मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में हीरे की प्रसिद्ध खदानें सूख रही हैं। खदानों में हीरे का भंडार ख़त्म होने लगा है और केन-बेतवा नदी को जोड़ने का काम कागजों पर ही रह गया है, ऐसे में इस क्षेत्र के ज्यादातर लोगों के पास पलायन ही एकमात्र विकल्प बचा है। आइये जानते हैं बुंदेलखंड के इस क्षेत्र की समस्याएं क्या हैं और लोगों की चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों से क्या उम्मीद है?
पन्ना मध्य प्रदेश के छह जिलों दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह और सागर में से एक है। यह सभी बुंदेलखंड के अर्ध-शुष्क, पिछड़े क्षेत्र में आते हैं जहां 26 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान होगा। खेती मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है लेकिन यहां अनिश्चितता है, सिंचाई व्यवस्था अपर्याप्त है जिसके चलते उपज भी कम है और पलायन बढ़ रहा है।
मध्य प्रदेश में दो दशकों से सत्ता में भाजपा
राज्य में दो दशकों से सत्ता में रह रही भाजपा सरकार ने 2023 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद बांध और जल संरक्षण परियोजनाएं शुरू की हैं, जिसमें 44,605 करोड़ रुपये की केन-बेतवा नदी जोड़ने की परियोजना शामिल है।
हाल ही में दमोह में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘बुंदेलखंड की पानी की समस्या को हल करने के लिए मोदी पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं।’ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और खजुराहो से मौजूदा सांसद वी डी शर्मा का कहना है कि केन-बेतवा परियोजना से हरित और आर्थिक रूप से संपन्न बुंदेलखंड बनेगा।
केन-बेतवा परियोजना सिर्फ कागज पर- कांग्रेस
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, वह योजना जिसमें केन नदी से बेतवा तक पानी का ट्रांसफर शामिल है , जिससे 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई और लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति होगी, सत्ता में भाजपा के पूरे कार्यकाल के दौरान कागज पर ही रहा। जैसा कि कांग्रेस स्पष्ट रूप से बताती है।
पानी है बड़ा मुद्दा
पन्ना और टीकमगढ़ जिलों को जल जीवन मिशन द्वारा जल आपूर्ति में पिछड़े जिलों के रूप में पहचाना गया है, जहां केवल 42% घरों में नल कनेक्शन है। यह राज्य के लगभग 61% परिवारों के औसत से काफी पीछे है। हालांकि, यह मध्य प्रदेश के लिए 2019 के 12% के आंकड़े से काफी बेहतर है।
2023 के विधानसभा चुनावों से पहले, भाजपा सरकार ने प्रगति दिखाने के लिए हर घर में पानी की टंकियां लगा दी थी। हर घर नल जल योजना के तहत आने वाले नल के पानी के धीमी गति से आने के कारण, इस क्षेत्र में टावरों के ऊपर बनी पानी की टंकियों पर पानी ही नहीं पहुंच पाता है। यह टंकियां अब ग्रामीणों को अब एक अधूरे बुनियादी वादे की याद दिलाती हैं।

खजुराहो में क्या हैं समस्याएं?
पानी की कमी को देखते हुए खजुराहो की हीरे की खदानें दशकों से पन्ना की बड़े पैमाने पर आदिवासी आबादी के लिए आजीविका का वैकल्पिक स्रोत रही हैं। कमाई मामूली है, 8 घंटे के काम के लिए 250-300 रुपये और हीरा मिलने पर अतिरिक्त 400 रुपये। हालांकि, अब एक-एक कर खदानें बंद हो रही हैं क्योंकि मौजूदा खदानों का भंडार ख़त्म हो गया है और संरक्षित वन क्षेत्रों में नई खदानें खोलने पर प्रतिबंध हैं।
खजुराहो लोकसभा क्षेत्र
1999 के आम चुनावों को छोड़कर बीजेपी 1989 से लगातार हर चुनाव में खजुराहो सीट जीत रही है। पिछले चुनावों की बात की जाये तो 2019 के चुनाव में भाजपा को यहां 64.49% वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस को 25.34% और सपा को 3.19% वोट मिले थे। वहीं, लोकसभा चुनाव 2014 में बीजेपी को 54.31%, कांग्रेस को 26.01%, सपा को 4.58% और बसपा को 6.9% वोट मिले थे।
क्या हैं लोगों की समस्याएं?
इंडियन एक्स्प्रेस से बात करते हुए माइन वर्कर विष्णु गोंड ने बताया कि उनके गांव में दो हैंडपंपों में से एक अब काम नहीं करता है। गोंड कहते हैं, “मुझे इस चुनाव से कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि सरपंच से लेकर विधायक तक, कोई भी हमसे मिलने नहीं आता, हमें चाहिए नौकरियां।”
वहीं, नाम न छापने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “ऐसा नहीं है कि बुंदेलखंड में हीरे के सारे भंडार ख़त्म हो गए हैं। कुछ खदानें सूख गई हैं। हम वन क्षेत्रों में खनन कार्यों का विस्तार करने के लिए अन्य समाधानों के साथ-साथ कानूनी उपायों पर भी काम कर रहे हैं।”

