देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की ताकत लगातार घटती जा रही है। बात सिर्फ सीट जीतने की नहीं है। कांग्रेस साल दर साल कम सीटों पर चुनाव भी लड़ रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस के द्वारा कम सीटों पर चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड बनने जा रहा है।
आजादी के बाद से कांग्रेस कभी इतनी कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी, जितनी कम सीटों पर इस बार लड़ने वाली है। पिछले 35 वर्षों का रिकॉर्ड देखें तो तीन लोकसभा चुनाव को छोड़कर कांग्रेस लगातार कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
साल | कितनी सीटों पर लड़ा चुनाव |
1989 | 510 |
1991 | 487 |
1996 | 529 |
1998 | 477 |
1999 | 453 |
2004 | 417 |
2009 | 440 |
2014 | 464 |
2019 | 421 |
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पार्टी ने अब तक 278 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, अभी हरियाणा, बिहार, पंजाब, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश की कुछ सीटों पर उम्मीदवार उतारने हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस 2024 में 300 से कम सीटों पर ही अपने उम्मीदवार उतराने वाली है। देश में लोकसभा की कुल 543 सीटों पर चुनाव होता है।
विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत अपने सहयोगी दलों से बेहद कम सीटें मिली हैं। राजनीतिक विश्लेषक गठबंधन के भीतर कांग्रेस को कम सीट दिए जाने का कारण पार्टी के खराब होते प्रदर्शन को मानते हैं।
राज्य | कांग्रेस को गठबंधन में मिली सीटें |
उत्तर प्रदेश (80) | 17 |
महाराष्ट्र (48) | 17 |
बिहार (40) | 9 |
तमिलनाडु (39) | 9 |
पश्चिम बंगाल (42) | 13 |
साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के हाथों बुरी शिकस्त खाने के बाद कांग्रेस ने इस बार इंडिया गठबंधन बनाया है। इंडिया गठबंधन के तहत महाराष्ट्र में उद्धव गुट की शिवसेना और एनसीपी का शरद पवार खेमा उसके साथ है। महाराष्ट्र में उसे गठबंधन में कुल 17 सीटें मिली हैं जबकि पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन राज्यों में क्रमशः 25 और 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी। हालांकि तब इस गठबंधन में शिवसेना का उद्धव गुट शामिल नहीं था।
यूपी में भी खराब प्रदर्शन का सीट बंटवारे पर पड़ा असर
उत्तर प्रदेश को देखकर ऐसा लगता है कि कांग्रेस को जबरदस्त सौदेबाजी के बाद 17 सीटें मिली हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने केवल दो सीटें जीती थीं – अमेठी (राहुल गांधी) और रायबरेली (सोनिया गांधी) और उसका वोट शेयर सिर्फ 7.53% था। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी कांग्रेस की परंपरागत सीट अमेठी से ही चुनाव हार गए थे। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 2.33% वोट शेयर के साथ 403 विधानसभा सीटों में से केवल दो सीटों पर जीत हासिल की थी।

दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में करना पड़ा समझौता
कांग्रेस साल 1998 से 2013 तक दिल्ली में लगातार सरकार चला चुकी है लेकिन पिछले तीन विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद उसे लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए मजबूर होना पड़ा। गठबंधन के तहत उसे दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से 3 सीटें मिली हैं।
इसी तरह हरियाणा में उसने साल 2005 से 2014 तक लगातार सरकार चलाई थी और वह राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ती रही है। लेकिन इस बार वहां उसने कुरुक्षेत्र की लोकसभा सीट आम आदमी पार्टी को दी है। गुजरात में भी कांग्रेस को दो सीटों- भावनगर और भरूच सीटों पर आम आदमी पार्टी के साथ समझौता करना पड़ा है।

आप, टीएमसी और लेफ्ट ने किया गठबंधन से इनकार
पंजाब में आम आदमी पार्टी से गठबंधन करने के लिए कांग्रेस ने लंबे वक्त तक इंतजार किया। लेकिन बाद में आम आदमी पार्टी ने स्पष्ट इनकार कर दिया कि वह पंजाब में अकेले ही चुनाव लड़ेगी। निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए इंडिया गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी की ओर से यह एक बड़ा झटका था और इससे उसकी खासी किरकिरी भी हुई। इसी तरह टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में जबकि वाम दलों ने केरल में कांग्रेस से गठबंधन करने से इनकार कर दिया।
साल 2014 में सिर्फ 44 सीटों पर और 2019 में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी महज 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस की आज देश में सिर्फ तीन राज्यों में ही अपने दम पर सरकार है। इसमें भी हिमाचल प्रदेश की उसकी सरकार कितने दिन चल पाएगी, यह कह पाना मुश्किल है क्योंकि वहां पार्टी के छह विधायक बगावत कर चुके हैं और वर्तमान में बीजेपी के टिकट पर विधानसभा का उप चुनाव लड़ रहे हैं।
कांग्रेस के नेता भले ही यह कहें कि कम सीटों पर चुनाव लड़ना एक रणनीति का हिस्सा है लेकिन राजनीति में यह किसी राजनीतिक दल की लगातार घटती हुई ताकत को दिखाता है।
कई नेताओं ने छोड़ी पार्टी
2014 के बाद से अब तक कई बडे़ नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। कुछ दिनों पहले ही पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ, रोहन गुप्ता, वरिष्ठ नेता संजय निरूपम और स्टार चेहरे विजेंदर सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया था। अगर कांग्रेस इस चुनाव में भी अपना प्रदर्शन सुधारने में कामयाब नहीं रही तो निश्चित रूप से उसके लिए विपक्षी दलों के गठबंधन की अगुवाई करना बेहद मुश्किल हो जाएगा।