नरेंद्र मोदी को सरकार चलाते नौ साल पूरे हो गए हैं। वह अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम साल में प्रवेश कर चुके हैं। साथ ही, तीसरे कार्यकाल के लिए कमर भी कस चुके हैं। जब वह सत्ता में आए थे तो ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा और ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा भी लाए थे। लोगों की आमदनी बढ़ने और गरीबी घटने के लिहाज से इस वादे और नारे का सच परखते हैं। इसे परखने के लिए हम कुछ सवालों को आधार बनाते हैं कि गरीबी का ग्राफ कहां गया, लोगों की आमदनी कितनी बढ़ी, अमीर-गरीब के बीच खाई कितनी घटी?
पहले बात गरीबी की
सरकार ने 2011 के बाद से गरीबी का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं दिया है। कई शोधकर्ताओं ने अपने स्तर पर यह आंकलन करने की कोशिश की है। लेकिन सबके अपने-अपने आधार हैं और अलग-अलग निष्कर्ष हैं। ऐसे में हम विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट की ही बात कर लेते हैं। यह रिपोर्ट अक्तूबर 2022 में पेश की गई है। इसमें भारत में गरीबों की संख्या सबसे ज्यादा बताई गई है।
विश्व बैंक के मुताबिक 2019 में भारत में 13.70 करोड़ लोग 46 रुपए प्रति दिन पर गुजारा करते थे और 61.2 करोड़ लोग ऐसे थे जो 78 रुपए प्रति दिन पर जीवन बसर करते थे। यह डेटा 2019 का है। कोरोना महामारी आने के पहले का। महामारी के दौरान तो हालत और बुरी ही हुई।
कितनी चौड़ी गरीब-अमीर की खाई
एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट (World Inequality Report 2022) के मुताबिक आर्थिक समानता के मामले में भी भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। इसमें बताया गया कि सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के पास जितनी संपत्ति है वह सबसे कम कमाने वाले 50 फीसदी लोगों की कुल आय से 22 गुना ज्यादा है।
इन आंकड़ों से भी लगा सकते हैं गरीबों का अनुमान
सरकार गरीबों के लिए जो योजनाएं चला रही है और उसके लाभार्थियों की जो संख्या बता रही है, उसे अगर गरीबी का पैमाना बनाएं तो तस्वीर और बुरी नजर आती है। कुछ उदाहरण देखें:
- पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दिया गया।
- असंगठित श्रमिक पोर्टल पर 28.85 करोड़ मजदूरों का पंजीकरण हुआ।
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन (असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पेंशन) योजना के तहत असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 49.29 लाख कामगार पंजीकृत हुए।
- आयुष्मान भारत योजना, जो कम आमदनी वाले लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए चलाई जा रही है, के तहत सरकार ने 50 करोड़ गरीब लोगों को फायदा देने का लक्ष्य रखा है।
अब बात आमदनी की
2013-14 में प्रति व्यक्ति जीडीपी (औसत आमदनीक) 78,348 रुपए थी। साल 2022-23 में यह 1,15,490 रुपए हो गई। यानि 47 फीसदी बढ़ गई। ओवरऑल जीडीपी में इन वर्षों में जहां 63 फीसदी बढ़ोतरी हुई, वहीं प्रति व्यक्ति जीडीपी या औसत आय 47 फीसदी बढ़ी।
यह आंकड़ा आरबीआई का बताया हुआ है और स्थिर कीमतों (मुद्रास्फीति का असर हटा कर) के आधार पर बनाया गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़ों को देखें तो 2023 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 2600 डॉलर बताई गई। बांग्लादेश में यह 2470 डॉलर रही, जबकि चीन में 13,720 डॉलर, यूके में 46(370 डॉलर, ब्राजील में 9,670 डॉलर और इंडोनेशिया में 5,020 डॉलर रही।
आईएमएफ बताता है कि भारत में 2014 से 2023 के बीच प्रति व्यक्ति आय में 67 फीसदी बढ़ोतरी हुई, जबकि 2004 से 2014 के बीच 145 प्रतिशत बढ़ी थी। यूक्रेन युद्ध के चलते बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर होने की वजह से वह भारत से पिछड़ गया। इस मोर्चे पर बांग्लादेश ने 2019 में ही भारत से बढ़त ले ली थी और आईएमएफ का आंकलन है कि अगले पांच साल में वह फिर भारत को पीछे छोड़ देगा।
सरकार का दावा
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सरकारी योजनाओं से जुड़े आंकड़े
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सरकारी योजनाओं से जुड़े आंकड़े
ऊपर दिए गए आंकड़ों को केंद्र सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के रूप में भाजपा एक बुकलेट के जरिए प्रचारित कर रही है।