जजों की नियुक्ति-तबादले को लेकर एक बार फिर सवालिया अंगुली उठी है। यह अंगुली सिस्टम के भीतर से ही उठी है। यानि, जजों की ओर से ही। इनमें से एक जज ने बतौर इलाहाबाद हाईकोर्ट जस्टिस अपना रिटायरमेंट भाषण देते हुए कुछ कहा तो दूसरे जज ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपने अंतिम कार्यदिवस पर दिए भाषण में।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर मंगलवार को सेवानिवृत हुए। एक दिन पहले जस्टिस बिबेक चौधरी का कलकत्ता हाईकोर्ट में आखिरी दिन था। उनका पटना उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो गया है। दोनों जजों ने अपने विदाई समारोह में जो बातें कहीं, वो अब भी चर्चा में हैं।
‘कॉलेजियम ने परेशान करने के इरादे से किया था तबादला’
जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने कहा कि 2018 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से उनके स्थानांतरण का आदेश ‘उन्हें परेशान करने के इरादे से’ दिया था। उन्होंने बताया कि 31 मार्च, 2009 को उन्हें छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। जस्टिस दिवाकर के मुताबिक, 2018 में अचानक एक रोज भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बिना कोई कारण बताए उनका ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया, जहां उन्होंने 3 अक्टूबर, 2018 को पदभार ग्रहण किया।
न्यायाधीश ने कहा, “ऐसा लगता है कि मेरा स्थानांतरण आदेश मुझे परेशान करने के गलत इरादे से जारी किया गया था। हालांकि, यह अभिशाप मेरे लिए वरदान में बदल गया क्योंकि मुझे मेरे साथी न्यायाधीशों के साथ-साथ बार के सदस्यों से भी अथाह समर्थन और सहयोग मिला। और मैं वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का बहुत आभारी हूं जिन्होंने मेरे साथ हुए अन्याय को सुधारा।”
बता दें कि इस साल की शुरुआत में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली कॉलेजियम ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद के लिए न्यायमूर्ति दिवाकर के नाम की सिफारिश की थी
जस्टिस दिवाकर ने न्यायपालिका में काम करने को गर्व से जोड़ा। उन्होंने कहा, “यह हमेशा गर्व की बात रही है कि मुझे इस महान संस्थान में काम करने का मौका मिला, जिसकी अपनी अनूठी कार्यशैली और परंपराएं हैं।”
आलोचना करने से पहले मुश्किलों के बारे में जान लीजिए
इलाहाबाद हाईकोर्ट की दुश्वारियों पर बात करते हुए जस्टिस दिवाकर ने कहा, “इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वर्क लोड को मैनेज करना वास्तव में एक चुनौती है। इसके अलावा इस अदालत को अपनी कार्यप्रणाली की वजह से कई बार आलोचना का शिकार होना पड़ता है। लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि किसी विशेष निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले, आलोचकों को संस्थान में व्याप्त कठिनाइयों और कमियों को अंदर से देखना चाहिए।”
जस्टिस बिबेक चौधरी ने भी उठाई कॉलेजियम पर अंगुली
सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट में अपने विदाई भाषण में जस्टिस बिबेक चौधरी ने अपने तबादले के बारे में बात की। उन्हें कलकत्ता उच्च न्यायालय से पटना हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया है। जस्टिस बिबेक ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा किए गए 24 जजों के ट्रांसफर पर निशाना साधाते हुए कहा, “मुझे कहना होगा कि 1975 में आपातकाल के दौरान, 16 विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को एक ही बार में कार्यकारी निर्णय द्वारा स्थानांतरित कर दिया गया था। अब लगभग 48 वर्षों के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा एक ही बार में 24 न्यायाधीशों को एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरित कर दिया गया है।”
उन्होंने कहा, “मैं परिवर्तन काल के शुरुआती लोगों में से एक हूं, जब सत्ता कार्यपालिका के हाथों से सर्वोच्च न्यायपालिका के हाथों में जा रही थी। भारत सरकार ने 28 जनवरी, 1983 को औपचारिक रूप से घोषित अपनी नीति में कहा है कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश राज्य के बाहर से होंगे। साथ ही उच्च न्यायालय के एक तिहाई न्यायाधीश बाहर से होने चाहिए। मुझे लगता है कि इस नीति पर अमल की शुरुआत हमारे तबादले से ही हुई थी।”
कॉलेजियम पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, “बार के सदस्यों से मुझे बेहद सम्मान, प्यार और स्नेह मिला और इसलिए मुझे आपको छोड़कर जाने का दुख है। हालांकि, यह कॉलेजियम की इच्छा थी जिसने मुझे आपसे अलग कर दिया। …मुझे पता है कि संविधान में अनुच्छेद 222 के तहत न्यायाधीशों के स्थानांतरण का प्रावधान है, इसलिए मैं बिना किसी पछतावे के स्थानांतरण स्वीकार करता हूं। लेकिन साथ ही, पूरी विनम्रता के साथ, उन न्यायिक फैसलों की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा, जिनमें अनुच्छेद 222 का इस्तेमाल बहुत संयम से किए जाने की बात कही गई है।”
कॉलेजियम पर पहले भी उठे हैं सवाल
पूर्व कानून मंत्री से लेकर कई जज तक कॉलेजियम पर सवाल उठा चुके हैं। देश के पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने तो साफ कह दिया था कि जजों की नियुक्ति का काम कार्यपालिका द्वारा किया जाना चाहिए। उन्होंने संविधान का हवाला देते हुए कहा था कि परामर्श देने के अलावा जजों को अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहिए।
उन्होंने आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों को रद्द कर दिया और कॉलेजियम सिस्टम बनाया। उन्होंने कॉलेजियम पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का बेशकीमती समय बर्बाद करने का भी आरोप लगाया था।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने कॉलेजियम पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इस सिस्टम से ऐसे लोग भी जज बने हैं जो काबिल नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि यह सिस्टम पाक-साफ नहीं है। यह बहुत अपारदर्शी तरीके से काम करता है। (विस्तार से पढ़ें)
बचाव में क्या कहा जाता है?
कॉलेजियम के बचाव में भी कई तर्क हैं। खुद सीजेआई चंद्रचूड़ कॉलेजियम सिस्टम का बचाव कर चुके हैं। जनसत्ता.कॉम से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज दीपक गुप्ता ने कहा था कि अब कॉलेजियम में ट्रांसपेरेंसी है।
कॉलेजियम सिस्टम किस तरह काम करता है, यह जानने के लिए नीचे दिया वीडियो देखें:
इसी तरह जस्टिस लोकुर ने कॉलेजियम का बचाव करते हुए कहा था कि कोई बाहरी कॉलेजियम का हिस्सा नहीं हो सकता।