साल 1984 के लोकसभा चुनाव की बात है। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हो रहे इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर चल रही थी। तत्कालीन भाजपा उपाध्यक्ष विजयाराजे सिंधिया ने यह कहते हुए ग्वालियर से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया कि वे नई-नवेली पार्टी (भाजपा की स्थापना साल 1980 में हुई थी) का प्रचार करना चाहती हैं।
हालांकि चुनावी विश्लेषक ने माना कि देश भर में राजीव के प्रति उमड़ी सहानुभूति की लहर के मद्देनज़र ‘राजमाता’ एक और चुनाव हारने (1980 का चुनाव विजयाराजे हार गई थीं) का जोखिम लेना नहीं चाहती थी, वह भी उस संसदीय क्षेत्र से जो कभी पूर्ववर्ती सिंधिया साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था।
भाजपा ने वाजपेयी को बनाया उम्मीदवार
भारतीय जनता पार्टी ने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी को मैदान में उतारा। वाजपेयी को इस बात का ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि पूर्व महाराजा माधवराव सिंधिया अचानक उनके खिलाफ पर्चा दाखिल कर देंगे।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक टिप्पणीकार रशीद किदवई ने मंजुल प्रकाशन से छपी अपनी किताब ‘सिंधिया राजघराना: सत्ता, राजनीति और षडयंत्रों की महागाथा’ में लिखा है, “माधवराव गुना से उम्मीदवार थे, लेकिन राजीव के निर्देश पर वे अंतिम समय में गुना से ग्वालियर आ गए थे। इससे वाजपेयी भौंचक्के रह गए क्योंकि वे सिंधिया परिवार के किसी भी सदस्य के खिलाफ चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे।”
वाजपेयी ने अपनी किताब ‘न दैन्यं न पलायनम्’ में लिखा है कि भाजपा के ही कुछ नेताओं ने उन्हें किनारे कर दिया था, ताकि वे ग्वालियर में फंसे रहें और देश में अन्य जगहों पर प्रचार नहीं कर सकें। वे कौन थे? राजमाता या आडवाणी? या दोनों ही?
कांग्रेस उम्मीदवार पर निशाना साधने से किया इनकार
ग्वालियर से चुनाव लड़ते हुए वाजपेयी ने कांग्रेस उम्मीदवार माधवराव सिंधिया के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला। वाजपेयी ने अपने मुंह से ऐसा एक भी शब्द नहीं निकाला जो माधवराव या उनके परिवार के प्रति अपमानजनक हो।
अपनी किताब में वाजपेयी ने इसकी वजह का खुलासा भी किया है कि अगर 1945 में सिंधिया परिवार उनकी मदद नहीं करता तो वे उच्च शिक्षा की पढ़ाई नहीं कर पाते।
उन्होंने लिखा है, “ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया मुझे स्कूल के दिनों से जानते थे। पिता की सेवानिवृत्ति के बाद सीमित आर्थिक संसाधनों के बीच मेरी दो बहनों की शादी का बोझ पहले से ही परिवार के ऊपर था। ऐसे में जब मेरी उच्च शिक्षा का सवाल सामने आया तो शाही परिवार ने मुझे 75 रुपये महीने की स्कॉलरशिप मंजूर की थी।”
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