Collegium vs Government: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में सरकारी प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग के बाद से केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू लगातार चर्चा में हैं। अरुणाचल प्रदेश से तीन बार के लोकसभा सांसद 51 वर्षीय रिजिजू ने जुलाई 2021 में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री के रूप में पदभार संभाला था।

पहले वह युवा मामलों और खेल के स्वतंत्र प्रभार के साथ एक जूनियर मंत्री हुआ करते थे। लेकिन कानून मंत्री बनाकर मोदी सरकार ने कैबिनेट रैंक में उनकी पदोन्नति कर दी थी। तब सरकार के भीतर के कई लोगों के लिए लिए भी यह एक आश्चर्य की बात थी। किरन रिजिजू को कानून मंत्री बनाने की वजहों पर चर्चा करें, उससे पहले उनके शुरुआती जीवन पर एक नजर डाल लेते हैं।

पिता थे अरुणाचल विधानसभा के पहले स्पीकर

किरन रिजिजू का जन्म 19 नवंबर, 1971 को अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के नखू गांव में हुआ था। किरन रिजिजू के पिता रिनचिन खारू राज्य विधानसभा के पहले अस्थायी स्पीकर थे। रिजिजू की मां का नाम चिरई रिजिजू है। कॉलेज के दिनों से रिजिजू की खेल और राजनीति के गहरी रुचि रही। वह बचपन से सामाजिक कार्यों में शामिल होते रहे हैं। रिजिजू साल 1987 युवा और सांस्कृतिक टीम के सदस्य के तौर पर तत्कालीन सोवियत संघ में भारत उत्सव में भाग लेने गए थे।

दिल्ली विश्वविद्यालय से की है कानून की पढ़ाई

किरन रिजिजू ने अपना ग्रेजुएशन दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से की है। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई डीयू के ही कैंपस लॉ सेंटर से की। रिजिजू के पास एलएलबी की डिग्री है। उन्होंने कम उम्र में ही राजनीति में कदम रखा दिया था। वह साल 2000 से 2005 के बीच खादी और ग्रामीण उद्योग आयोग के सदस्य रहे।

33 साल की उम्र में जीता था लोकसभा का चुनाव

किरन रिजिजू ने साल 2004 में 33 साल की उम्र में पहली बार भाजपा के टिकट पर अरुणाचल वेस्ट से लोकसभा का चुनाव जीता था। तब रिजिजू ने ट्रेजरी बेंच में विपक्ष के पांच शीर्ष सांसदों में अपनी जगह बनाई थी। इन पांच सांसदों में भाजपा के दिग्गज लालकृष्ण आडवाणी भी थे।

2009 के आम चुनाव में किरन रिजिजू कांग्रेस उम्मीदवार से बहुत कम अंतर से हार गए थे। इसके बाद रिजिजू ने कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की थी। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक तब उन्होंने कहा था, “अरुणाचल प्रदेश एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील राज्य है। मैंने महसूस किया कि कांग्रेस अरुणाचल प्रदेश की सेवा करने के लिए बेहतर स्थिति में है।”

लेकिन 2014 तक वह फिर भाजपा में वापस आ गए और मोदी लहर की सवारी कर संसद पहुंचे। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया। आज वह नॉर्थ ईस्ट में भारतीय जनता पार्टी के सबसे चर्चित चेहरों में से एक हैं।  रिजिजू नॉर्थ ईस्ट के उन नेताओं में से हैं, जो धाराप्रवाह हिंदी बोलते हैं।

पत्नी हैं इतिहास की प्रोफेसर

किरन रिजिजू की पत्नी का नाम जोरम रीना रिजिजू हैं। उनकी शादी साल 2004 में हुई थी। रीना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन से ग्रेजुएशन किया है। वह अरुणाचल विश्वविद्यालय की गोल्ड मेडलिस्ट भी हैं। फिलहाल वह इटानगर स्थित अरुणाचल प्रदेश के डेरा नटुंग गवर्नमेंट कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर इतिहास पढ़ाती हैं।  

रिजिजू को क्यों बनाया गया था कानून मंत्री?

इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित अपूर्वा विश्वनाथ और लिज़ मैथ्यू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिजिजू को विशेष वजहों से कानून मंत्री बनाया गया था। दरअसल 2014 में सत्ता संभालने के बाद मोदी सरकार ने न्यायिक नियुक्तियों में ‘सुधार’ का काम शुरू किया था।

सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम की जगह एक आयोग स्थापित करना चाहती थी। इसके लिए संसद में NJAC एक्ट पारित किया गया था। लेकिन न्यायपालिका सरकार के इस कदम से खुश नहीं था। मामला कोर्ट पहुंचा। तत्कालीन कानून मंत्री अरुण जेटली ने खूब जोर लगाया लेकिन साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून के खिलाफ फैसला दिया। इस तरह NJAC एक्ट निरस्त हो गया। इतना नहीं कानून को “असंवैधानिक” और ” संविधान की मूल संरचना ” का उल्लंघन करने वाला बताया गया।

इसके बाद एक अस्थायी युद्धविराम हुआ और रणनीति में बदलाव हुआ। अरुण जेटली बहुत पुराने और जाने माने वकील थे। न्यायिक बिरादरी में उनका बहुत सम्मान और परिचय था। दूसरी तरफ किरन रिजिजू कानून के जानकार तो थे लेकिन कानूनी हलकों में उनके परिचित कम थे। यह स्थिति रिजिजू को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है। रिजिजू को यह सोचना नहीं था कि कहीं उनकी बातों से उनके किसी दोस्त को चोट ना पहुंच जाए। यही वजह रही कि उन्हें कानून मंत्री के रूप में मोदी सरकार ने अधिक उपयुक्त पाया।