BSP Expelled Akash Anand: उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों बीएसपी प्रमुख मायावती के धमाकेदार फैसलों की जबरदस्त चर्चा है। मायावती ने कुछ ही दिनों के भीतर अपने भतीजे आकाश आनंद और भाई आनंद कुमार को नेशनल को-ऑर्डिनेटर के पद से हटा दिया। यहां तक कि आकाश आनंद को पार्टी से भी भी कर दिया और ऐलान किया कि अब उनका कोई भी उत्तराधिकारी नहीं होगा। इससे पहले मायावती ने आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ की भी पार्टी से छुट्टी कर दी थी।

मायावती के इन फैसलों को लेकर एक वक्त में बीएसपी में बड़े पदों पर रहे और बहुजन मूवमेंट को समझने वाले नेता हैरान हैं। 2012 में जब उत्तर प्रदेश की सत्ता से बीएसपी की विदाई हुई तो मायावती ने एक के बाद एक कई पुराने और बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया।

मायावती के कई ऐसे पुराने सहयोगी हैं, जो बीएसपी से निकलकर सपा, बीजेपी और कांग्रेस में चले गए और उन्होंने The Indian Express के साथ बातचीत में बीएसपी की इस हालत पर बड़ी निराशा व्यक्त की है। ऐसे नेताओं ने बातचीत के दौरान मायावती पर आरोप लगाए कि बहनजी ‘पैसे, परिवार और कुछ चुनिंदा नेताओं के चलते’ भीमराव अंबेडकर के आदर्शों और कांशीराम के द्वारा शुरू किए गए आंदोलन से दूर हो गई हैं।

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आकाश आनंद से क्यों नाराज हुईं मायावती? (Source-PTI)

मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को निकाला बाहर

ऐसे ही एक नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी एक वक्त में मायावती के बेहद भरोसेमंद लोगों में शुमार थे और बीएसपी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे थे। वह 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में बीएसपी सरकार के ताकतवर मंत्रियों में से एक थे। मायावती ने 2017 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे को पार्टी से निकाल दिया और उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। नसीमुद्दीन सिद्दीकी 2018 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

मायावती के हालिया फैसलों को लेकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने The Indian Express से कहा, ‘मुझे दुख होता है कि जिस पार्टी की स्थापना कांशीराम जी ने की थी, वह आंदोलन कमजोर पड़ रहा है, यह देखकर दुख होता है कि आपने जो घर बनाया था, वह ध्वस्त हो रहा है।’ नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बीएसपी की मौजूदा स्थिति के लिए आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को जिम्मेदार ठहराया।

हालांकि उन्होंने इस बात की उम्मीद जताई कि अगर बीएसपी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे और जल्दबाजी न करे तो वह फिर से जिंदा हो सकती है। सिद्दीकी ने कहा, “कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। अब यहां सिर्फ पाने-पाने का चल रहा है। खोना पड़ेगा।’ सिद्दीकी ने कहा कि वह मायावती का बहुत सम्मान करते हैं और अभी भी उन्हें आयरन लेडी मानते हैं। उन्होंने कहा कि बहनजी बड़ी नेता हैं।

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छावा फिल्म के बाद शुरू हुई औरगंजेब को लेकर बड़ी बहस। (Photo/Instagram/@maddockfilms)

कांशीराम के नारे से दूर होना पतन की वजह

नसीमुद्दीन सिद्दीकी की तरह ही स्वामी प्रसाद मौर्य भी एक वक्त में बीएसपी के बड़े नेता थे। उन्हें पार्टी का ओबीसी चेहरा माना जाता था। मौर्य ने 2016 में मायावती पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 2017 के यूपी विधानसभा के चुनाव के लिए पार्टी के टिकटों को नीलाम किया है। मौर्य ने कहा कि जिम्मेदारी थोपने या वापस लेने से बीएसपी को कोई फायदा नहीं होगा।

