वंचित बहुजन आघाडी (वीबीए) ने महाराष्ट्र में लोकसभा का चुनाव अकेले दम पर लड़ा। पहले यह माना जा रहा था कि वीबीए इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। वीबीए अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के प्रदर्शन को लेकर बात की और कहा कि क्षेत्रीय दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा जोश के साथ लड़ाई लड़ी।

सवाल- महाराष्ट्र के चुनाव के बारे में आपका क्या कहना है?

जवाब- मैं मानता हूं कि महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर नजदीकी मुकाबला था। चाहे एनडीए की जीत हो या महा विकास आघाडी की, जीत का अंतर बहुत कम रहेगा लेकिन पिछली बार की तरह नहीं होगा, जब उम्मीदवारों को भारी अंतर से जीत मिलती थी।

सवाल- आपको क्या लगता है कि वीबीए ने कैसा प्रदर्शन किया है?

जवाब- मेरा अनुमान है कि हम तीन सीटों पर चुनाव जीत रहे हैं। हमने कुल 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 2019 में हमें 6.75 प्रतिशत वोट मिले थे और इस बार हमारा वोट प्रतिशत बढ़ेगा।

सवाल- क्या आप पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में कोई एक अंतर बता सकते हैं?

जवाब- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव को ग्राम पंचायत के चुनाव में बदल दिया है। चुनाव प्रचार बहुत क्रूर हो गया। इस दौरान व्यक्तिगत हमले किए गए और प्रधानमंत्री ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, वह बेहद खराब थी। वह प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बहुत नीचे ले गए। इस चुनाव में यह भी साफ हो गया कि केंद्रीय एजेंसियां किस कदर कमजोर हैं और वह सत्तारूढ़ दल का टूल बनकर रह गई हैं।

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सवाल- लेकिन इससे पहले भी प्रधानमंत्रियों ने अपनी पार्टियों के लिए चुनाव प्रचार किया है

जवाब- हां, हर प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार करता है। पहले प्रधानमंत्री केवल लोकसभा चुनाव में प्रचार करते थे और विधानसभा चुनाव में कुछ रैलियां किया करते थे। लेकिन मोदी ने लगभग हर लोकसभा क्षेत्र में प्रचार किया और यही काम उन्होंने विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव में भी किया। उन्होंने हर चुनाव को एक ग्राम पंचायत के चुनाव में बदल दिया है।

सवाल- क्या इससे बीजेपी को फायदा नहीं होगा?

जवाब- मुझे लगता है कि बीजेपी को लोकसभा चुनाव में नुकसान होगा क्योंकि देशभर में क्षेत्रीय पार्टियां अच्छा प्रदर्शन करेंगी। कांग्रेस का प्रदर्शन 2019 के चुनाव में खराब रहा था, उसे भी फायदा होगा। अभी सीटों की संख्या के बारे में कुछ कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि दो चरणों का चुनाव बाकी है। बीजेपी के 400 पार के मिशन को बहुत बड़ा धक्का लगेगा।

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पीएम नरेंद्र मोदी (Source- PTI)

सवाल- इंडिया गठबंधन का चुनाव प्रचार लोकतंत्र और संविधान के मुद्दे पर केंद्रित रहा, इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब- इंडिया गठबंधन ने जरूरी मुद्दों को उठाया लेकिन मुझे लगता है कि कांग्रेस और धारदार चुनाव प्रचार कर सकती थी। उदाहरण के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को (संपत्तियों के बंटवारे के मामले में) पत्र लिखा। इस मामले में सफाई देने की क्या जरूरत थी। कांग्रेस को भाजपा के हमलों का इस्तेमाल बीजेपी की मोदी सरकार की दलित विरोधी, मुस्लिम विरोधी और गरीब विरोधी चेहरे को बेनकाब करने के लिए करना चाहिए था। यहां पर कांग्रेस की ओर से कमी दिखाई दी।

सवाल- क्या संविधान को खतरे वाले नारे का दलितों पर कोई असर पड़ा?

जवाब- निश्चित रूप से दलित समुदाय के बीच काफी नाराजगी थी और उन्होंने भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर वोट दिया। इस तरह का नजारा पूरे महाराष्ट्र में और देश के अन्य राज्यों में भी दिखा। दलित समुदाय के लोग अब फिर से बीजेपी का समर्थन नहीं करेंगे। उनमें आरएसएस की विचारधारा और संघ के हिंदू राष्ट्र के विचार लेकर को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं हैं। वे लोग नरेंद्र मोदी के विकास के मुद्दे से भी पूरी तरह निराश हो गए हैं।

Jayant Sinha Kirodi Lal Meena
किरोड़ी लाल मीणा और जयंत सिन्हा। (Source-FB)

सवाल- लेकिन बीजेपी देशभर में मोदी फैक्टर के सहारे है?

जवाब- यह एक रणनीति थी और इसका मकसद मोदी सरकार के 10 साल के कामकाज को छुपाना था। मैंने पूरे महाराष्ट्र के साथ ही अन्य राज्यों का भी दौरा किया और इस दौरान उन्हें बेरोजगारी के मुद्दे पर नाराज देखा और चुनावी बांड को लेकर सवाल करते हुए भी देखा। छोटे निवेशक और छोटे उद्योग चलाने वाले लोग जीएसटी को लेकर गुस्से में हैं। देश के तमाम राज्यों में महंगाई एक मुद्दा है।

सवाल- क्या जाति और धर्म के नाम पर हुए ध्रुवीकरण ने विपक्ष की संभावनाओं पर असर डाला है?

जवाब- पूरे महाराष्ट्र के अंदर मराठा बनाम ओबीसी ध्रुवीकरण का मुद्दा छाया रहा और इसने कुछ हिस्सों में बीजेपी को प्रभावित किया है। बीजेपी की ओर से सांप्रदायिक प्रचार किया गया। जहां पर नरेंद्र मोदी ने मंगलसूत्र और संपत्तियों को लेकर बात की और कहा कि इन्हें छीनकर अल्पसंख्यकों को दे दिया जाएगा। जिस तरह की शालीनता की अपेक्षा एक प्रधानमंत्री से की जाती थी, वह खत्म हो गई। मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान लक्ष्मण रेखा को लांघ दिया।