एमएनएस चीफ राज ठाकरे लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर अपनी निष्ठा बदलने की कोशिश को अंतिम रूप देने में लगे हैं। वह बीजेपी के खेमे में जाना चाहते हैं। उनकी पार्टी अमित शाह से ठाकरे की मुलाकात को ‘सकारात्मक’ बता चुकी है। पर, सवाल है कि पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी को ‘फेंकू’, ‘हिटलर’, ‘झूठा’ आदि बता चुके राज ठाकरे इस बार क्यों उनके लिए बैटिंंग करना चाहते हैं और बीजेपी को उन्हें साथ लेने से क्या हासिल हो सकता है? इस सवाल का जवाब एनएनएस के चुनावी प्रदर्शन के आंकड़ों और बीजेपी की एक चुनावी महत्वाकांक्षा (एनडीए 400 पार) में ढूंढा जा सकता है। लेकिन, पहले थोड़ा पीछे चलते हैं।
पिछले साल (जनवरी 2023) की बात है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे या MNS) के प्रमुख राज ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर थे। डॉ. डी.वाय. पाटिल यूनिवर्सिटी और जागतिक मराठी अकेडमी द्वारा पिंपरी में आयोजित जागतिक मराठी सम्मेलन में ठाकरे ने कहा था, ‘प्रधानमंत्री को सभी राज्यों को अपने बच्चों की तरह समझना चाहिए और सबके साथ समान बर्ताव करना चाहिए। वह गुजरात से आते हैं, केवल इसलिए उन्हें गुजरात के पक्ष की बात नहीं करनी चाहिए। यह उनके कद को शोभा नहीं देता।’
ठाकरे ने किस संदर्भ में कही थी यह बात? MNC प्रमुख की उक्त टिप्पणी 2022 की एक घटना के संदर्भ में मानी गई थी। तब वेदांता समूह और ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन ने गुजरात में अपना नया सेमीकंडक्टर प्लांट स्थापित करने के लिए गुजरात सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने एमओयू को “भारत की सेमीकंडक्टर विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं को गति देने वाला एक महत्वपूर्ण कदम” कहा था। उन्होंने कहा था कि 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश अर्थव्यवस्था और नौकरियों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव पैदा करेगा। इससे सहायक उद्योगों के लिए एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र भी बनेगा और हमारे एमएसएमई को मदद मिलेगी”।
तब कुछ अधिकारियों ने कहा था कि असल में यह प्लांट महाराष्ट्र में लगने वाला था। उनका कहना था कि गुजरात सरकार के साथ करार से करीब दो महीने पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ एक बैठक में प्लांट लगाने की योजना को “लगभग” अंतिम रूप दिया जा चुका था। विपक्षी दलों ने तब कहा था कि गुजरात विधानसभा चुनाव से ऐन पहले महाराष्ट्र से परियोजना को गुजरात ‘ले जाने’ के पीछे भाजपा और प्रधानमंत्री का हाथ है।
2019 में हिटलर से की थी तुलना और मोदी-मुक्त भारत की कामना
2019 में 6 अप्रैल को तो राज ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बेहद आक्रामक जुबानी हमला बोला था। मुंबई में एक सभा में उन्होंने कहा था, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे अडॉल्फ हिटलर हैं।’ उन्होंने कहा था, ‘गुडी पड़वा के मौके पर मैं मोदी-मुक्त भारत की कामना करता हूं।’ उन्होंने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने की वकालत करते हुए लोगों से अपील की थी कि मोदी को मौका दिया तो राहुल गांधी को भी देकर देखें।
राज ठाकरे ने तब कहा था, ‘इस समय देश दो बड़े संकटों का सामना कर रहा है। एक अमित शाह और दूसरा नरेंद्र मोदी। हमारे प्रधानमंत्री फेंकू के तौर पर जाने जाते हैं। इंटरनेट पर फेंकू सर्च कीजिए तो हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम सामने आता है।’
करीब दो हफ्ता बाद एक और सभा में राज ठाकरे ने कहा था, ‘मैंने मोदी जैसा झूठा अब तक नहीं देखा। वह शहीदों के नाम पर वोट तो मांग रहे हैं, लेकिन 2014 में किए वादों की कोई बात नहीं कर रहे हैं।’
2014 में नरेंद्र मोदी का किया था समर्थन
ये तो बात रही 2019 की। लेकिन, पांच साल पीछे चलें तो यही राज ठाकरे नरेंद्र मोदी के पक्ष में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर रहे थे और राहुल गांधी का मखौल उड़ा रहे थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का पुरजोर समर्थन करते हुए शिवसेना के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, उनका यह दांव चला नहीं था।
इससे पहले भी 2011 में जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तो राज ठाकरे गुजरात सरकार के काम की बड़ाई किया करते थे। 2012 में वह नरेंद्र मोदी के शपथ समारोह में भी गए थे।
ठाकरे पर मंडरा रहा अप्रासंगिक हो जाने का खतरा
राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर 2006 में एमएनएस बनाई थी। तब से वह कोई शानदार प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं। शिवसेना एक बार महाराष्ट्र की सत्ता में भी आ गई और आज भी अप्रासंगिक नहीं हुई है। लेकिन, राज ठाकरे पर महाराष्ट्र की राजनीति में अप्रासंगिक होने का खतरा मंडरा रहा है। इससे बचने की संभावना वह बीजेपी के साथ में तलाशना चाहते हैं।
लगातार गिरता ही रहा है एमएनएस के प्रदर्शन का ग्राफ
2009 के विधानसभा चुनाव में एमएनएस ने 143 उम्मीदवार खड़े किए थे। लेकिन, 288 सदस्यीय विधानसभा में एमएनएस के 13 विधायक ही बन पाए। इन सबको कुल महज 5.71 फीसदी वोट मिले। 2012 के मुंबई महानगर निकाय चुनाव में एमएनएस के 22 उम्मीदवार जीते।
2009 लोकसभा चुनाव में एमएनएस 11 सीटों पर लड़ी, पर एक भी नहीं जीत पाई। उसका वोट शेयर भी कम होकर 4.07 फीसदी रह गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में एमएनएस की हालत और खराब रही। केवल 1.5 प्रतिशत वोट मिले और सीट एक भी नहीं (दस पर लड़ी थी)। 2014 विधानसभा चुनाव में भी एमएनएस नीचे ही गिरी। 239 सीटों पर लड़ने के बावजूद केवल एक सीट जीती और 3.1 प्रतिशत वोट पा सकी। 2019 का लोकसभा चुनाव पार्टी ने नहीं लड़ा।
बीजेपी को क्या हो सकता है फायदा?
महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें (उत्तर प्रदेश के बाद सबसे ज्यादा) हैं। बीजेपी की महत्वाकांक्षा है कि साथियों समेत 45 सीटें उसकी हों। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 25 सीटों पर लड़ कर 23 जीती थीं। शिवसेना ने 23 लड़ कर 18 जीती थीं। कांग्रेस को केवल एक सीट मिली थी (25 पर लड़ने के बाद)। एनसीपी ने 19 उम्मीदवार उतारे थे और चार पर विजय पाई थी।
2019 से 2024 के बीच शिवसेना और एनसीपी टूट गई है और दोनों का मजबूत धड़ा बीजेपी के साथ है। इनके अलावा बीजेपी की अगुआई वाले गठबंधन में रामदास आठवले की आरपीआई, हितेंद्र ठाकुर के नेतृत्व वाली बहुजन विकास अघाड़ी, प्रहार जनशक्ति पार्टी, पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी, रैयत क्रांति संगठन, जनसुराज्य पार्टी, राष्ट्रीय समाज पार्टी शामिल हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के लिए ‘400 पार’ का महत्वाकांक्षी आंकड़ा घोषित कर दिया है। साथ ही, पार्टी चाह रही है कि वोट फीसदी का आंकड़ा भी 50 फीसदी तक ले जाया जाए। ऐसे में पार्टी बूंद-बूंद से घड़ा भरने की नीति पर चलती लग रही है। ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को साथ लेना इस दिशा में कारगर नीति साबित हो सकती है।