उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार (10 अक्तूबर, 2022) को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। वह राजनीति में ‘नेता जी’ के नाम से मशहूर थे। उन्हें समर्थक ‘धरतीपुत्र’ भी कहते थे और उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ भी पुकारा था। जानिए ये उपनाम उन्हें कब और कैसे मिले:
क्यों कहलाए धरतीपुत्र?
मुलायम सिंंह यादव 3 बार मुख्यमंत्री, 8 बार विधायक, 7 बार सांसद और केंद्रीय रक्षा मंत्री रहे थे। वह एकदम गंवई पृष्ठभूमि से निकल कर राजनीति में बुलंदियों तक पहुंचे थे। मुलायम सिंह यादव का जन्म किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता सुघर सिंह यादव जीवन यापन के लिए खेती पर निर्भर थे।
राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 14 साल की उम्र में नहर रेट आंदोलन में कूदने वाले मुलायम सिंह यादव राजनीति में आने से पहले अखाड़े के पहलवान थे। बताया जाता है कि उनका ‘चर्खा दांव’ आज भी सैफई वासियों की स्मृति में बसा है। वह अपने से लंबे-तगड़े पहलवानों को भी चारों खाने चित करने के लिए मशहूर थे। पारंपरिक कुश्ती के अखाड़े मिट्टी के हुआ करते थे।
बेहद सामान्य और ग्रामीण परिवेश से निकले मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में आए तो खुद को सामाजिक न्याय के अगुआ की तरह पेश किया। शुरुआत उन्होंने पिछड़ी जातियों को जोड़ने से किया। जब सत्ता मिली तो एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों के लिए कोचिंग योजना की शुरुआत की। कुल मिलाकर समाजवादी विचारधारा और कमजोर वर्गों की अगुवाई करने की वजह से उन्हें ‘धरतीपुत्र’ कहा गया।
कैसे बने नेताजी?
अपने अलग अंदाज में स्वतंत्रता आंदोलन की अगवानी करने वाले सुभाष चंद्र बोस को नेताजी कहा गया। आजाद भारत के नेताजी के रूप में मुलायम सिंह यादव चर्चित हुए। एक वक्त पर उन्हें सिर्फ मुसलमानों और यादवों का नेता बताने की कोशिश हुई, लेकिन उन्होंने इस प्रयास को कई मौकों पर धता बताया। उन्होंने लगातार अपने सामाजिक आधार को विस्तार दिया। इस प्रयास में उन्होंने उच्च-जाति के कुछ समुदायों, विशेषकर ठाकुरों को अपने वोट बैंक में शामिल किया।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र और बेनी प्रसाद वर्मा, पूर्व सांसद मोहन सिंह, पूर्व मंत्री भगवती सिंह और पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम शरण दास उनके सबसे करीबी लोगों में शुमार रहे। अमर सिंह के साथ उनका घनिष्ठ संबंध जगजाहिर है।
मुलायम के चारों ओर विभिन्न जातियों और वर्गों के नेता थे, जिससे उन्हें व्यापक समर्थन मिला। सामाजिक न्याय की बात करते हुए भी उन्होंने कभी किसी जाति के खिलाफ सार्वजनिक रूप से विद्वेष की भावना व्यक्त नहीं की। सामूहिकता की उनकी इसी खूबी ने उन्हें नेताजी बनाया बनाया।
मुलायम के नाम में किसने जोड़ा मुल्ला
साल 1990 की बात है। हिंदू दक्षिणपंथी गुटों के सामूहिक प्रयास से बाबरी मस्जिद विवाद अपने चरम पर था। मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। 30 अक्टूबर 1990 को विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने बाबरी मस्जिद को गिराने के इरादे से कार सेवा शुरु की। राज्य सरकार ने एहतियातन पूरे अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया। लेकिन भीड़ मानने को तैयार नहीं थी, वह बैरिकेडिंग तोड़ आगे बढ़ने लगी।
फिर लखनऊ के आदेश पर पुलिस ने पहले लाठीचार्ज किया, जब मामला हाथ से निकलने लगा तो गोली भी चलाई। कई लोगों की मौत हुई। लेकिन मौत का कारण सिर्फ गोली नहीं, भगदड़ भी थी।
मामला यहां थमा नहीं, क्योंकि गोली कांड का दूसरा अध्याय अभी बाकी था। 2 नवंबर को उमा भारती और अशोक सिंघल जैसे नेताओं के नेतृत्व में प्रतिरोध मार्च निकला। कर्फ्यू जारी था, इसलिए मस्जिद की तरफ अब भी जाने की मनाही थी। लेकिन प्रतिरोध मार्च रुका नहीं वह हनुमान गढ़ी के पास लाल कोठी तक पहुंच गया। इस रोज एक बार फिर पुलिस ने फायरिंग की।
48 घंटों के भीतर अयोध्या में दूसरी बार गोली चली। कोठारी बंधुओं समेत कई की मौत हुई, कई घायल हुए। इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव पर मुस्लिम परस्त होने का आरोप लगा और हिंदू दक्षिणपंथी उन्हें मुल्ला मुलायम कहने लगे।