लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से एक नया गांधी (राहुल गांधी) किस्मत आजमा रहा है। रायबरेली से पहले सांसद राहुल के दादा और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी थे। उन्होंने बतौर सांसद सदन में कई बार कांग्रेस की ही धज्जियां उड़ाने में भी संकोच नहीं किया और गलत कामों का पर्दाफाश करके अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा किया। यहां तक कि वित्त मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ गया था।
इस वजह से 1957 तक, फ़िरोज गांधी ‘जायंट किलर’ के नाम से लोकप्रिय हो गए थे। उनका यह रूप तब भी सामने आया था जब गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और फ़िरोज के निर्वाचन क्षेत्र में छात्रों ने राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
रोली बुक्स द्वारा प्रकाशित किताब ‘FEROZE The Forgotten GANDHI’ में Bertil Falk ने लिखा है, ‘रायबरेली में छात्र आंदोलन के दौरान फिरोज गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों का समर्थन किया था। तभी पंतजी ने उन्हें बुलाकर कहा था, “यह बहुत बुरा है। आप कांग्रेस सांसद हैं और आप हमारी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। यह क्या है?” जिस पर निडरता से फ़िरोज गांधी ने कहा था, “हां, मैंने उनका समर्थन किया।”
जब फिरोज बोले-टिकट चाहिए तो पहनावा बदलो
किताब में फिरोज गांधी के दोस्त सैयद जाफ़र के हवाले से लिखा गया है, ‘आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू की सरकार जिस तरह से चल रही थी उससे फ़िरोज व्यथित हो रहे थे। बलिया के एक पुराने क्रांतिकारी कांग्रेस कार्यकर्ता ठाकुर जगन नाथ सिंह थे। वह जेल में भी मेरे साथ थे वह विधान परिषद के उम्मीदवार थे। सीएम सी.बी.गुप्ता ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था। वह मुझसे बहुत व्यथित अवस्था में मिले। मैंने उन्हें फ़िरोज गांधी से मिलवाया और कहा कि यह ठाकुर जगन नाथ सिंह हैं। किसी को भी विधायकी के लिए टिकट मिलता है और उन्हें नहीं मिल रहा है।
यह सुनकर फ़िरोज गांधी बहुत परेशान हो गए और उन्होंने कहा, “इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। अगर आप उनके अनुयायी बनने के लिए तैयार हैं तभी आपको टिकट मिल सकता है। या तो आप मिस्टर गुप्ता के पास जाकर कहो कि आप उनके अनुयायी बनने के लिए तैयार हैं या फिर अपना कांग्रेसी पहनावा बदल लो, महंगी शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा और तालुकदार जैसे दिखो या एक राजा की तरह बन जाओ। एक और रास्ता है कि आप जवाहरलाल नेहरू के पास जाओ शायद आपको टिकट मिल सकता है। यह पहली बार था जब सैयद जाफ़र ने फ़िरोज गांधी को शिकायत करते हुए सुना था।
रायबरेली में फिरोज गांधी के किए काम
फ़िरोज़ गांधी ने 1957 में अपनी सीट बरकरार रखने के लिए रायबरेली से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। उन्होंने संसद में उस पहले कार्यकाल के दौरान रुचि दिखाई थी और अपने निर्वाचन क्षेत्र में बहुत काम किया था। वह रायबरेली में बहुत लोकप्रिय थे और अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान जो केवल तीन साल लंबा था, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के कल्याण के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने रायबरेली में निरंतर विकास के लिए कई अलग-अलग परियोजनाओं की शुरुआत की।

रायबरेली का पहला डिग्री कॉलेज
