न‍िरंजन कुमार ने 2021 में इंटर की पढ़ाई पूरी की है। उन्‍हें पता नहीं है क‍ि उनके लोकसभा क्षेत्र सारण (पुराना नाम छपरा) में क‍िस पार्टी से कौन नेता चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पड़ोसी हर‍ि नारायण महतो की उम्र उनसे दोगुनी है। पर उन्‍हें भी नहीं पता क‍ि सारण में चुनाव क‍िन नेताओं के बीच है। असल में छपरा शहर से सटे नवीगंज की इस महादल‍ित बस्‍ती के ज्‍यादातर लोगों को पार्ट‍ियों के चुनाव च‍िह्न या उम्‍मीदवारों के नाम की कोई जानकारी नहीं है।

सारण में पांचवे चरण में 20 मई को मतदान हुआ। यहां मुख्‍य मुकाबला मौजूदा सांसद बीजेपी के राजीव प्रताप रूड़ी और राजद की रोह‍िणी आचार्य के बीच है। रोह‍िणी राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बेटी हैं और पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। यह सीट मतदान के बाद भी तब चर्चा में आ गई जब राजद और बीजेपी समर्थकों की ह‍िंसा में एक मौत हो गई।

मतदान से एक सप्‍ताह पहले हम नबीगंज की महादल‍ित बस्‍ती (जहां ज्‍यादातर रव‍िदास पर‍िवार रहते हैं) में पहुंचे तो लोगों ने बताया क‍ि उनकी बस्‍ती में क‍िसी पार्टी का उम्‍मीदवार वोट मांगने नहीं आया है।

नबीगंज की महादल‍ित बस्‍ती में नहीं पहुंचा कोई उम्मीदवार

करीब सौ घरों की इस बस्‍ती में 29 अप्रैल को आग लग गई थी। इसमें करीब दर्जन भर पर‍िवारों ने अपना सब कुछ खो द‍िया था। लोगों ने बताया क‍ि इस घटना के बाद भी कोई उम्‍मीदवार बस्‍ती में नहीं आया।

जब कोई उम्‍मीदवार आया नहीं, आप लोग उम्‍मीदवार या पार्टी का न‍िशान पहचानते नहीं तो फ‍िर वोट कैसे करेंगे? जब ग्रामीणों के सामने हमने यह सवाल रखा तो हर‍ि नारायण महतो ने कहा, ‘अभी 20 तारीख तक का समय है, उम्‍मीदवार का पता चल जाएगा।’ महतो बताते हैं- हमलोग मतदान से दो-चार द‍िन पहले फैसला लेते हैं। समाज में बैठक होती है। उसमें से क‍िसी एक आदमी को चुना जाता है। उसी की राय के आधार पर सभी लोग वोट डालते हैं।

केवल 5-10 घरों में हैं शौचालय

जैसे नेताओं ने इस इस बस्‍ती से दूरी बनाए रखी, वैसे व‍िकास भी यहां से दूर है। शौचालय क‍ितने घरों में है? यह पूछने पर महतो कहते हैं, ‘नहीं के बराबर’। न‍िरंजन और स्‍पष्‍ट करते हैं, ‘बहुत ज्‍यादा हुआ तो 5-10 घरों में’।

यहां के लोगों को मुफ्त राशन योजना और नल-जल योजना का फायदा तो म‍िल रहा है, लेक‍िन प्रधानमंत्री आवास योजना या शौचालय बनाने के ल‍िए दी जाने वाली सरकारी मदद का फायदा इन्‍हें नहीं म‍िल पाया है।

शौचालय के ल‍िए सरकारी मदद का फॉर्म भरने के नाम पर ल‍िए गए पैसे

न‍िरंजन ने बताया, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर लेने के ल‍िए 350 रुपये देकर फॉर्म भरवाए हैं। इसी बीच, एक मह‍िला बोल पड़ीं- 350 नहीं, 550 रुपये। तब न‍िरंजन ने स्‍पष्‍ट क‍िया क‍ि 200 रुपये शौचालय के ल‍िए सरकारी मदद का फॉर्म भरने के नाम पर ल‍िए गए थे। उनका कहना है क‍ि इस बात को छह साल हो गए। अभी तक इन्‍हें यह भी पता नहीं है क‍ि इनका फॉर्म भरा गया या नहीं या ये योजना का फायदा उठाने के पात्र हैं या नहीं।

2022 में आई जात‍िगत सर्वे की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक ब‍िहार में र‍व‍िदास (चमार) समुदाय के लोगों की संख्‍या 68 लाख 69 हजार 664 बताई गई है। यह कुल आबादी का करीब 5.25 प्रत‍िशत है।

