मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई का एक वीडियो वायरल हो रहा है। हाईकोर्ट एक महिला और उसके इकलौते बेटे के बीच प्रॉपर्टी विवाद पर सुनवाई कर रहा था। महिला ने अपने बेटे को प्रॉपर्टी से बेदखल करने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान महिला खुद कोर्ट पहुंचीं। उन्होंने एक-एक कर अपनी आपबीती जज को सुनाई। 65 साल की बुजुर्ग की बात सुन मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस विवेक अग्रवाल भी दंग रह गए। उन्होंने महीने भर के भीतर मकान खाली करने का आदेश दे दिया।
कोर्ट में क्या-क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान बेटे की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि हम इकलौती संतान हैं और मां की प्रॉपर देखभाल कर रहे थे। इस पर जज ने सवाल किया- फिर माताजी को आपके खिलाफ मुकदमा दायर करने की क्या जरूरत पड़ गई? इस पर बेटे की तरफ से पेश वकील ने बताया कि इनकी तीन बेटियां भी हैं, और वह भी चाहती हैं कि उन्हें भी प्रॉपर्टी में हिस्सा मिले। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने टोकते हुए कहा कि यह ग्राउंड हो ही नहीं सकता है।
जस्टिस विवेक अग्रवाल ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि क्या वह (बुजुर्ग) कोर्ट में मौजूद हैं? वकील ने बताया कि वह कोर्ट आई हैं। इसके बाद जज ने उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया। बुजुर्ग महिला ने बताया कि मेरी बहू कभी हाथ काट लेती है, तो कभी फांसी लगाने की धमकी देती है। मुझे पुलिस और जेल भिजवाने की धमकी भी देती है।
बुजुर्ग ने रोते हुए सुनाई आपबीती
महिला ने आगे रोते हुए कहा कि बेटे और बहू ने मिलकर मुझे घर से निकाल दिया। सालभर से मैं रिश्तेदारों के यहां भटक रही हूं। महिला ने बताया कि घर मेरे पति ने बनवाया था। पति के असमय निधन के बाद बेटे को नौकरी भी मिली। वह एक लाख रुपये तक कमा रहा है, लेकिन मुझे ही बेघर कर दिया।
सुलह से कर दिया इनकार
बेटे की तरफ से पेश वकील ने अपनी दलील में कहा कि ये अपनी बेटियों के साथ रहती हैं…इन्हें पेंशन भी मिलती है। हमारा बस इतना कहना है कि हमें (बेटे को) ग्राउंड फ्लोर के ऊपर एक मंजिल और बनाने की इजाजत मिल जाए। हमारे भी बच्चे हैं। फैमिली मैटर है, आपस में बैठकर सुलह कर लेते।
इस पर जज ने टोकते हुए कहा कि इन्हें दूसरे के यहां रहने की जरूरत ही नहीं है। यह तो उनका घर है। आपके सामने ही तो बैठी हैं, पूछ लीजिये अगर सुलह करना चाहें तो। हालांकि याचिकाकर्ता ने बेटे से सुलह की मांग ठुकरा दी और कहा उन्हें बेटे-बहू से जान का खतरा है।
कोर्ट ने कहा- महीने भर में खाली कर दें मकान
कोर्ट ने अपने आदेश में मामले को डिसमिस करते हुए कहा कि चूंकि बेटे ने कहा कि उसके छोटे बच्चे हैं, ऐसे में इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए मकान खाली करने के लिए एक महीने का वक्त दिया जा रहा है। महीने भर के अंदर मकान बुजुर्ग महिला को हैंडओवर कर दिया जाए।
बुजुर्गों की देखभाल पर क्या कहता है कानून?
बुजुर्गों की देखभाल से संबंधित कई कानून हैं। सबसे चर्चित कानून ‘मेंटेंनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007’ है। इसे मनमोहन सरकार लाई थी। इस कानून में कहा गया है कि बेटे-बेटी की जिम्मेदारी है कि वह बुजुर्ग माता-पिता के भोजन, कपड़े, आवास, इलाज आदि जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करे। बालिग पोते-पोतियों पर भी यह नियम लागू होता है।
सजा का क्या प्रावधान?
‘मेंटेनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट, 2007’ में कहा गया है कि यदि कोई अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है या ढंग से नहीं निभा रहा है, सजा का हकदार है। दोषी पाए जाने पर 3 महीने की जेल या 5000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। कुछ परिस्थितियों में यह सजा बढ़ भी सकती है।
प्रॉपर्टी बच्चों के नाम कर दी तब भी हो सकती है वापस
इस कानून की एक और खास बात है कि यदि माता-पिता ने अपनी प्रॉपर्टी बच्चों या रिश्तेदारों के नाम ट्रांसफर भी कर दी है, और उनकी उचित देखभाल नहीं हो रही है तो उनकी संपत्ति वापस हो सकती है।