दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन (2011) करते हुए तिहाड़ जेल गए थे। वर्तमान में वह भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले की वजह से उसी तिहाड़ जेल में हैं।
ये विडंबना ही है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर नेता बनने वाले और नई तरह की राजनीति का वादा कर आम आदमी पार्टी (AAP) बनाने वाले अरविंद केजरीवाल खुद भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं। उनकी पार्टी के कई बड़े नेता भी इसी तरह के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
आप की स्थापना करते हुए केजरीवाल का दावा था कि वह राजनीति बदलने के लिए राजनीति में आए हैं। कीचड़ साफ करने के लिए कीचड़ में उतरे हैं। आइए पांच उदाहरणों से समझते हैं कि क्यों केजरीवाल ने पार्टी की स्थापना राजनीति को बदलने के लिए नहीं, बल्कि खालिश राजनीति के लिए की थी।
लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी में कितना लोकतंत्र
‘आप’ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली पार्टी है। राजनीतिक पार्टी शुरू करने से पहले इसके नेताओं को सक्रिय राजनीति का कोई अनुभव नहीं था। पार्टी की स्थापना को 13 साल हो चुके हैं। अब कई नेताओं को पर्याप्त अनुभव भी हो चुका है, बावजूद इसके पार्टी में केजरीवाल की जगह लेना वाला कोई नजर नहीं आ रहा है।
केजरीवाल पर अक्सर ये आरोप लगता है कि उन्होंने पार्टी में नेताओं की दूसरी कतार को उभरने नहीं दिया। पूर्व आप सदस्य और सत्यहिंदी के संस्थापक संपादक आशुतोष इसे आप की विफलता बताते हुए द इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं, “यह सर्वविदित है कि पार्टी केजरीवाल के आसपास इतनी केंद्रीकृत है कि किसी को भी स्वायत्त होने और स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की अनुमति नहीं है।”
परिवारवाद की मुखालफत को भूल पत्नी को दिया बढ़ावा
भारतीय राजनीति की कई कमियों में से एक परिवारवाद है, जिसके खिलाफ कभी केजरीवाल भी खुलकर बोला करते थे। पार्टी की स्थापना के बाद आज तक को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “आज हर पार्टी के अंदर नेताओं के बेटे और बेटियों को टिकट मिलता है। मुलायम सिंह जी का बेटा ही चीफ मिनिस्टर बनता है। लालू यादव की पत्नी ही मुख्यमंत्री बनती हैं। सोनिया गांधी जी का बेटा ही प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब देख सकता है। … लेकिन हमने अपने संविधान में लिख दिया है कि एक व्यक्ति को टिकट मिलेगा तो उसके परिवार के दूसरे व्यक्ति को टिकट नहीं मिलेगा। एक व्यक्ति हमारी कार्यकारी समिति का सदस्य है, तो उसके परिवार का दूसरा सदस्य कार्यकारी समिति में नहीं हो सकता।”
लेकिन हुआ क्या? कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को आगे कर दिया। उनकी गिरफ्तारी के बाद से सुनिता केजरीवाल ही उनके लिए संदेश जारी कर रही है और वह भी ठीक उसी बैकग्राउंड और कुर्सी पर बैठकर, जिसका इस्तेमाल केजरीवाल संदेश जारी करने के लिए किया करते थे।
शुरुआत में बात-बात पर जनमत संग्रह कराने वाली पार्टी अब किसी से नहीं पूछ रही है कि सुनीता केजरीवाल को आगे करना चाहिए या नहीं, या केजरीवाल को इस्तीफा देना चाहिए या नहीं।
आशुतोष ने लिखा है, “आदर्श रूप से केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए था और पार्टी को एक नया नेता चुनने देना चाहिए था जो उनकी अनुपस्थिति में सीएम हो सकता था, जैसा कि लालू प्रसाद और जयललिता ने किया था जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था। यहां तक कि गिरफ्तार होने से पहले ही हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन को अपनी जगह लेने का रास्ता साफ कर दिया था।”
राज्यसभा में समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी
आप के मजबूत होने के बाद जब केजरीवाल के पास राज्यसभा में सांसद भेजने का विकल्प आया तो उन्होंने अपने सक्रिय कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर ऐसे लोगों को ऊपरी सदन में भेजा, जिन्होंने संसद में कोई सक्रियता नहीं दिखाई।
साल 2018 में जब आप ने राज्यसभा के लिए डॉ. सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता के नाम की घोषणा की थी, तो न्यूज़ मीडिया में खबरें बनी थीं- कौन हैं आप के राज्यसभा उम्मीदवार सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता?
