लगभग हर लोकसभा या विधानसभा चुनाव में ऐसा होता है कि प्रवासी कामगार वोट डालने अपने शहर या गांव नहीं जा पाते। भारत में प्रवासी कामगारों की एक बड़ी संख्या है और जब वे वोट डालने नहीं जा पाते तो इसका असर कुल वोट प्रतिशत पर भी पड़ता है। 

प्रवासी कामगार भारत की जीडीपी में 10% योगदान देते हैं लेकिन इनका बड़ा तबका चुनाव में वोट डालने से वंचित रह जाता है। इस मामले में उनकी भी तमाम समस्याएं हैं। जैसे- अगर वे चुनाव में वोट डालने के लिए अपने गांव या शहर जाएंगे तो उन्हें अपने दफ्तर या फैक्ट्री से छुट्टी लेनी होगी और आने-जाने में पैसा भी खर्च करना होगा। 

बता दें कि भारत के तमाम राज्यों से लोग अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरे शहरों में जाते हैं और ऐसे में जब वे लोग विधानसभा या लोकसभा चुनाव में वोट डालना चाहते हैं तो उन्हें इन परेशानियों से  जूझना पड़ता है। 

प्रवासी कामगारों की इस तरह की परेशानी देश के अनेक हिस्सों से सामने आती रहती है। जैसे मुंबई या गुजरात या ओडिशा में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी प्रवासी कामगार रहते हैं और वे चुनाव में वोट डालना चाहते हैं लेकिन ऐसी ही तमाम दिक्कतों की वजह से उनके लिए घर आ पाना मुश्किल हो जाता है। 

फोटो पर क्लिक कर पढ़ें- गाजियाबाद और मेरठ सीट पर क्या कहते हैं मतदाता। 

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Lok Sabha election 2024 Ghaziabad: 6 अप्रैल, 2024 को गाजियाबाद में रोड शो के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का मुखौटा पहनकर प्रचार करता बीजेपी समर्थक। (PC-REUTERS/Anushree Fadnavis)

वोट क्यों नहीं दे रहे लोग 

चुनाव आयोग की ओर से जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों ने वोट नहीं डाला था। हैरान करने वाली बात है कि यह आंकड़ा ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस, पुर्तगाल, नीदरलैंड और जर्मनी की कुल आबादी से भी ज्यादा है। इन 30 करोड़ लोगों में से सभी लोग प्रवासी कामगार नहीं हैं, ऐसे में जो सवाल जरूर खड़ा होता है कि अन्य लोग वोट क्यों नहीं दे रहे हैं। 

इंटरनल माइग्रेशन है बड़ी वजह 

भारत का चुनाव आयोग भी इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं करने और मतदान प्रतिशत के न बढ़ने को लेकर चिंता जताता रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि इंटरनल माइग्रेशन लो वोटर टर्नआउट की सबसे बड़ी वजह है। 

पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो साल 1998 में 61.97%, 1999 में 59.99%, 2004 में 57.65%, 2009 में 58.19%, 2014 में 66. 40% और 2019 में कुल 67.36% मतदान हुआ था। निश्चित रूप से मतदान का यह आंकड़ा काफी कम है। 

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पिछले कुछ लोकसभा चुनाव में हुआ मतदान। (PC-TCPD)

विधानसभा और लोकसभा चुनावों में वोटर टर्नआउट को बढ़ाने के लिए कई बार यह सुझाव भी दिया जाता है कि घर से दूर रह रहे लोगों को वहीं पर वोट देने की सुविधा दी जाए जिससे वे अपना वोट भी डाल सकें और उन्हें अपने गांव या शहर जाने के लिए परेशान भी ना होना पड़े। चुनाव आयोग को इस तरह के सुझाव कई बार मिल चुके हैं। 

Indiaspend में छपी खबर के मुताबिक, साल 2010-11 में आई आजीविका ब्यूरो की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रवासी लोगों की एक बड़ी संख्या है जो चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं ले पाती। यह रिपोर्ट पांच प्रदेशों- उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में किए गए सर्वे पर आधारित थी। 

यह सर्वे बताता है कि लगभग 60% लोग ऐसे हैं जिन्होंने कम से कम एक बार चुनाव में वोट नहीं डाला और इसके पीछे वजह यह थी कि वे अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए घर से दूर गए हुए थे। 

रिपोर्ट से पता चलता है कि 54% प्रवासी कामगार ऐसे हैं जो वोट डालने के लिए कभी न कभी घर जरूर लौटे। इनमें से 65% लोग ऐसे हैं जो पिछले पंचायत चुनाव में वोट डालने के लिए घर आए थे जबकि क्रमश: 54% और 40% लोग ऐसे हैं जो पिछले विधानसभा या लोकसभा चुनाव में वोट डालने के लिए अपने घर लौटे थे। 

वोट नहीं डालना चाहते युवा 

हाल ही में आए एक आंकड़े से पता चला है कि भारत में 18 और 19 साल के युवा वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेने के बहुत ज्यादा इच्छुक नहीं हैं। देश भर में इनमें से 40 प्रतिशत से भी कम लोगों ने मतदान के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। कुछ राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में तो एक चौथाई से भी कम रजिस्ट्रेशन हुआ है। 

भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए चुनाव आयोग लगातार कोशिश करता रहता है लेकिन बावजूद इसके मतदान करने को लेकर लोगों में उत्साह नहीं देखा जाता। साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी चुनाव आयोग लगातार मतदाताओं से अपील कर रहा है कि लोग अपने वोट का इस्तेमाल जरूर करें। बीते कुछ सालों में चुनाव आयोग ने कश्मीरी प्रवासी, मिजोरम के रियांग जनजाति के मतदाता और जम्मू के तलवाड़ा प्रवासी कामगार मतदान कर सकें, इसके लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।