15 अगस्त 1947…एक तरफ भारत को 200 सालों की गुलामी से मुक्ति मिल रही थी, तो दूसरी तरफ देश दो टुकड़ों में बंट रहा था। इस बंटवारे में लाखों लोग बेघर हुए और हजारों जिंदगियां बर्बाद हो गईं। यह सब कुछ टल सकता था, अगर दिल्ली से करीब 1500 किलोमीटर दूर बॉम्बे की एक तिजोरी में बंद लिफाफे का राज कुछ महीने पहले खुल गया होता। यह तिजोरी बंबई के एक मशहूर डॉक्टर की थी, जिसमें बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की मेडिकल रिपोर्ट बंद थी।

ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी को भी नहीं लग पाया था सुराग

मशहूर इतिहासकार लैरी कॉलिन्स और डॉमिनिक लापियर अपनी चर्चित किताब ‘फ्रीडम ऐट मिडनाइट’ में लिखते हैं कि बॉम्बे के मशहूर डॉक्टर जाल आर. पटेल की तिजोरी में जिन्ना की मेडिकल रिपोर्ट वाला लिफाफा किसी अनमोल खजाने की तरह छुपा कर रखा गया था। किसी को इसका सुराग तक नहीं लग पाया। यहां तक की ब्रिटिश खुफिया एजेंसी को भी नहीं।

एक्स-रे फिल्म पर दो धब्बों का राज…

डॉ. पटेल की तिजोरी में बंद लिफाफे में मोहम्मद अली जिन्ना की एक्स-रे रिपोर्ट भी थी। एक्स-रे फिल्म के ठीक बीच में दो काले-काले गोल धब्बे नजर आ रहे थे। यह धब्बे लगभग पिंग पोंग बॉल के साइज के थे। दोनों धब्बों के चारों ओर एक कटी-फटी सफेद गोट सी लगी थी। ठीक उसी तरह जैसा ग्रहण के वक्त सूरज के आसपास दिखाई देता है। इन दो धब्बों के ऊपर तमाम छोटे-छोटे धब्बे पसलियों के उपरी सिरे तक चले गए थे। यह काले धब्बे साफ-साफ इशारा कर रहे थे कि मरीज का फेफड़ा बिल्कुल बेकार और खोखला हो चुका है। टीबी की बीमारी लगभग आखिरी स्टेज में पहुंच गई है। रिपोर्ट से साफ था कि मरीज की जिंदगी बस 2-3 साल और बची है।

1946 के आखिर में बिगड़ गई थी तबीयत

कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि जिन्ना इससे पहले से ही फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे थे। उन्हें लगातार ब्रोंकाइटिस का दौरा पड़ता था और शरीर एक तरीके से खोखला हो गया था। लंबा भाषण देने के बाद घंटों हांफते रहते थे। 1946 के आखिर में जिन्ना को एक बार फिर ब्रोंकाइटिस का दौरा पड़ा। उस वक्त वह शिमला में थे। जिन्ना की बहन फातिहा ने फौरन उन्हें बॉम्बे की गाड़ी में बैठा दिया। लेकिन रास्ते में उनकी हालत और खराब होती गई। नौबत यहां तक आ गई कि डॉ. पटेल को फौरन आने का संदेश भिजवाना पड़ा। बॉम्बे पहुंचने से पहले ही डॉ. पटेल जिन्ना के डिब्बे में घुसे और उन्होंने भांप लिया कि जिन्ना की हालत बेहद नाजुक हो चली है।

डॉ. पटेल ने जिन्ना से कहा कि बॉम्बे में उनका स्वागत करने के लिए जिस तरीके की भीड़ खड़ी है, अगर उसके बीच से गुजरने की कोशिश भी की तो वहीं ढेर हो जाएंगे। इसलिए बॉम्बे से पहले एक छोटे स्टेशन पर उन्हें उतार लिया गया और सीधे अस्पताल पहुंचाया गया। कॉलिन्स और लापियर लिखते हैं कि यहीं डॉ. पटेल को पहली बार जिन्ना की बीमारी का पता चला। डॉ. जाल आर. पटेल ने जब एक्स-रे फिल्म डेवलप करने वाली पानी की ट्रे से जिन्ना की एक्स-रे फिल्म निकाली तो उस पर धब्बा देख अवाक रह गए।

डॉ. पटेल गुपचुप लगाते रहे इंजेक्शन

जब जिन्ना को अस्पताल से छुट्टी मिली तो डॉ. पटेल उन्हें अपने दफ्तर ले आए और बताया कि उनकी बीमारी कितनी गंभीर है। डॉ. पटेल ने जिन्ना से कहा कि अब उनके शरीर की शक्ति लगभग खत्म हो चुकी है। अगर काम का बोझ कम नहीं किया और सिगरेट-शराब नहीं छोड़ी तो 1-2 साल से ज्यादा नहीं चलने वाले हैं। जिन्ना ने यह कठोर सूचना बड़े बेमन से सुनी और रिपोर्ट वहीं तिजोरी में दफन हो गई।

डॉ. पटेल हर दूसरे हफ्ते गुप्त रूप से जिन्ना को इंजेक्शन लगाते रहे, जिससे उनकी तबीयत थोड़ी सुधरी। लेकिन बीमारी जड़ से खत्म नहीं हुई। भारत के दो टुकड़े होने के साल भर बाद ही 11 सितंबर 1948 को जिन्ना की मौत हो गई।