इस समुदाय में जगजीवन राम और राम सुंदर दास जैसे लोग हुए हैं ज‍िन्‍होंने राजनीत‍ि में बड़ा नाम क‍िया है। जगजीवन राम को इंद‍िरा गांधी भी ‘बाबूजी’ कहती थीं । 1977 में वह उप प्रधानमंत्री भी बने थे। राम सुंदर दास 21 अप्रैल, 1979 से 17 फरवरी, 1980 तक ब‍िहार के मुख्‍यमंत्री रहे थे।

महादल‍ित समुदाय में आती हैं 20 अनुसूच‍ित जात‍ियां

महादल‍ित समुदाय में करीब 20 अनुसूच‍ित जात‍ियां आती हैं। नीतीश कुमार ने 2007 में महादल‍ित कैटेगरी बनाई थी। 2009 में रव‍िदास वर्ग को भी इसमें शाम‍िल क‍िया गया था। 2010 ब‍िहार व‍िधानसभा चुनाव के वक्‍त नीतीश कुमार ने इनके ल‍िए करीब दर्जन भर योजनाओं की घोषणा की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार ने राज्‍य के राजस्‍व व‍िभाग से सभी महादल‍ित पर‍िवारों को घर के ल‍िए जमीन द‍ि‍ए जाने के ल‍िए कहा था। पर, नीतीश सरकार की योजना पर पूरी तरह अमल हो पाया है, ऐसा नहीं लगता।

क्या है मुंगेर संसदीय क्षेत्र का हाल?

वैसे, ‘व‍िकास’ की कुछ अलग तस्‍वीर हमें ब‍िहार के दूसरे शहरों में भी द‍िखाई दी। मुंगेर संसदीय क्षेत्र में (जहां से जदयू के लल्‍लन स‍िंंह और राजद की कुमारी अनीता में चुनावी मुकाबला है) शहर के पास ही बांक पंचायत में लोकसभा चुनाव की घोषणा से महज कुछ महीने पहले एक मेड‍िकल कॉलेज सह अस्‍पताल का श‍िलान्‍यास क‍िया गया। लेक‍िन, इसके ल‍िए जमीन लेने का काम अभी तक पूरा नहीं हुआ है। ज‍िन क‍िसानों की जमीनें ली गई हैं, उनमें से कुछ को भुगतान क‍िया जा चुका है, कुछ का अभी बाकी ही है। ज‍िस जमीन के ल‍िए क‍िसानों को भुगतान कर द‍िया गया है, उसका कब्‍जा अब तक सरकार ने नहीं ल‍िया है।

सरकार से पूरा पैसा लेने के बाद भी क‍िसान उस जमीन पर खेती कर रहे हैं। और, ‘अगड़े-प‍िछड़े’ की लड़ाई के बीच जदयू (एनडीए) उम्‍मीदवार ललन स‍िंंह इस अस्‍पताल को मुंगेर के व‍िकास के काम में ग‍िना कर उसके नाम पर वोट मांग रहे थे। यही नहीं, जब इस अस्‍पताल का श‍िलान्‍यास हुआ था, तब ब‍िहार में एनडीए के व‍िरोधी महागठबंधन (राजद, जदयू, कांग्रेस) की सरकार थी। अस्‍पताल के ल‍िए ज‍िस गांव का चयन क‍िया गया वह यादवों के बाहुल्‍य वाला गांव है।

महाव‍िद्यालय पर लगा है ताला

यही नहीं, फरवरी, 2023 में मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने मुंगेर में एक वाण‍िकी महाव‍िद्यालय का उद्घाटन क‍िया था। लेक‍िन, अभी तक इस कॉलेज में ताला लगा है। पढ़ाई की व्‍यवस्‍था नहीं की जा सकी है। कैंपस में लगे पेड़-पौधों की देखभाल और इमारत की सफाई आद‍ि के ल‍िए सरकारी खर्च पर 50 से ज्‍यादा मजदूर लगातार काम कर रहे हैं, लेक‍िन छात्रों को अब भी इंतजार है क‍ि कब इस कॉलेज का ‘व‍िकास’ हो और वे दाख‍िला ले सकें।

इन पर‍िस्‍थ‍ित‍ियों के बीच भी चुनाव में ‘व‍िकास’ एक मुद्दा बना हुआ है। यह अलग बात है क‍ि इस पर हावी जात‍ि, धर्म और आरक्षण जैसे मुद्दे ही हैं।