जाहिर है आम लोगों या पार्टी कार्यकर्ताओं के आप के राज्यसभा उम्मीदवार चर्चित नहीं थे। दिलचस्प है कि सुशील गुप्ता और एनडी गुप्ता दोनों ही राज्यसभा भेजे जाने से कुछ समय पहले आम आदमी पार्टी से जुड़े थे।
इससे भी अनोखी बात यह है कि सुशील गुप्ता उसी कांग्रेस के पूर्व सदस्य हैं, जिसके खिलाफ केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छेड़ा था। सुशील गुप्ता ने 2013 में मोती नगर विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी के कुलदीप सिंह चन्ना के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था।
जहां एनडी गुप्ता की पहचान एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की रही है। वहीं सुशील गुप्ता दिल्ली और हरियाणा में गंगा इंटरनेशनल स्कूल नामक शैक्षणिक संस्थानों की एक श्रृंखला चलाते हैं। वह पश्चिमी दिल्ली में महाराजा अग्रसेन अस्पताल भी चलाते हैं। दोनों में एक समानता यह है कि दोनों ही बेहद अमीर हैं।
प्रचार पर खर्च के मामले में भी पारंपरिक पार्टी साबित हुई आप
विज्ञापन पर खर्च करने के मामले में आम आदमी पार्टी भी भाजपा-कांग्रेस ही साबित हुई है। जुलाई, 2023 में कोर्ट की फटकार के बाद आप ने एक हलफनामा दायर किया था, जिससे पता चला था कि पार्टी ने बीते तीन साल में विज्ञापन पर 1,073 करोड़ रुपये खर्च किए। कोर्ट इस आंकड़े पर हैरान था।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली, मेरठ और गाजियाबाद को जोड़ने वाले रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम को लागू करने में हो रही देरी के संबंध में दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई चल रही थी। 3 जुलाई, 2023 को दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके पास परियोजना के लिए आवंटित करने के लिए पर्याप्त धन नहीं है।
इस पर अदालत ने कहा था, “यदि आपके पास विज्ञापनों के लिए पैसा है, तो पास उस परियोजना के लिए पैसा क्यों नहीं है जो सुचारू परिवहन सुनिश्चित करेगी?” इसके बाद कोर्ट ने दिल्ली सरकार को पिछले तीन वर्षों में अपने विज्ञापन खर्च का हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। हलफनामा से पता चला कि सरकार गत तीन साल में विज्ञापन पर 1,073 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। यह देख सुप्रीम कोर्ट जज ने आप को फटकार लगाते हुए कहा था- हम आपका विज्ञापन बजट कुर्क कर लेंगे।
योजनाओं से ज्यादा योजनाओं के प्रचार पर खर्च करने के लिए आप कुख्यात रही है। आप सरकार ने पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए एक विशेष ‘बायो-डीकंपोजर’ तैयार किया था। 2020-22 में सरकार ने ‘बायो-डीकंपोजर’ के छिड़काव पर 68 लाख रुपये खर्च किए थे, जबकि इस परियोजना के विज्ञापन पर 23 करोड़ रुपये खर्च कर दिए थे।
आप ने कॉर्पोरेट चंदे से नहीं किया परहेज़
कभी क्राउडफंडिंग और घर-घर जाकर, चंदा जुटाकर राजनीति करने का दावा करने वाली आप अब कॉर्पोरेट चंदों के बीच खेलती है। चुनावी बांड से आप 52.4 करोड़ रुपये का दान ले चुकी है। हाल में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित किया है।
आम आदमी पार्टी के शीर्ष 10 दानदाता में 6 कांग्रेस पार्टी के प्रमुख दानदाताओं की सूची में हैं। अवीस ट्रेडिंग फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड ने AAP को 10 करोड़ रुपये का दान दिया है। तीन अन्य कंपनियां – एमकेजे एंटरप्राइजेज लिमिटेड; टोरेंट पावर लिमिटेड; और ट्रांसवेज़ एक्ज़िम प्राइवेट लिमिटेड – प्रत्येक ने AAP को 7 करोड़ रुपये का दान दिया।
AAP के अन्य शीर्ष दानदाताओं में बजाज ऑटो लिमिटेड (8 करोड़ रुपये), एशियन ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन लिमिटेड (5 करोड़ रुपये), बर्ड वर्ल्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (2 करोड़ रुपये) और एवन साइकिल्स लिमिटेड (1.4 करोड़ रुपये) शामिल हैं।
आप में आए बदलाव के आलोक में आशुतोष ने लिखा था, “AAP का उदय आशा की किरण थी, जिसे भारतीय राजनीति में आदर्शवाद की वापसी के रूप में देखा गया। इसमें भाजपा और कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प के रूप में उभरने की क्षमता थी। AAP ने पुरानी इमारत को नष्ट करने और एक नई राजनीतिक संरचना का निर्माण करने के लिए पुरानी स्थापना को अस्वीकार कर दिया था। लेकिन अफ़सोस, इतिहास की समझ की कमी और राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए एक दृष्टिकोण की कमी के कारण आम आदमी पार्टी आज जिस स्थिति में है, वह निराशा का कारण बन गई है।”