साल 1984 के बाद से अब तक हुए 10 लोकसभा चुनावों में कोई भी चुनाव ऐसा नहीं रहा जिसमें बीजेपी को तेलुगु भाषी राज्य आंध्र प्रदेश में 7 से ज्यादा लोकसभा सीटें मिली हों। बीजेपी को आंध्र प्रदेश में 1989, 1996, 2004, 2009 और 2019 के लोकसभा चुनाव में तो एक भी सीट नहीं मिली थी।
बताना होगा कि साल 2014 में आंध्र प्रदेश का विभाजन हो गया था और विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश के हिस्से में लोकसभा की 25 और तेलंगाना में 17 सीटें आई थीं।
आंकड़ों से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश में बीजेपी कभी भी (1999 को छोड़कर) बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी।
साल | 1984 | 1989 | 1991 | 1996 | 1998 | 1999 | 2004 | 2009 | 2014 | 2019 |
सीटों पर लड़ा चुनाव | 2 | 2 | 42 | 39 | 38 | 8 | 9 | 41 | 4 | 24 |
मिली सीटें | 1 | 0 | 1 | 0 | 4 | 7 | 0 | 0 | 2 | 0 |
गठबंधन का लेना पड़ा सहारा
यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी होगा कि बीजेपी और टीडीपी ने चुनावी मजबूरी के चलते इस बार गठबंधन किया है और इसमें अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण की पार्टी जन सेना को भी शामिल किया है।
चुनावी मजबूरी यह है कि बीजेपी और टीडीपी ने आंध्र प्रदेश का 2014 का विधानसभा चुनाव गठबंधन के तहत लड़ा था। तब टीडीपी ने राज्य की 175 में से 102 सीटें जीती थी और उसका वोट शेयर 44.9% था जबकि बीजेपी ने 4 सीटें जीती थी और 2% वोट हासिल किए थे।
लेकिन 2019 में जब टीडीपी और बीजेपी अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़े तो टीडीपी को जबरदस्त नुकसान हुआ और राज्य की 175 विधानसभा सीटों में से उसे केवल 23 सीटों पर जीत मिली जबकि बीजेपी को कोई सीट नहीं मिली। इस चुनाव में टीडीपी का वोट शेयर 39.1% रहा और बीजेपी को 1% से भी कम वोट मिले। बता दें कि आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ होते हैं।
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बीजेपी को नहीं मिले 1% वोट
2019 के लोकसभा चुनाव में टीडीपी को आंध्र प्रदेश में करारी हार मिली थी। तब वह राज्य की 25 लोकसभा सीटों में से सिर्फ तीन लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी जबकि बीजेपी का खाता नहीं खुल सका था। तब टीडीपी को 39.59% वोट मिले थे जबकि बीजेपी 1% वोट भी हासिल नहीं कर सकी थी।
पिछली हार और खराब प्रदर्शन से सबक लेते हुए ही दोनों दलों को साथ आना पड़ा। बीजेपी और टीडीपी का गठबंधन कराने में पवन कल्याण ने भी काफी मेहनत की थी।
आंध्र प्रदेश में सीट बंटवारे के तहत बीजेपी राज्य की छह लोकसभा सीटों और 10 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि टीडीपी 17 लोकसभा सीटों और 144 विधानसभा सीटों पर चुनाव मैदान में है। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी दो लोकसभा सीटों और 21 विधानसभा सीटों पर ताल ठोक रही है।
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तेलंगाना में भी खराब प्रदर्शन
तेलंगाना में साल 2014 में बीजेपी ने 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसे एक सीट पर जीत हासिल हुई जबकि 2019 में सभी 17 सीटों पर चुनाव लड़कर भी वह चार सीटें ही जीत सकी थी। हालांकि उसने अपने वोट शेयर में सुधार किया और 2014 में मिले 10.4% वोट के मुकाबले 2019 में 19.5% वोट हासिल किए।
तेलंगाना के 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 118 सीटों पर लड़कर सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली थी। तब उसे 1% से कम वोट मिले थे। बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधारने की भरसक कोशिश की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राज्य के ताबड़तोड़ दौरे किए लेकिन इसके बाद भी बीजेपी वहां अपना प्रदर्शन नहीं सुधार सकी।
विधानसभा चुनाव में बढ़ा वोट शेयर और सीटें
2023 में विधानसभा की 111 सीटों पर चुनाव लड़कर वह 8 सीटें जीती। हालांकि उसने अपना वोट शेयर लगभग दोगुना किया और 2018 में मिले 7% के मुकाबले यह 13.88% हो गया।
इस चुनाव में उसने हैदराबाद का नाम बदलकर इसे भाग्यलक्ष्मी करने का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया था लेकिन फिर भी उसे मतदाताओं का साथ नहीं मिल सका।
आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी का तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में प्रदर्शन खराब रहा है। आंध्र प्रदेश में जहां वह गठबंधन के सहारे है, वहीं 2019 में तेलंगाना में मिली 4 सीटों को बरकरार रखने के साथ ही अपना प्रदर्शन सुधारने की भी चुनौती उसके सामने है। चूंकि यहां उसके साथ कोई सहयोगी दल भी नहीं है इसलिए कांग्रेस और बीआरएस जैसे मजबूत दलों से मुकाबला करना उसके लिए आसान नहीं है। क्योंकि तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है और बीआरएस यहां 10 साल तक सरकार चला चुकी है।