लोकसभा चुनाव 2024 में दो चरणों में हुए मतदान का अंतिम आंकड़ा चुनाव आयोग ने जारी कर दिया है। यह क्रमश: 66.14 और 66.71 प्रतिशत बताया गया है। दो चरणों में 189 सीटों पर चुनाव हुए हैं। बताया जाता है कि इन सीटों पर पिछले चुनाव की तुलना में तीन से चार प्रतिशत कम वोटिंग हुई है।
कम मतदान से किसको नुकसान?
इस सवाल पर बहस पहले चरण के मतदान के बाद से ही शुरू हो गई है। कई लोग मान रहे हैं कि यह भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। लेकिन, आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि वोटिंग पर्सेंटेज का जीत से कोई सीधा संबंध नहीं है।
कई उदाहरण ऐसे हैं जहां कम वोटिंग पर्सेंटेज पर ज्यादा सीटें आ गई हैं और इसका उल्टा भी हुआ है। उदाहरण के लिए पहले चुनाव (1951-52) की बात करें तो केवल 45.67 फीसदी वोटिंग के साथ कांग्रेस ने 364 (489 में से) सीटें जीत ली थीं। जबकि, 2019 में रिकॉर्ड 67.4 प्रतिशत मतदान होने के बावजूद भाजपा को 303 सीटें ही आईं।

इसी तरह अगर 1998 और 1999 के चुनावों पर नजर डालें तो इनमें मतदान का प्रतिशत क्रमश: 61.97 और 59.99 रहा था। लेकिन, दोनों ही चुनावों में बीजेपी 182 सीटों के साथ ही सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई। इसके उलट, कांग्रेस को 1991-92 में केवल 55.88 फीसदी मतदान होने के बावजूद 244 सीटें मिल गई थीं।
अब तक के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत और नतीजे कैसे रहे, इस टेबल में देखें
चुनावी वर्ष | कितनी सीटें जीतीं | किस पार्टी ने | कुल मतदान (प्रतिशत) |
1951 | 364 | कांग्रेस | 45.67 |
1957 | 371 | कांग्रेस | 47.74 |
1962 | 361 | कांग्रेस | 55.42 |
1967 | 283 | कांग्रेस | 61.04 |
1971 | 352 | कांग्रेस | 55.27 |
1977 | 295 | बीएलडी | 60.49 |
1980 | 353 | कांग्रेस | 56.92 |
1984-85 | 414 | कांग्रेस | 64.01 |
1989 | 197 | कांग्रेस | 61.95 |
1991-92 | 244 | कांग्रेस | 55.88 |
1996 | 161 | बीजेपी | 57.94 |
1998 | 182 | बीजेपी | 61.97 |
1999 | 182 | बीजेपी | 59.99 |
2004 | 145 | कांग्रेस | 58.07 |
2009 | 206 | कांग्रेस | 58.21 |
2014 | 282 | बीजेपी | 66.44 |
2019 | 303 | बीजेपी | 67.40 |
चुनाव के नतीजों के लिहाज से मतदान-प्रतिशत से ज्यादा महत्वपूर्ण है वोट को सीटों में बदलने की पार्टियों की क्षमता। इस क्षमता के लिहाज से 1951 से 2019 तक कौन पार्टी भारी पड़ी वह इस टेबल को देख कर समझा जा सकता है।
चुनावी वर्ष | सीटें मिलीं | सबसे बड़ी पार्टी | पार्टी को मिले वोट (प्रतिशत) |
1951 | 364 | कांग्रेस | 45.0 |
1957 | 371 | कांग्रेस | 47.8 |
1962 | 361 | कांग्रेस | 44.7 |
1967 | 283 | कांग्रेस | 40.8 |
1971 | 352 | कांग्रेस | 43.7 |
1977 | 295 | बीएलडी | 41.3 |
1980 | 353 | कांग्रेस | 42.7 |
1984-85 | 414 | कांग्रेस | 48.1 |
1989 | 197 | कांग्रेस | 39.4 |
1991-92 | 244 | कांग्रेस | 36.4 |
1996 | 161 | बीजेपी | 20.3 |
1998 | 182 | बीजेपी | 25.6 |
1999 | 182 | बीजेपी | 23.8 |
2004 | 145 | कांग्रेस | 26.5 |
2009 | 206 | कांग्रेस | 28.6 |
2014 | 282 | बीजेपी | 31.3 |
2019 | 303 | बीजेपी | 37.7 |

वोट को सीट में बदलने की क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है। मैदान में जितने ज्यादा उम्मीदवार होते हैं वोट को सीटों में बदलने की चुनौती उतनी बढ़ जाती है। इस लिहाज से यह चुनौती लगातार बढ़ती गई है। 1951-52 के पहले चुनाव में महज 53 पार्टियां मैदान में थीं। 2019 में यह संख्या 673 पर पहुंच गई। यानि, 12 गुना ज्यादा। देखिए यह टेबल
चुनावी वर्ष | कुल पार्टियां | मान्यताप्राप्त राष्ट्रीय दल | मान्यताप्राप्त क्षेत्रीय दल |
1951 | 53 | 418 | 34 |
1957 | 15 | 421 | 31 |
1962 | 27 | 440 | 28 |
1967 | 25 | 440 | 43 |
1971 | 53 | 451 | 40 |
1977 | 34 | 481 | 49 |
1980 | 36 | 485 | 34 |
1984-85 | 35 | 462 | 66 |
1989 | 113 | 471 | 27 |
1991-92 | 145 | 473 | 51 |
1996 | 209 | 403 | 129 |
1998 | 176 | 387 | 101 |
1999 | 169 | 369 | 158 |
2004 | 230 | 364 | 159 |
2009 | 363 | 376 | 146 |
2014 | 464 | 342 | 182 |
2019 | 673 | 397 | 136 |
कम मतदान की वजह
कम मतदान के पीछे एक कारण माना जाता है कि वोटर्स में मतदान के प्रति उत्साह नहीं है। इस उदासीनता को अक्सर सत्ता विरोधी लहर से जोड़ कर भी देख लिया जाता है। वैसे इसके कई कारण होते हैं। इस चुनाव में गर्मी भी एक कारण हो सकता है। इसके अलावा फसलों की कटाई का मौसम, छुट्टी, शहरी मतदाताओं की वोट देने के प्रति पारंपरिक उदासीनता, पलायन आदि कारण हो सकते हैं। पहली बार वोट डालने वालों की उदासीनता भी एक बड़ी वजह मानी जा सकती है। वोट डालने का अधिकार पा चुके करीब 60 फीसदी नौजवानों ने अपना वोटर कार्ड ही नहीं बनवाया।