मौर्य ने The Indian Express से कहा कि बीएसपी का पतन तब शुरू हुआ जब वह कांशीराम के नारे ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’ से दूर चली गई। स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी से बीजेपी में गए थे लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह बीजेपी छोड़कर सपा में चले गए थे। बाद में उन्होंने सपा भी छोड़ दी थी।

बीएसपी की हालत के लिए मिश्रा जिम्मेदार- सरोज

बीएसपी के एक और दिग्गज नेता रहे इंद्रजीत सरोज को मायावती ने कुछ साल पहले पार्टी से बाहर कर दिया था। इंद्रजीत सरोज मौजूदा वक्त में सपा के राष्ट्रीय महासचिव और विधायक भी हैं। सरोज ने The Indian Express से बातचीत में कहा कि 2003 तक बीएसपी में सब ठीक था लेकिन 2003 के बाद जब मायावती अध्यक्ष बनीं तो उन्होंने कई गलत फैसले लिए, उन पर आरोप लगे कि उन्होंने टिकट देने के बदले पैसे लिए हैं और उन्होंने हाशिये पर पड़े समुदायों को भागीदारी देना बंद कर दिया।

सरोज ने कहा कि पार्टी में इस बदलाव के लिए केवल एक नेता जिम्मेदार हैं और उसका नाम सतीश चंद्र मिश्रा है। इंद्रजीत सरोज ने कहा कि बीएसपी में विधायकों और पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया गया जबकि बिना चुने हुए लोगों को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। सरोज ने कहा कि बहन जी ने ऐसे लोगों को हटा दिया जिनका जनाधार था। सरोज ने कहा कि इस वजह से बहुजन आंदोलन खत्म हो गया।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में है दारुल उलूम हक्कानिया। (Photo: Reuters)

मायावती और उनकी टीम को हटाना जरूरी- चौधरी

इसी तरह बीएसपी के संस्थापक सदस्यों में से एक आरके चौधरी भी बीएसपी से बाहर चले गए। वह कांशीराम के करीबी सहयोगियों में से एक हैं। चौधरी को 2001 में ही पार्टी से निकाल दिया गया था लेकिन 2013 में फिर पार्टी में लिया गया और 2016 में वह खुद ही पार्टी छोड़कर चले गए। मौजूदा वक्त में वह सपा के सांसद हैं। आरके चौधरी कहते हैं कि कांशीराम के आंदोलन और बाबा साहब अंबेडकर के मिशन को बचाने का केवल एक ही तरीका है और वह मायावती और उनकी टीम को हटाना है।

उन्होंने कहा, ‘मायावती और सतीश मिश्रा के रहते हुए इस आंदोलन को ढहने से कोई नहीं बचा सकता।’ उन्होंने दावा किया कि सतीश मिश्रा की वजह से कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए या उन्हें निकाल दिया गया और सैकड़ों लोगों की बलि दे दी गई।

चौधरी ने कहा कि अखिलेश यादव बीएसपी की जगह पर कब्जा कर रहे हैं और उन्होंने पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक पीडीए पर फोकस किया है।

बेहद खराब है बीएसपी की हालत

कांशीराम ने 1984 में बीएसपी का गठन किया था। कांशीराम और मायावती ने बसपा के काफिले को आगे बढ़ाया और पार्टी ने 2007 में पहली बार अकेले दम पर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई। लेकिन उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीएसपी का ग्राफ लगातार गिरता गया है। पार्टी को चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा है।

यूपी चुनाव में बसपा का वोट शेयर

साल वोट शेयर (प्रतिशत में)
2007 व‍िधानसभा चुनाव30.43
2012 व‍िधानसभा चुनाव25.91
2014 लोकसभा चुनाव 19.60
2017 व‍िधानसभा चुनाव22.23
2019 लोकसभा चुनाव 19.43
2022 व‍िधानसभा चुनाव12.8
2024 लोकसभा चुनाव 9.39

मौजूदा वक्त में बीएसपी के पास एक भी लोकसभा सांसद नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 488 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे सिर्फ 2.06% वोट मिले। ऐसा ही हाल 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में हुआ जब पार्टी सिर्फ एक सीट जीती और उसे 12.88% वोट शेयर मिला।

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