उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह सवाल जोर-शोर से पूछा जा रहा है कि आखिर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव बार-बार प्रत्याशियों को क्यों बदल रहे हैं? कुछ लोकसभा सीटें तो ऐसी हैं जहां पर प्रत्याशी दो बार बदले जा चुके हैं। कुल मिलाकर 7 सीटों के लिए 17 प्रत्याशियों का एलान पार्टी कर चुकी है।
ताजा मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीट मेरठ-हापुड़ का है। यहां से सपा ने एक बार फिर अपने प्रत्याशी को बदल दिया है। सबसे पहले यहां से एडवोकेट भानु प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया गया। जब पार्टी को पता चला कि मेरठ के सरधना से विधायक अतुल प्रधान पार्टी के इस फैसले से नाराज हैं तो अतुल प्रधान को टिकट थमा दिया गया। लेकिन अब अतुल प्रधान का भी टिकट काटकर सुनीता वर्मा को दे दिया गया है। इसे लेकर सोशल मीडिया पर अतुल प्रधान के समर्थकों ने नाराजगी जाहिर की है। अतुल प्रधान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा के बड़े चेहरे हैं।
किन-किन सीटों पर बदले प्रत्याशी
मेरठ-हापुड़ के अलावा समाजवादी पार्टी अब तक बदायूं, बागपत, मुरादाबाद, मिश्रिख, गौतम बुद्ध नगर और बिजनौर में इस तरह के हालात का सामना कर चुकी है।
बदायूं से नहीं लड़ेंगे शिवपाल?
बदायूं लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने सबसे पहले अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया लेकिन बाद में यहां से अपने राष्ट्रीय महासचिव और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव को टिकट दे दिया। अब कहा जा रहा है कि शिवपाल यादव बदायूं से चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनकी जगह उनके बेटे आदित्य यादव चुनाव मैदान में उतरेंगे।
इसी तरह मिश्रिख लोकसभा सीट पर भी पार्टी ने दो बार प्रत्याशी बदल दिया है। यहां से सपा ने सबसे पहले पूर्व मंत्री रामपाल राजवंशी को प्रत्याशी बनाया था। इसके बाद उनके बेटे मनोज राजवंशी को प्रत्याशी बनाया गया लेकिन अब मनोज राजवंशी की पत्नी संगीता राजवंशी को प्रत्याशी घोषित कर दिया गया है।
रामपुर
रामपुर में तो समाजवादी पार्टी के नेताओं ने अखिलेश यादव के इस सीट से चुनाव न लड़ने पर चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया था। इसके बाद यहां के कद्दावर नेता आज़म खान के करीबी आसिम राजा ने अपना नामांकन किया और खुद को सपा का उम्मीदवार बताया। लेकिन चूंकि उनके पास सिंबल नहीं था, इसलिए उनका नामांकन रद्द हो गया और अखिलेश यादव ने मोहिबुल्लाह नदवी को चुनाव मैदान में उतार दिया। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर चुनाव का बहिष्कार करना एक बड़ी घटना थी।
सीट | पहले उम्मीदवार का नाम | दूसरे उम्मीदवार का नाम | तीसरे उम्मीदवार का नाम |
मेरठ-हापुड़ | भानु प्रताप सिंह | अतुल प्रधान | सुनीता वर्मा |
बदायूं | धर्मेंद्र यादव | शिवपाल यादव | – |
मिश्रिख | रामपाल राजवंशी | मनोज राजवंशी | संगीता राजवंशी |
मुरादाबाद | एसटी हसन | रुचि वीरा | – |
बागपत | मनोज चौधरी | अमरपाल शर्मा | – |
गौतम बुद्ध नगर | डॉक्टर महेंद्र नागर | राहुल अवाना | डॉक्टर महेंद्र नागर |
बिजनौर | यशवीर सिंह | दीपक सैनी | – |
मुरादाबाद में एसटी हसन की जगह रुचि वीरा
