भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार को 10 साल पूरे हो चुके हैं। इन दस वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार को अपने सुधारवादी एजेंडे लागू करने में कई तरह के उतार-चढ़ाव और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
सवाल उठता है कि सरकार अपनी विभिन्न नीतियों के माध्यम से ‘अच्छे दिन’ के वादे को पूरा करने के कितनी सफल हुई? आइए, वर्तमान सरकार के शुरुआती वर्षों के पांच महत्वपूर्ण सुधार चुनते हैं, और पड़ताल करते हैं कि योजनाएं कहां तक पहुंची हैं।
2018: आयुष्मान भारत योजना में कई कमी
2019 के चुनावों से कुछ महीने पहले शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना को सरकार ने किफायती हेल्थ-केयर योजना के रूप में प्रचारित किया है। इस योजना के दो घटक हैं: प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों को मजबूत करना और गरीब परिवारों को इलाज के लिए पांच लाख रुपये तक का बीमा प्रदान करना।
समर्थकों का कहना है कि यह योजना गरीबों को अपनी जेब से होने वाले खर्च से बचाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के सतत-विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि इस योजना से अब तक 6.5 करोड़ लोगों को 81,979 करोड़ रुपये का इलाज मिल चुका है।
फिर भी सरकार द्वारा हेल्थ केयर कम खर्च करने के कारण शुरुआत में इस योजना के कार्यान्वयन में दिक्कत आयी थी, पात्र लाभार्थियों का बहिष्कार और आवंटित धन का कम उपयोग, जैसा मुद्दों को सीएजी ने रेखांकित किया था। सीएजी ने ये भी बताया था कि आयुष्मान भारत के लगभग 7.5 लाख लाभार्थी एक ही सेलफोन नंबर – 9999999999 से जुड़े हुए हैं।
सीएजी की रिपोर्ट में लिखा है, “BIS (Beneficiary Identification System) डेटाबेस के डेटा विश्लेषण से पता चला कि बड़ी संख्या में लाभार्थी एक ही या अमान्य मोबाइल नंबर पर पंजीकृत थे। कुल मिलाकर, 1119 से 7,49,820 लाभार्थी BSI डेटाबेस में एक ही मोबाइल नंबर से जुड़े हुए थे…”
9999999999 से जुड़े 7,49,820 लाभार्थियों के अलावा, 1,39,300 लाभार्थी फोन नंबर 8888888888 से जुड़े हुए थे; और 96,046 अन्य लोग 9000000000 नंबर से जुड़े हुए थे। रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 20 सेलफोन नंबर भी थे जिनसे 10,001 से 50,000 लाभार्थी जुड़े हुए थे।
ये भी पढ़ें- प्राइवेट अस्पतालों की हुई ‘बल्ले-बल्ले’; दक्षिण भारत में सिर्फ 17% कार्ड लेकिन 100 में से 53 मरीज यहीं से (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)

2014: जनधन के तहत 52 करोड़ से ज्यादा लोगों के खुले खाते
साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आम लोगों को बैंक से जोड़ने के लिए ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ की शुरुआत की थी। एक दशक में उस योजना के तहत 52 करोड़ से अधिक खाते खुल चुके हैं, जिनमें लगभग 232000 करोड़ रुपये जमा हैं।
योजना के तहत बिना पैसों के बैंक खाते खोला जाता है। साथ ही एक RuPay डेबिट कार्ड और एक लाख रुपये दुर्घटना बीमा भी प्रदान किया जाता है। शुरुआती संदेह के बावजूद, यह विशेष रूप से ग्रामीण भारत में बैंकिंग सेवाओं से वंचित व्यक्तियों को औपचारिक बैंकिंग प्रदान करने में काफी हद तक सफल रहा है।
विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में खाताधारकों की बढ़ती हिस्सेदारी से डिजिटल भुगतान का चलन भी बढ़ा है, चार्ट देखें:

