काठमांडू की सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी जेन जी (1997 से 2012 के बीच जन्मे युवा) थे, जो केपी शर्मा ओली शासन की दमनकारी कार्रवाइयों से नाराज़ थे। 9 सितंबर को जेन जेड प्रदर्शनकारियों ने सरकारी भवनों, प्रमुख राजनीतिक दलों के कार्यालयों और कई पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित शीर्ष राजनीतिक पदाधिकारियों के घरों व कार्यालयों में आग लगा दी। यह घटना काठमांडो में पुलिस की गोलीबारी में 19 युवा प्रदर्शनकारियों के मारे जाने के एक दिन बाद हुई।

नेपाल की राजधानी आग की लपटों में घिर गई और ऐसा प्रतीत हुआ मानो देश में कोई सरकार नहीं बची हो। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया और राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल सेना की सुरक्षा में रहे। ओली के इस्तीफे के बाद जब गुस्सा कम हुआ तो वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए जेन जी, सेना और राष्ट्रपति ने कवायद की और शुक्रवार को नेपाल की पूर्व प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख चुन लिया। कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं और मार्च 2026 में उनकी अगुआई में आम चुनाव होंगे।

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26 सोशल मीडिया मंचों पर ओली सरकार के प्रतिबंधों के बाद बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के कारण खदबदाया आक्रोश सड़कों पर उतर आया। 19 साथियों के गोलियों से मारे जाने के बाद भड़की हिंसा ने नेपाली सत्ता की चूलें हिला दीं। कर्फ्यू का उल्लंघन करके काठमांडो और नेपाल के कुछ अन्य शहरों की सड़कों पर घूम रहे प्रदर्शनकारियों ने कई मंत्रियों और राजनेताओं पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। सैन्य हेलिकॉप्टरों ने ओली मंत्रिमंडल के सदस्यों और निशाना बनाए गए अधिकांश अन्य लोगों को बचाया।

प्रदर्शनकारी क्यों नाराज हैं

कुछ महीने पहले, फेसबुक पेजों—जिनमें नेक्स्ट जेनरेशन नेपाल नामक पेज भी शामिल था—ने नेपाल की गंभीर राजनीतिक स्थिति और उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में पोस्ट करना शुरू किया। कोई विशिष्ट व्यक्ति इन पोस्ट को बढ़ावा नहीं दे रहा था, लेकिन यह स्पष्ट था कि उनमें से अधिकांश 1996 और 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी से संबंधित थे, जिसे जेनरेशन जी या जनरल जी कहा जाता है। युवाओं, किशोरों और 20 वर्ष की आयु के लोगों ने भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना गुस्सा और निराशा व्यक्त की।

आलोचना में विशेष रूप से वरिष्ठ राजनेताओं के बच्चों और आश्रितों की असाधारण जीवनशैली पर सवाल उठे। “नेपो बेबीज़” और “नेपो किड्स” जैसे शब्द ऑनलाइन ट्रेंड करने लगे।

कुछ हफ्ते पहले, सरकार ने फेसबुक, व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, एक्स और यूट्यूब सहित 26 सोशल मीडिया मंचों पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि वे एक निश्चित समय सीमा तक अधिकारियों के साथ पंजीकरण करने में विफल रहे थे। डिजिटल प्रतिबंध ने जेनरेशन जी के उस प्राथमिक माध्यम को छीन लिया, जिसका उपयोग वे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने, टिप्पणी करने तथा एकजुटता की तलाश के लिए करते थे। इससे उनका गुस्सा और बढ़ गया।

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9 सितंबर को यह हताशा चरम पर पहुंच गई, जब बड़ी संख्या में युवा सड़कों पर उतर आए और पुलिस व सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 19 लोग मारे गए। प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध को हटाने के अलावा कोई खास मांग नहीं रखी थी, जो उसी शाम पूरी हो गई। सामान्य शब्दों में कहें तो वे भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता और रोजगार के अवसरों की कमी को खत्म करने की मांग कर रहे थे।

प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पास एक रैली की योजना बनाई थी, लेकिन सरकार द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग के कारण उनका गुस्सा भड़क उठा। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने प्रमुख राजनीतिक हस्तियों, सरकारी इमारतों और प्रतीकों पर जमकर हमला किया। उन्होंने कम से कम पांच पूर्व प्रधानमंत्रियों—ओली, प्रचंड, माधव कुमार नेपाल, खनल और देउबा—के आवासों को जला दिया या तोड़फोड़ की। सेना द्वारा बचाए जाने से पहले उनमें से कुछ नेताओं के साथ मारपीट भी हुई।

पूर्व प्रधानमंत्री खनल की पत्नी, राज्यलक्ष्मी चित्रकार, के काठमांडो स्थित घर में आग लगा दी गई, जिसमें वे गंभीर रूप से झुलस गईं। देउबा और उनकी पत्नी आरजू देउबा, जो नेपाल की विदेश मंत्री हैं, पर हमला किया गया और पूर्व प्रधानमंत्री गंभीर रूप से घायल हो गए। वित्त मंत्री बिष्णु प्रसाद पौडेल और सांसद एकनाथ ढकाल—दोनों ओली के करीबी—के कपड़े उतारकर परेड कराई गई। पश्चिमी नेपाल के धनगढ़ी में आरजू देउबा का घर और चितवन में प्रचंड का आवास जमींदोज कर दिया गया।

प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू घाटी के ललितपुर में नक्खू सेंट्रल जेल में भी आग लगा दी और वहां कैद राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के प्रमुख तथा ओली के प्रबल आलोचक रबी लामिछाने को रिहा कर दिया।