1989 का लोकसभा चुनाव भारत में चुनावों के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि 1989-1991 के बीच 19 महीनों के अंतराल में भारत ने दो लोकसभा चुनाव और दो प्रधानमंत्री देखे।
1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार घोटालों ने उनकी सरकार द्वारा किए गए सुधारों पर ग्रहण लगा दिया। कांग्रेस ने केंद्र में अपनी सत्ता खो दी लेकिन वीपी सिंह द्वारा गठबंधन सरकार बनाने के बाद राजीव ने चंद्रशेखर को आगे बढ़ाया और कुछ ही महीनों के भीतर उन्हें हटा दिया।
जब बदली गयी मतदान की आयु
दिसंबर 1988 में, राजीव गांधी की सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 326 में संशोधन करके मतदान की आयु 21 साल से घटाकर 18 वर्ष कर दी, जिससे लगभग 4.7 करोड़ नए मतदाता जुड़ गए। दल-बदल विरोधी कानून (1985), कंपनियों द्वारा राजनीतिक चंदे पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन (1985) और राजनीतिक हित में धार्मिक संस्थानों और उनके धन के दुरुपयोग (1988) को रोकने के लिए बनाए गए एक कानून के बाद यह सरकार का चौथा चुनावी सुधार था।
वीपी सिंह के साथ राजीव गांधी के मतभेद
अपने वित्त मंत्री वीपी सिंह के साथ राजीव गांधी के मतभेद का संबंध कई भ्रष्टाचार विरोधी छापों से जुड़ा था, जो कई प्रमुख व्यवसायियों पर वीपी सिंह के आदेश पर किए गए थे। इन बिजनेसमैन में से कई प्रधानमंत्री के मित्र थे। जैसे ही इनमें से कुछ व्यक्तियों को जेल भेज दिया गया और “छापा राज” पर हंगामा तेज हो गया, राजीव ने जनवरी 1987 में वीपी सिंह को रक्षा मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया।

वीपी सिंह ने दिए बोफोर्स होवित्जर सौदे की जांच के आदेश
रक्षा मंत्रालय पहुंचते ही वीपी सिंह ने राजीव गांधी द्वारा किए गए बोफोर्स होवित्जर खरीद सौदे की जांच की घोषणा की। जैसे ही मंत्रिमंडल में उनके रिश्ते कड़वे होने लगे वीपी सिंह ने 12 अप्रैल, 1987 को इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस छोड़ दी।
2 अक्टूबर 1987 को वीपी सिंह ने जन मोर्चा नामक एक राजनीतिक मंच का गठन किया। उनके साथ शामिल होने वालों में राजीव के चचेरे भाई अरुण नेहरू और आरिफ मोहम्मद खान शामिल थे, जिन्होंने शाह बानो मुद्दे पर 1986 में राजीव की सरकार छोड़ दी थी।
ऐसे हुआ जनता दल का गठन
जून 1988 में, वीपी सिंह ने विपक्ष के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इलाहाबाद से लोकसभा उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 1977 में जनता का हिस्सा रहे दलों को एक साथ लाने के प्रयास शुरू किए और 11 अक्टूबर 1988 को जयप्रकाश नारायण की जयंती पर, लोक दल और जनता पार्टी के विभिन्न गुटों के साथ जन मोर्चा का विलय करके जनता दल का गठन किया। विपक्ष ने जोशीला नारा दिया, “राजा नहीं फकीर हैं, देश की तकदीर हैं।”
1989 का लोकसभा चुनाव
1989 के चुनाव में 18 से 20 वर्ष की आयु के नए मतदाताओं सहित कुल 49.89 करोड़ भारतीय मतदान करने के पात्र थे। लगभग 62% ने 529 सीटों (उग्रवाद प्रभावित असम को छोड़कर) के लिए 22-26 नवंबर, 1989 तक तीन चरणों में मतदान किया।

चुनाव परिणाम आए तो जनता दल ने 143 सीटें जीतीं थीं। वहीं, भाजपा जिसने 1984 में केवल दो सीटें जीती थीं उसने 85 सीटें जीतीं। सीपीआई (एम) ने 33 सीटें और सीपीआई ने 12 सीटें जीतीं। कांशी राम की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने तीन सीटें जीतीं और उस समय महज 33 साल की उम्र में मायावती पहली बार संसद में पहुंचीं। पिछले चुनाव में 414 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को करारा झटका लगा, लेकिन फिर भी वह 197 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में 39, महाराष्ट्र में 28, कर्नाटक और तमिलनाडु में 27-27 और केरल में 14 सीटें जीतीं।
राजीव ने सरकार बनाने के निमंत्रण को किया अस्वीकार
राजीव द्वारा सरकार बनाने के निमंत्रण को अस्वीकार करने के बाद जनता दल के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय मोर्चा गठबंधन ने सत्ता संभाली। वीपी सिंह ने 2 दिसंबर 1989 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली जबकि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल उनके उप-प्रधानमंत्री थे। सीपीआई (एम) के नेतृत्व में भाजपा और वाम मोर्चे ने वीपी सिंह की सरकार को बाहर से समर्थन दिया। सीपीआई (एम) के हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योति बसु, सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता, बीजेपी के एलके आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी हर मंगलवार को डिनर और चर्चा के लिए प्रधान मंत्री से मिलते थे।
मंडल और मंदिर की राजनीति
राष्ट्रीय मोर्चे में समन्वय, परस्पर विरोधी महत्वाकांक्षाएं और आंतरिक कमज़ोरियों के वही मुद्दे थे जिन्होंने एक दशक पहले जनता पार्टी को कमजोर कर दिया था। देवी लाल ने एक साक्षात्कार में वीपी सिंह को बिना रीढ़ की हड्डी वाला कहा, जिसके कारण 1 अगस्त 1990 को उन्हें बर्खास्त कर दिया गया।

15 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की, जिसमें सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की गई थी। सिंह का एक उद्देश्य ओबीसी को देवीलाल से अलग करना था, जिनका जाट समुदाय ओबीसी नहीं था। इस घोषणा के कारण छात्रों और जाटों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किया।
विश्वास मत हारने पर वीपी सिंह को देना पड़ा इस्तीफा
23 अक्टूबर 1990 को लालू प्रसाद यादव की जनता दल सरकार ने बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा को रोक दिया और भाजपा नेता को गिरफ्तार कर लिया। बीजेपी ने इसका जवाब केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेकर दिया। 7 नवंबर, 1990 को वीपी सिंह विश्वास मत हार गए और उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
चंद्रशेखर बने नए प्रधानमंत्री
जिसके बाद सरकार बनाने के लिए जनता दल के 64 सांसदों ने एक नया गुट, जनता दल (सोशलिस्ट) का गठन किया, जिसका नेतृत्व चंद्रशेखर ने किया। उन्होंने 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, और देवी लाल उनके उपप्रधानमंत्री बने थे। जुलाई 1979 में चरण सिंह की तरह चन्द्रशेखर को भी कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। कुछ समय बाद कांग्रेस ने आरोप लगाना शुरू कर दिया कि पीएम राजीव गांधी की जासूसी कर रहे थे तो चंद्रशेखर को एहसास हुआ कि कांग्रेस जल्द ही समर्थन वापस ले सकती है। जिसके बाद 6 मार्च 1991 को पीएम ने इस्तीफा दे दिया और लोकसभा भंग करने की सिफारिश कर दी।