2015: गरीबों के लिए पक्का आवास
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMYA) का उद्देश्य गरीब परिवारों के लिए पक्के आवास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना है। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की शुरुआत साल 2015 में हुई थी। किस शहर में कितने घर बनेंगे यह राज्यों के प्रस्तावों पर निर्भर करता है। इस योजना का ग्रामीण भाग (PMYA-R) एक साल बाद (2016) लॉन्च किया गया था। PMYA-R का लक्ष्य दो चरणों में 2.95 करोड़ पक्के घर बनाना था।
PMYA-U के तहत फरवरी तक लगभग 1.2 करोड़ घरों को मंजूरी दे दी गई थी और उनमें से 80 लाख का निर्माण किया गया था। PMAY-R ने अपने लक्ष्य का 88% पूरा कर लिया है। PMAY-R के तहत महिलाएं व्यक्तिगत रूप से या संयुक्त रूप से लगभग 72% घरों की मालिक हैं, जबकि NFHS 2019-21 की रिपोर्ट बताती है कि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 43% ही है।
PMAY-R का टॉप-5 लाभार्थी राज्य | कितने घर बने | टारगेट कितना हुआ पूरा (% में) |
बिहार | 3,638,637 | 98 |
उत्तर प्रदेश | 3,545,936 | 98 |
झारखंड | 1,554,774 | 98 |
राजस्थान | 1,672,133 | 97 |
केरल | 33,547 | 95 |
PMAY-R के सबसे कम लाभार्थी राज्य | कितने घर बने | टारगेट कितना हुआ पूरा (% में) |
मणिपुर | 23,334 | 23 |
नगालैंड | 11,337 | 23 |
आंध्रा प्रदेश | 71,635 | 29 |
मेघालय | 55,819 | 30 |
मिरोजरम | 10,540 | 35 |
बता दें उपरोक्त डेटा 20 अप्रैल, 2024 तक का है। विश्लेषण में केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल नहीं किया गया है।
2016: अर्थव्यवस्था को झटका दे गया नोटबंदी
उच्च मूल्य वाले मुद्रा नोटों (₹500 और ₹1,000) को सिस्टम से बाहर निकालने और एक और उच्च मूल्य वाले नोट (₹2,000) को लाने के निर्णय को सरकार की सबसे बड़ी नीतिगत भूलों में से एक के रूप में देखा गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काले धन से निपटने के साधन के रूप में उठाया गया यह कदम आर्थिक झटके का कारण बना, जिसका असर लंबे समय तक रहा। समर्थकों का कहना है कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण और औपचारिकीकरण को गति देने में मदद की, लेकिन अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, विमुद्रीकरण के बाद की अवधि में 50 लाख नौकरियां चली गईं।
लगभग सभी बंद किए गए नोट भारतीय रिज़र्व बैंक के पास वापस आ गए (जिसका अर्थ है कि इस पहल से शायद ही कोई काला धन हटा हो) और नए ₹2,000 के नोट को अंततः पिछले साल चलन से बाहर कर दिया गया। हालांकि यह अभी भी कानूनी मुद्रा बना हुआ है।
कौन-कौन से बैंक नोट कितनी मात्रा में सर्कुलेशन में, चार्ट देखे:

2017: जीएसटी अब भी सरल नहीं
सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) के तहत 17 प्रकार के अप्रत्यक्ष करों को एकजुट किया था। शुरुआत में आई तमाम परेशानियों के बावजूद यह मोदी सरकार के तहत होने वाले सबसे बड़े सुधारों में से एक बन गया। पिछले कुछ वर्षों में नई व्यवस्था के कई शुरुआती मुद्दों का समाधान किया गया है।
हालांकि इस सुधार को लेकर अब भी चर्चा जारी है। जीएसटी परिषद की बैठकों के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच सफल साझेदारी नहीं हो सकती है। अब तक इस बात को लेकर बहस है कि राज्यों को छोड़े गए राजस्व के लिए कितना मुआवजा दिया जाना चाहिए और कितने समय तक दिया जाना चाहिए।
जीएसटी संग्रह में वृद्धि स्थिर हो गई है। इसके अलावा यह आय और कॉर्पोरेट कर की तुलना में कम बनी हुई है। इस प्राणाली को अब भी सरल नहीं माना जा रहा है।
ये भी पढ़ें: देश में सबसे गरीब 50 फीसदी लोग चुका रहे 64% GST, अमीरों का हिस्सा मात्र 3-4 प्रतिशत (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें)
