जिसे पटनायक के विकल्प के रूप में पेश किया जा सके। इन सबके बावजूद पिछले एक दशक में भाजपा ने ओडिशा में खुद को मजबूत किया है और बीजेडी को कड़ा मुक़ाबला दे रही है। आइये देखते हैं पिछले दस साल में बीजेडी के मुकाबले कैसे खड़ी हो गई बीजेपी?

बीजेडी ने ओडिशा में अपना पहला चुनाव 1998 में बीजेपी के साथ गठबंधन में लड़ा था। हालांकि, 2009 में दोनों की राहें अलग हो गईं और बीजेडी ने अपने दम पर चुनाव लड़ा, जिसके कारण बीजेपी को ओडिशा में काफी नुकसान हुआ। 2014 के चुनाव में भी बीजेपी ओडिशा में कोई कमाल नहीं दिखा सकी लेकिन 2019 में बीजेपी ने बाजी पलट दी। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी और बीजेडी के बीच वोट शेयर और सीट शेयर का अंतर काफी हद तक कम हुआ।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि बीजेडी और सीएम पटनायक के मजबूत जनाधार के बीच बीजेपी ओडिशा में अपने पांव मजबूत करने में कैसे कामयाब हुई? इसका मुख्य कारण यह है कि बीजेपी ओडिशा में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हुई है।

2009 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा में कांग्रेस और बीजेपी का वोट शेयर 32.7% और 16.9% था। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 13.8% और 38.4% हो गया।

लोकसभा चुनाव में लड़ी हुई सीटों पर बीजेपी-बीजेडी का वोट शेयर

Source- TCPD

लोकसभा चुनाव में बीजेपी-बीजेडी का सीट शेयर

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कांग्रेस के वोट बैंक में सेंधमारी

इन आंकड़ों का गहन विश्लेषण करने से पता चलता है कि 2009 में कांग्रेस ने जो 6 लोकसभा क्षेत्र जीते थे, उनमें से पांच 2014 में बीजेडी ने जीते थे और केवल एक भाजपा ने जीता था। इसी तरह, 2009 में कांग्रेस द्वारा जीते गए 27 विधानसभा क्षेत्रों में से 18 क्षेत्र 2014 में बीजद के पास गए और केवल दो भाजपा के पास गए।

ओडिशा लोकसभा चुनाव में बीजेपी-बीजेडी का क्षेत्रवार सीट शेयर प्रतिशत

क्षेत्रचुनावी वर्षबीजेडीबीजेपीकांग्रेस
सेंट्रल 2009 88 0 13
2014 100 0 0
2019 75 13 13
तटीय 200975 0 13
2014 100 0 0
2019 75 25 0
पश्चिम 2009 20 0 80
2014 80 20 0
2019 0 100 0

2019 में भाजपा ने जो 23 विधानसभा सीटें जीतीं, उनमें से 18 सीटें पहले बीजेडी ने जीती थीं। इससे पता चलता है कि 2019 से पहले बीजेडी ने कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक में सेंधमारी की थी और अब भाजपा इसमें से कुछ हिस्सा अपनी तरफ करने में कामयाब रही है।

ओडिशा विधानसभा चुनाव में बीजेपी-बीजेडी का क्षेत्रवार सीट शेयर प्रतिशत

क्षेत्रचुनावी वर्षबीजेडीबीजेपीकांग्रेस
सेंट्रल200977.3 3.010.6
201484.81.512.1
201977.316.74.5
तटीय200983.708.2
201487.84.16.1
201985.710.24.1
पश्चिम200934.412.550.0
201456.321.915.6
201962.521.912.5

बीजेपी के लिए क्या हैं चुनौतियां?