रायबरेली निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश का एक पिछड़ा जिला था। यह जिला अमीर तालुकदारों से भरा था लेकिन उन्होंने क्षेत्र के शैक्षणिक विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इंटरमीडिएट स्तर तक बहुत कम कॉलेज थे। चूंकि, वहां कोई डिग्री कॉलेज नहीं था इसलिए लोगों को अपने बच्चों को दूसरी जगहों पर भेजना पड़ता था, जो बहुत कठिन था। इंटरमीडिएट स्तर से ऊपर शैक्षिक सुविधाओं की कमी के कारण छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद, लखनऊ, कानपुर और अन्य स्थानों पर जाना पड़ता था।
किताब में ओंकार नाथ भार्गव के हवाले से लेखक लिखते हैं, ‘मैंने और कुछ दोस्तों ने यहां रायबरेली में एक डिग्री कॉलेज स्थापित करने का प्रयास करने का फैसला किया। मैंने 55 लोगों को आमंत्रित करने के लिए एक नोटिस भेजा। हमने उन लोगों से अनुरोध किया जो आने के इच्छुक थे। हमने उस समय फ़िरोज़ गांधी को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वह दिल्ली में थे। हमने सभी स्थानीय, प्रबुद्ध नागरिकों को आमंत्रित किया। मुझे आश्चर्य हुआ, 55 में से लगभग 45 ने 22 जून 1958 को इस बैठक में भाग लिया और एक डिग्री कॉलेज का प्रस्ताव रखा गया। एक समिति के गठन के बाद हमने प्रोजेक्ट को अपना समर्थन देने के लिए संरक्षक बनने के लिए फिरोज गांधी से संपर्क किया।”
डिग्री कॉलेज के लिए फंड का जुगाड़
भार्गव आगे लिखते हैं, ‘हम दिल्ली गए और 18, क्वीन विक्टोरिया रोड पर उनसे मिले, जहां वे रुके और आगंतुकों का स्वागत किया। जब हमने उन्हें अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया तो उन्होंने दिलचस्पी दिखाई। हमें आश्चर्य हुआ वह सक्रिय रूप से इसमें शामिल होना चाहते थे। हमने सोचा कि वह समिति का अध्यक्ष बनने या सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए बहुत वरिष्ठ व्यक्ति थे।”

उन्होंने खुद को कॉलेज के लिए धन इकट्ठा करने के काम में झोंक दिया। जब भी संभव हो सका, उन्होंने बोर्ड बैठकों में भाग लिया और अध्यक्षता की।
10 अक्टूबर 1958 को रायबरेली डिग्री कॉलेज एजुकेशन ट्रस्ट के प्रबंधन बोर्ड की बैठक हुई। उससे पहले फ़िरोज गांधी को दिल का दौरा पड़ा था। उनकी अनुपस्थिति में, बोर्ड ने निर्णय लिया कि ‘इलाहाबाद बैंक लिमिटेड, रायबरेली और भारतीय स्टेट बैंक, रायबरेली के चालू खाते ट्रस्ट के नियमों के अनुसार अध्यक्ष और प्रबंध सचिव द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किए जाएंगे। बैठक में कॉलेज के लिए फंड जुटाने के विभिन्न तरीकों और साधनों पर भी चर्चा हुई।
कॉलेज के लिए ट्रस्ट की बैठक
1 फरवरी 1959 को, ट्रस्ट के प्रबंधन ने फ़िरोज गांधी के बिना एक और बैठक की। इस बैठक में टाउन प्लानर द्वारा भेजे गये कॉलेज के ब्लू प्रिंट की जांच की गयी। इसके अलावा यह निर्णय लिया गया कि अगर नया परिसर समय पर तैयार नहीं हुआ तो अन्य परिसरों का उपयोग एक साल के लिए किया जाएगा। 21 अगस्त 1959 को जब ट्रस्ट की बैठक हुई तो इसकी अध्यक्षता फ़िरोज गांधी ने की थी। बजट अनुमान प्रस्तुत किए गए, भवन योजनाओं को मंजूरी दी गई और एक भवन समिति का गठन किया गया। इसके अलावा, कॉलेज भवन के निर्माण की शुरुआत को मंजूरी दी गई।
4 फरवरी 1960 को रात 10 बजे होने वाली बैठक की अध्यक्षता फिरोज गांधी ने भी की। जब बैठक में संविधान में संशोधन के प्रस्ताव पर विचार किया गया ताकि जीवन ट्रस्टी की फीस को 501 रुपये से घटाकर 101 रुपये किया जा सके। फिरोज ने सुझाव दिया कि ‘ट्रस्ट के संविधान में इस तरह से संशोधन किया जाए कि प्रबंध सचिव को छोड़कर प्रबंधन बोर्ड में शामिल सदस्य उनके चुनाव की तारीख से एक वर्ष की अवधि के लिए ही पद पर रहेगा।’