रामपुर से भी खराब हालत मुरादाबाद में देखने को मिले, जहां पर पार्टी ने सीटिंग सांसद एसटी हसन को पहले टिकट दिया। लेकिन बाद में यहां से बिजनौर की पूर्व विधायक रुचि वीरा को टिकट थमा दिया। पार्टी के इस फैसले से नाराज होकर बड़ी संख्या में सपा कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए और उन्होंने रुचि वीरा का प्रचार न करने का ऐलान कर दिया। खुद सांसद एसटी हसन ने भी इस बात को कहा है कि वह मुरादाबाद में सपा प्रत्याशी रुचि वीरा के लिए प्रचार नहीं करेंगे।
रामपुर और मुरादाबाद की सीटों पर सपा का मजबूत आधार है। पिछले लोकसभा चुनाव में दोनों सीटों पर सपा को ही जीत मिली थी। हालांकि रामपुर के उपचुनाव में सपा प्रत्याशी आसिम राजा बीजेपी प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी से हार गए थे।
बागपत में दिया नया उम्मीदवार
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक और सीट बागपत में भी सपा मुखिया का कंफ्यूजन देखने को मिला। यहां पर सपा ने पहले मनोज चौधरी को उम्मीदवार बनाया था लेकिन बाद में टिकट बदलते हुए अमरपाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतार दिया।
गौतम बुद्ध नगर में नागर पर ही भरोसा
ऐसा ही कुछ राजधानी दिल्ली से सटी गौतम बुद्ध नगर सीट पर भी देखने को मिला। यहां पार्टी ने सबसे पहले डॉक्टर महेंद्र नागर को उम्मीदवार बनाया लेकिन कुछ दिन बाद अपने युवा कार्यकर्ता राहुल अवाना को टिकट दे दिया। इसके बाद न जाने क्यों राहुल अवाना से टिकट वापस लेकर एक बार फिर से डॉक्टर महेंद्र नागर को प्रत्याशी बना दिया गया।
बिजनौर सीट पर भी सपा ने प्रत्याशी बदल दिया। यहां से पहले यशवीर सिंह को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था लेकिन बाद में नूरपुर के सपा विधायक राम अवतार सैनी के बेटे दीपक सैनी को उम्मीदवार घोषित कर दिया।
बनाया था मजबूत गठबंधन
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने निश्चित तौर पर राजनीतिक परिपक्वता दिखाई थी और तमाम छोटे दलों को साथ लेकर एक मजबूत गठबंधन तैयार किया था। उन्होंने ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल, केशव देव मौर्य के महान दल सहित कई अन्य छोटे राजनीतिक दलों को जोड़ा था और 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले सपा की सीटों में लगभग ढाई गुना बढ़ोतरी की थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में 47 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 111 हो गया था।
क्यों बदलने पड़ रहे प्रत्याशी?
अखिलेश यादव को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता मुलायम सिंह यादव दिग्गज राजनेता थे। खुद अखिलेश यादव भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के 5 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी आखिर इतना कन्फ्यूजन किस बात का है कि उन्हें बार-बार प्रत्याशियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
राजभर, जयंत और पल्लवी ने छोड़ा साथ
2022 के विधानसभा चुनाव में उनके साथी बने ओमप्रकाश राजभर और जयंत चौधरी उन्हें छोड़कर जा चुके हैं। इसके अलावा अपना दल (कमेरावादी) की नेता और सपा के टिकट पर विधायक बनीं पल्लवी पटेल ने भी सपा का साथ छोड़ दिया है।
अखिलेश यादव के सामने 2027 का विधानसभा चुनाव बहुत बड़ी चुनौती है। अगर लोकसभा चुनाव 2024 में उनकी पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा तो इससे कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ेगा और चुनाव के दौरान बार-बार प्रत्याशी बदलने से निश्चित रूप से कार्यकर्ताओं का हैरान और परेशान होना लाजिमी है।