भाजपा नेता का कहना- स्थिति में हुआ है सुधार
पन्ना के वरिष्ठ भाजपा नेता राजेंद्र कुशवाह ने जल परियोजनाओं में देरी पर कहा, “स्थिति में काफी सुधार हुआ है। पानी और अन्य नागरिक मुद्दों को उठाने और तुरंत एक्शन के लिए एक कॉल सेंटर है। हम सूखे जैसी स्थितियों से पहले आपूर्ति को पूरा करने के लिए भी दौड़ रहे हैं।”
पन्ना में नहीं है नौकरी
सरकोहा गांव में खोदी गई मिट्टी के एक टीले के ऊपर खड़े होकर किम्बरलाइट तक पहुंचने के लिए चार मजदूर निगरानी कर रहे हैं, जिसमें हीरे का भंडार हो भी सकता है और नहीं भी। इंडियन एक्स्प्रेस से बातचीत के दौरान खदान संचालक विजेंद्र कुमार ने कहा, “हमें उतनी मात्रा में हीरे नहीं मिल रहे हैं और इस ऑपरेशन को चलाना महंगा है, मैं कुछ और करूंगा।” विजेंद्र को चिंता है कि उन्हें बाहर जाना पड़ सकता है क्योंकि पन्ना में कोई नौकरियां नहीं हैं।
पन्ना के कृषि महाविद्यालय के बाहर एक नवनिर्मित कृषि महाविद्यालय में बी.एससी (कृषि) के छात्रों को संस्थान में अपर्याप्त सुविधाओं से शिकायत है। 19 साल के स्टूडेंट संजीव कुमार ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “उन्होंने एक सुंदर इमारत बनाई लेकिन वहां केवल चार कक्षाएं और 5 शिक्षक हैं। वह भी हमारे विरोध प्रदर्शन के बाद।” संजीव इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि वह कोर्स के बाद क्या करेंगे। वह कहते हैं, ”सरकारी वेकेंसी भी चुनावों पर निर्भर करती हैं और यही कारण है कि वह मोदी सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना के खिलाफ हैं। कम से कम चुनाव के नाम पर कुछ काम तो हो जाता है।”

खजुराहो लोकसभा क्षेत्र
खजुराहो लोकसभा क्षेत्र में पिछली बार भाजपा के वी डी शर्मा ने 4.92 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। वहीं दूसरे स्थान पर कांग्रेस की कविता सिंह थी जिन्हें 3.18 लाख (25.34%) वोट मिले थे। इस बार अंतिम क्षण में INDIA गठबंधन के उम्मीदवार, समाजवादी पार्टी की मीरा दीपनारायण यादव का नामांकन खारिज होने के बाद विष्णु दत्त शर्मा के लिए आगामी मुकाबला और भी आसान माना जा रहा है। गठबंधन अब फॉरवर्ड ब्लॉक के उम्मीदवार आरबी प्रजापति का समर्थन कर रहा है।
टीकमगढ़ (अनुसूचित जाति आरक्षित) लोकसभा क्षेत्र
खजुराहो की तरह टीकमगढ़ भी दशकों से भाजपा का गढ़ रहा है, जहां मौजूदा सांसद वीरेंद्र खटिक 2009 से जीत रहे हैं। कांग्रेस ने पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के उपाध्यक्ष पंकज अहिरवार को मैदान में उतारा है, जो नौकरियों की कमी और जल संकट के कारण माइग्रेशन के मुद्दों को उठा रहे हैं। पिछले चुनाव में वीरेंद्र खटिक ने 6.72 लाख (61.30%) वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर कांग्रेस के किरण अहिरवार थे जिन्हें 3.24 लाख (29.56%) वोट मिले थे।
प्रवासी मजदूरों की समस्याएं
प्रवासी मजदूर भक्ति आदिवासी ने इंडियन एक्स्प्रेस से कहा, “मेरा पूरा परिवार मेरे साथ काम करता है। गांव आमतौर पर आधे साल खाली रहता है। अगर पानी की अच्छी आपूर्ति होती, तो हम खेती करते, यहीं रुक जाते।” कल्याणपुर में कक्षा 8 तक के छात्रों वाले एकमात्र स्कूल की प्रिंसिपल उमा खरे का कहना है, ” क्षेत्र का एकमात्र हैंडपंप अक्सर जंग लगे भूरे रंग का पानी देता है जो पीने के लिए नहीं है। लगभग 50% छात्र कक्षा 7 के बाद राज्य के बाहर अपने माता-पिता के साथ काम करने के लिए पढ़ाई छोड़ देते हैं।”