वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने जगरनॉट बुक्‍स से प्रकाश‍ित आत्मकथा Memoirs of A Maverick : The First Fifty Years (1941–1991) में पाकिस्तान के अपने अनुभवों को दर्ज किया है। अय्यर ने अपने करियर की शुरुआत बतौर IFS (Indian Foreign Service) की थी। वह 1978 से 1982 के बीच इंडिया के पहले काउंसिल जनरल के रूप में कराची (पाकिस्तान) में भी रहे थे।

अटल बिहारी वाजपेयी की वजह से कराची में मिली पोस्टिंग!

साल 1975 की बात है। अय्यर अपने परिवार के साथ लंदन में छुट्टी मना रहे थे, उन्हीं दिनों उनके दिमाग में कराची में पोस्टिंग का ख्याल आया था। लेकिन कराची का इंडियन ऑफिस 1965 के युद्ध के बाद से लगभग बंद था और 1971 के युद्ध के बाद पूरी तरह बंद हो गया था।

अय्यर अपनी किताब में लिखते हैं कि “भविष्य की पोस्टिंग के बारे में अटकलें लगाना सिविल सर्विसेज में एक बीमारी की तरह है।” लंदन में के एक IFS दोस्त के गार्डन में टहलते हुए अय्यर के कॉलेज फ्रेंड शेखर दासगुप्ता ने उन्हें बताया कि कराची जाना कितना सुखद हो सकता है।

अय्यर पाकिस्तान पोस्टिंग के लिए इसलिए भी अधिक रोमांचित थे क्योंकि इससे उन्हें बॉस (कराची ऑफिस का) बनने का मौका मिलता। अय्यर के बॉस हजारों मील दूर इस्लामाबाद में होते। हालांकि तब अय्यर के लिए ये सब सपना ही था क्योंकि कराची कार्यालय को खोलने पर पाकिस्तान के साथ कोई बातचीत नहीं चल रही थी। ऐसे में उन्हें अक्टूबर 1976 में बगदाद भेज दिया गया।

इस बीच भारत में बड़ा राजनीतिक बदलाव आया। इंदिरा गांधी ने आपातकाल को खत्म कर दिया। चुनाव हुए। कांग्रेस बुरी तरह हार गई और जनता पार्टी की सरकार बनी। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने अटल बिहारी वाजपेयी को अपने कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाया।

वाजपेयी को लेकर गलत साब‍ित हुई अय्यर की सोच

अय्यर लिखते हैं कि वह आपातकाल के खत्म होने से तो खुश थे लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाए जाने से निराश थे। उन्हें आशंका थी कि आरएसएस की पृष्ठभूमि वाले वाजपेयी की पाकिस्तान नीति मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रहों पर आधारित होगी।

लेकिन अय्यर गलत साबित हुए और ऐसा वह खुद मानते हैं। वह लिखते हैं, ” उन्होंने (वाजपेयी) पाकिस्तान के प्रति सबसे रचनात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया। 1978 में अक्टूबर की एक शाम को मैंने रेडियो चालू किया और यह सुनकर दंग रह गया कि सरकार ने कराची में हमारा महावाणिज्य दूतावास (Consulate General) खोलने का फैसला किया है, वह भी जल्दी से जल्दी।”

अय्यर दो साल बगदाद में रहे। रेडियो पर हुई घोषणा के एक पखवाड़े बाद ही उन्हें टेलीग्राम मिला, जिसमें कराची के लिए चयन होने की जानकारी थी। उन्हें तुरंत दिल्ली ब्रीफिंग के लिए रिपोर्ट करना था और पाकिस्तान जाने की तैयारी करनी थी।

आडवाणी के कहने पर पाक‍िस्‍तान ने दी हिंदू साधु को इजाजत

पाकिस्तान पहुंचने के बाद मणिशंकर अय्यर के पास पहला ही काम एक हिंदू संत से जुड़ा आया था। वह अपने दफ्तर में थे, तभी फोन की घंटी बजी। फोन सुक्कुर के डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय से आया था। फोन पर एक पाकिस्तानी अधिकारी थे, जिन्हें एक हिंदू साधु की सुरक्षा में लगाया गया था। इस साधु को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की सिफारिश पर साध बेला (सुक्कुर के पास का इलाका) जाने की अनुमति मिली थी, ताकि वह ऊपरी सिंध में बचे हिंदू समुदाय को आध्यात्मिक सहायता प्रदान कर सकें।

अधिकारी ने फोन पर हकलाते हुए अय्यर से कहा, “मेरे सामने एक भयानक समस्या है जिसे केवल आप ही हल कर सकते हैं।” अय्यर ने झिझकते हुए पूछा कि परेशानी क्या है? अधिकारी ने कहा कि हिंदू साधु के मुस्लिम भक्त भी आर्शीवाद लेने के लिए जिद कर रहे हैं। वे भी उनसे मिलना चाहते हैं।

अधिकारी ने अय्यर से पूछा, “क्या प्लीज मैं उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे दूं?” अय्यर लिखते हैं, “मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि  काउंसिल जनरल के रूप में यह मेरा पहला काम है। मैंने अनुमति दे दी।”

पाकिस्तान में मिला पहला सबक

साधु वाली घटना को अय्यर पाकिस्तान में मिला पहला सबक बताते हैं। वह लिखते हैं, “यह मेरा पहला सबक था कि पाकिस्तान और पाकिस्तानियों के बारे में जो धारणा अधिकांश भारतीयों के दिमाग में हैं, जमीनी हकीकत उससे कितनी अलग है। यह पहला सबक था जो मैंने सीखा कि आम पाकिस्तानी (विशेष रूप से आप्रवासी, मुहाजिर) हमारे साथ कितना जुड़ाव महसूस करते हैं।”

मण‍िशंकर अय्यर को पाक‍िस्‍तान में म‍िले पहले न्‍योते का क‍िस्‍सा भी है मजेदार

अय्यर जब कराची हवाई अड्डे पर उतरे तभी एक करोड़पत‍ि कारोबारी की ओर से उनके स्‍टाफ ने उन्‍हें अपने घर आने का न्‍योता द‍िया। एयरपोर्ट से सीधे एक कारोबारी के घर जाना अय्यर को अच्‍छा नहीं लगा। लेक‍िन, जब बाद में वह उनके घर गए तो उनसे जुड़ा भावुक कर देने वाला क‍िस्‍सा सामने आया।

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बाएं से- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Express archive photo) और मण‍िशंकर अय्यर की आत्‍मकथा Memoirs of A Maverick : The First Fifty Years का कवर

कारोबारी अब्‍दुस समद ने जब जबरदस्‍ती पाक‍िस्‍तानी बना कर पाक‍िस्‍तान में रोके जाने और भारत नहीं द‍िए जाने की कहानी सुनाई तो इससे अय्यर के प‍िता की कहानी भी जुड़ी थी। पूरा क‍िस्‍सा पढ़ने के ल‍िए ऊपर फोटो पर क्‍ल‍िक करें: