पूर्व सांसद और पूर्व कांग्रेस नेता संजय निरुपम की ‘घर वापसी’ हो सकती है। निरुपम ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत दिवंगत शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के आशीर्वाद से की थी।

अनुमान लगाया जा रहा है कि हाल में कांग्रेस छोड़ने वाले संजय निरुपम महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सत्तारूढ़ शिवसेना गुट में शामिल हो सकते हैं। ऐसा क्यों कहा जा रहा है यह आगे जानेंगे, पहले एक नजर संजय निरुपम के शुरुआती दिनों पर:

बिहार निवासी पत्रकार संजय निरुपम

संजय निरुपम मूल रूप से भारत के पूर्वी राज्य बिहार के रोहतास के रहने वाले हैं। कभी वह हिंदी पत्रकारिता का जाना-माना नाम हुआ करते थे। उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना करियर साल  1986 में शुरू किया था। 1988 में वह मुंबई गए जहां उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के उपक्रम जनसत्ता के साथ काम किया।

संजय निरुपम को फिल्मों का भी जबरदस्त शौक रहा है। वह बॉलीवुड स्टार देव आनंद के फैन रहे हैं। निरुपम ने देव आनंद की फिल्म ‘रिटर्न ऑफ ज्वेल थीफ’ (1996) की कहानी भी लिखी, जो क्लासिक ज्वेल थीफ (1967) की अगली कड़ी थी। हालांकि निरुपम की लिखी वह फिल्म कमाई के मामले में सफल रही थी।

संजय राउत से मुलाकात और करियर में आया निर्णायक मोड़

हिंदी सिनेमा के लिए काम करते हुए ही संजय निरुपम की की दोस्ती अपने हमनाम और शिव सेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रवक्ता संजय राउत से हुई, जो उस समय लोकसत्ता (इंडियन एक्सप्रेस का मराठी उपक्रम) से दूरी बना रहे थे।

लोकसत्ता की नौकरी छोड़ने के बाद राउत शिवसेना का मुखपत्र सामना के लिए काम करने लगे। एक रोज राउत ने निरुपम को फोन किया और बताया कि समाना के हिंदी मुखपत्र ‘दोपहर का सामना’ को चलाने के लिए एक हिंदी पत्रकार की जरूरत है।

दरअसल, 1992 के बॉम्बे दंगों के बाद मुंबई की हिंदी भाषी आबादी तक पहुंचने के उद्देश्य से हिंदी संस्करण बाल ठाकरे के दिमाग की उपज थी। उन्हें मुंबई में बसे प्रवासी वोट के मूल्य का एहसास हो चुका था। तब तक मुंबई की आबादी का 20 प्रतिशत “उत्तर भारतीय” हो चुके थे।

दिलचस्प है कि जैसे-जैसे संजय निरुपम और संजय राउत अपने-अपने राजनीतिक करियर में आगे बढ़े, दोनों के बीच दुश्मनी बढ़ती गई। निरुपम को कांग्रेस से बाहर निकाले जाने के असंख्य कारणों में से एक राउत को माना जा रहा है।

अचानक एक दिन ठाकरे ने भेज दिया राज्यसभा

संजय निरुपम 1993 में ‘दोपहर का सामना’ में इसके कार्यकारी संपादक के रूप में शामिल हुए। बाद में उनके करियर में जबरदस्त वृद्धि देखी गई, जब मनमौजी शिवसेना सुप्रीमो ने पत्रकार को 1996 में शिवसेना सांसद के रूप में राज्यसभा में भेज दिया।

निरुपम जल्द ही मुंबई के संपन्न उत्तर भारतीय मतदाताओं तक पहुंचने के लिए शिवसेना के प्रयास का तेजतर्रार चेहरा बन गए। दरअसल, शिवसेना 1960 के दशक के उत्तरार्ध के अपने ‘मराठी माणूस’ एजेंडे से हटकर 1980 के दशक में कट्टरपंथी ‘हिंदुत्व’ को अपनी विचारधारा बना चुकी थी।