2024 के चुनावों के लिए गठबंधन के लिए दोनों दलों के बीच बातचीत विफल होने के बाद चुनाव और अधिक रोमांचक हो गए हैं। एक तरफ जहां भाजपा राज्य में अपनी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को लेकर आश्वस्त है। वहीं, दूसरी ओर पार्टी को पांच बार के सीएम पटनायक के सामने कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। जहां कई लोग इस बार बदलाव चाहते हैं, वहीं मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग अभी भी पटनायक के पक्ष में खड़ा दिख रहा है।

पटनायक की लोकप्रियता के बीच भाजपा अपने अभियान में “उड़िया अस्मिता” का मुद्दा उठा रही है, जिसमें तमिल मूल के पूर्व ब्यूरोक्रेट वीके पांडियन को निशाना बनाया जा रहा है, जिन्हें सीएम पटनायक का उत्तराधिकारी माना जा रहा है। भाजपा नेताओं ने पटनायक पर “ओडिशा की विरासत, संस्कृति और भाषा के प्रति बहुत सम्मान नहीं रखने वाले गैर-ओडिया नौकरशाहों की पकड़ में होने” का आरोप लगाया है।

मोदी फैक्टर पर टिकी हैं बीजेपी की उम्मीदें

इसके साथ ही राज्य भाजपा के लचर रवैये और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और पटनायक सरकार के बीच सौहार्द्र को भी भाजपा के कमजोर होने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। पिछले पांच वर्षों में, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने अक्सर सार्वजनिक रूप से पटनायक सरकार की प्रशंसा की है, जिसने राज्य स्तर पर उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया ही है। हालाँकि, मौजूदा चुनावों में पार्टी की उम्मीदें मोदी फैक्टर और मतदाताओं के एक वर्ग के बीच बदलाव की इच्छा पर टिकी हैं।

महिलाओं के बीच नवीन पटनायक की लोकप्रियता

बीजद के पक्ष में वह स्वयं सहायता समूह (SHG) हैं, जिसमें 70 लाख महिला सदस्य हैं और जो पिछले दो दशकों में पार्टी के लिए एक वफादार वोट बैंक बन गयी हैं। महिलाओं का बीजेडी के लिए यह समर्थन साफ देखा जा सकता है क्योंकि पार्टी की रैलियों और रोड शो में उनकी संख्या पुरुषों से अधिक है। द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में, बीजद नेता और नवीन पटनायक के सहयोगी वीके पांडियन ने भी महिलाओं को पार्टी का सबसे बड़ा समर्थन बताया और कहा कि सीएम हमेशा उनके साथ खड़े रहे हैं। भाजपा पर कटाक्ष करते हुए पांडियन ने कहा था कि कोई भी मुफ्त की रेवड़ियां राज्य की महिलाओं का पटनायक के साथ बंधन नहीं तोड़ सकती।

महिलाओं के लिए इन योजनाओं ने बनाया बीजेडी को मजबूत

मिशन शक्ति के अलावा, बीजद सरकार ने पंचायती राज संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लाया है। अपनी लोकसभा सीटों में से 33% महिलाओं के लिए आरक्षित की है, और बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना के तहत उनके लिए 10 लाख रुपये तक हेल्थकेयर सुनिश्चित किया है। (पुरुषों के लिए 5 लाख रुपये तक)। अपने वादे पर कायम रहते हुए, पार्टी ने 2024 के विधानसभा चुनावों में 35 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जबकि पांच साल पहले यह संख्या 19 थी।

इसके साथ ही छात्रों के लिए NUA-O और ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिए लोकेशन एक्सेसिबल मल्टी-मोडल इनिशिएटिव (LAccMI) बस योजना ने भी बीजेडी की लोकप्रियता को बढ़ाया है। वहीं, चार दशकों से अधिक समय तक ओडिशा पर शासन करने वाली कांग्रेस अब राज्य की राजनीति में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही है। पिछले कुछ चुनावों में उसके वोट शेयर और सीटों में गिरावट आई है।

ओडिशा चुनाव परिणाम

2019 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने बीजद की 112 सीटों के मुकाबले 23 सीटें हासिल कीं, जिससे कांग्रेस 9 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। वहीं, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेडी को 12 और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेडी को 12, कांग्रेस को 1 और बीजेपी को 8 सीटें मिली थीं।