देश में आम चुनाव जारी है। सत्ताधारी भाजपा के नेता कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार द्वारा किए गए मैनेजमेंट के नाम पर भी वोट मांग रहे हैं।

ओडिशा के संबलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से जब अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने पूछा कि इस बार चुनाव को दिशा देने वाले खास मुद्दे क्या हैं? तो केंद्रीय मंत्री ने अन्य विकास कार्यों और योजनाओं के साथ-साथ कोविड प्रबंधन का श्रेय भी अपनी सरकार को दिया।

COVID Vaccine Covishield: सवालों के घेरे में कोविड-19 वैक्सीन

कोविड प्रबंधन के नाम पर भाजपा का वोट मांगना कितना सही है, ये आगे जानेंगे। लेकिन ताजा खबर ये है कि भारत सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन के रूप में अन्य कंपनियों के साथ-साथ जिस कोविशील्ड को अनुमति दी थी, वह खतरनाक साबित हो सकता है।

भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने जिस फॉर्मूला का इस्तेमाल कर कोविशील्ड वैक्सीन बनाई थी, उस फॉर्मूला को तैयार करने वाली ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश हाईकोर्ट में यह स्वीकार किया है कि उनकी वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।

उसकी इस स्‍वीकारोक्‍त‍ि के बाद भारत में भी सोशल मीड‍िया पर लोग प्रत‍िक्र‍िया देने लगे। कई लोग जहां जान की सुरक्षा को लेकर च‍िंता जताने लगे, वहीं कई ने इसे चुनाव से भी जोड़ा। हालांक‍ि, व‍िपक्ष ने अभी इसे मुद्दा नहीं बनाया है।

दरअसल, एस्ट्राजेनेका ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से साल 2020 में कोरोनो वायरस के प्रकोप के बाद AZD1222 वैक्सीन विकसित की थी। भारत और अन्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उसी वैक्सीन को सीरम इंस्टीट्यूट ने “कोविशील्ड” नाम से बनाया और बेचा था।

AstraZeneca vaccine: 51 मामले में एस्ट्राजेनेका आरोपी

ब्रिटिश अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने बताया है कि एस्ट्राजेनेका पर आरोप है कि उसकी वैक्सीन से कई लोगों की मौत हो चुकी है। कई लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। कंपनी के खिलाफ इस तरह के 51 मामले चल रहे हैं। शुरुआती इनकार के बाद अब कंपनी ने माना है कि उनकी वैक्सीन से थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) हो सकता है। हालांकि कंपनी ने यह भी जोड़ा है कि ऐसा बहुत रेयर केस में ही होगा।

Thrombosis Thrombocytopenia Syndrome: थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम के क्या हैं लक्षण

TTS एक बीमारी है। इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के शरीर में खून के थक्के जम जाते। प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है। TTS के लक्षणों हैं- सिर दर्द, सीने में दर्द, चक्कर आना, साफ दिखाई न देना, सांस लेने में दिक्कत, पैरों में सूजन, त्वचा पर खून के थक्के जमने के निशान, बोलने में कठिनाई, आदि।

Serum Institute of India: प्रधानमंत्री ने किया था सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा

स्वदेशी वैक्सीन ‘COVAXIN’ से पहले मोदी सरकार ने ‘कोविशील्ड’ को मंजूरी दी थी। 28 नवंबर, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड-19 वैक्सीन डेवलपमेंट की जानकारी के लिए पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा किया था।

सीरम इंस्टीट्यूट का दौरा करने के करीब एक माह बाद ही जनवरी 2021 में मोदी सरकार ने कंपनी को एक करोड़ दस लाख डोज का ऑर्डर दिया था। कुछ ही माह बाद मार्च 2021 में सरकार ने फिर दस करोड़ डोज की मांग की थी।

भारत में लोगों ने सबसे ज्यादा डोज कोविशील्ड के ही लिए हैं। भारत में कोविशील्ड के करीब 175 करोड़ डोज दिए गए हैं, जबकि सरकारी वैक्सीन कोवैक्सिन के 36 करोड़ डोज ही लगे हैं। 2022 भारत के वैक्सीन बाजार पर 80 प्रतिशत कब्जा सीरम का हो गया था, जबकि 2020 में सीरम 17 प्रतिशत तक सीमित था।

सीरम इंस्टीट्यूट से भाजपा को मिला करोड़ों का चंदा

अगस्त 2022 में कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट से सत्ताधारी भाजपा को 48 घंटे के भीतर 50 करोड़ रुपए का चंदा मिला था। इस बारे में विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें:

Serum Institute | BJP | Electoral Trust
अदार पूनावाला, सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंड‍िया के सीईओ (Express photographs by Arul Horizon)

Covid Management Election 2024: कोविड प्रबंधन के नाम पर भाजपा का वोट मांगना कितना सही?

महामारी शुरु होने से कुछ महीने पहले सरकार कर कटौती और अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से विकास को बढ़ावा देना चाह रही थी, लेकिन कोविड और उसके कारण लगे लॉकडाउन ने 2020 में अर्थव्यवस्था को तकनीकी मंदी में डाल दिया, जिससे लाखों गरीब लोग गंभीर संकट में पड़ गए।

इससे मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक कल्याण योजनाओं में से एक ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ शुरू हुई। निश्चित रूप से यह कोई नई योजना नहीं थी बल्कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में किया गया एक अस्थायी बदलाव था।

लेकिन क्या महामारी में सिर्फ खाने की समस्या थी? जवाब है- नहीं। उस दौरान लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण सड़कों पर मरते देखा गया। परिवार के सदस्य अपने प्रियजनों के लिए अस्पताल के बिस्तर के लिए भी संघर्ष करते नजर आए। दवा माफिया कई गुना ज्यादा दाम पर दवाइयां बेज रहे थे, जिस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिप्पणी भी की थी। उस वक्त कई दिल दहलाने वाली तस्वीरें सामने आईं।

गंगा के किनारे पड़े शवों की तस्वीर को दैनिक भास्कर ने पहले पेज पर प्रमुखता से छापा था। यूट्यूबर समदीश भाटिया ने अंतिम संस्कार के लिए दिल्ली के श्मशान घाट के बाहर कतार में खड़े लोगों की रिपोर्टिंग थी, जो तब वायरल हो गया था।

दूसरी लहर के दौरान स्थिति ने ऐसा मोड़ ले लिया था कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय को ‘ऑक्सीजन आपूर्ति, दवा आपूर्ति, वैक्सीन नीति से संबंधित मुद्दों’ पर स्वत: संज्ञान लेना पड़ा था। सुप्रीम कोर्ट इन मुद्दों का प्रबंधन करने के लिए स्वतंत्र वैज्ञानिकों और अधिकारियों को शामिल करते हुए एक 12 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया था और बागडोर अपने हाथों में ली थी।

भारत में सबसे ज्यादा मौत?

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी से सबसे ज्यादा मौतें भारत में हुईं । विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार, दूसरी लहर तक भारत में लगभग 47 लाख लोगों की मृत्यु हो गई थी। यह दुनिया के कई छोटे देशों की आबादी के बराबर है।