घर चलाने के लिए शुरू की गई पत्रिका से शिवसेना का जन्म हुआ था। शिवसेना की स्थापना की कहानी विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Shiv Sena
शिवसेना की स्थापना 19 जून, 1966 को बाल ठाकरे ने की थी। (Photo Credit – Facebook/Shivsena)

अचानक राज्यसभा से इस्तीफा देने के लिए बनाया गया दबाव

साल 2005 में निरुपम को कार्यकाल की समाप्ति से एक वर्ष पहले राज्यसभा सांसद के रूप में पद छोड़ने के लिए कहा गया। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संजय निरुपम उन दिनों भाजपा नेता प्रमोद महाजन के करीबी सहयोगी कहे जाने वाले एक व्यवसायी को रिलायंस इन्फोकॉम के शेयरों के भारी आवंटन का मुद्दा राज्यसभा में उठाने की योजना बना रहे थे।

शिवसेना और भाजपा गठबंधन में थे, ऐसे में शिवसेना नहीं चाहती थी कि संजय निरुपम यह मुद्दा राज्यसभा में उठाए। ऐसे में निरुपम ने सेना छोड़ना पड़ा। अप्रैल 2005 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। जल्द ही उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने 2009 के आम चुनाव में मुंबई उत्तर लोकसभा सीट जीती और एक कड़े मुकाबले में भाजपा के राम नाइक को 6,000 से कुछ अधिक वोटों से हराया।

2014 के बाद पूरे देश में कांग्रेस की हालत तेजी से खराब हुई है। महाराष्ट्र कांग्रेस पर भी इसका असर पड़ा है। 2017 के BMC चुनाव में पार्टी की हार के बाद निरुपम ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।

क्यों शिवसेना (शिंदे) में शामिल हो सकते हैं संजय निरुपम?

पूर्व सांसद संजय निरुपम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना में शामिल हो सकते हैं। निरुपम को कांग्रेस ने ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल’ होने के कारण निकाल दिया है। हालांकि उनका कहना है कि उन्होंने निष्कासन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

संजय निरुपम चाहते थे कि पिछले चुनाव की तरह वह इस बार भी ‘उत्तर पश्चिम मुंबई लोकसभा क्षेत्र’ से चुनाव लड़ें। लेकिन कांग्रेस ने वह सीट उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिवसेना के लिए छोड़ दिया। निरुपम इस बात से नाराज थे।

एमवीए सहयोगी उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अमोल कीर्तीकर को उत्तर पश्चिम मुंबई लोकसभा क्षेत्र से उतारा है। हालांकि, अब भी निरुपम का दावा है कि वह उत्तर पश्चिम मुंबई से ही चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे।

उन्होंने स्पष्ट किया कि वह स्वतंत्र रूप से नहीं बल्कि पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे, जिससे उनके महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ ‘महायुति’ गठबंधन में शामिल होने की अटकलें तेज हो गईं।

दिलचस्प है कि महायुति गठबंधन में सीट-बंटवारे के दौरान मुंबई उत्तर पश्चिम सीट शिवसेना (एकनाथ शिंदे) के खाते में गई है, जिससे निरुपम के लिए इस गुट में शामिल होना काफी संभव हो गया है।

रिपोर्टों से पता चलता है कि शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना अभी भी इस सीट के लिए उपयुक्त उम्मीदवार की तलाश कर रही है। मुंबई उत्तर पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र में मराठी मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि निरुपम क्षेत्र में काफी लोकप्रिय होने के बावजूद एक प्रमुख उत्तर भारतीय चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भले ही निरुपम ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी है, लेकिन भाजपा के भीतर कुछ लोगों ने महायुति गठबंधन में उनके शामिल होने की संभावना का विरोध किया है। कई भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर सीएम एकनाथ शिंदे को टैग करते हुए अपनी आपत्ति जताई है।