देश में दो तरह के जज होते हैं। एक तो वे जो कानून जानते हैं और दूसरे वो, जो कानून मंत्री को जानते हैं। अब हमने न‍िर्माण कर ली एक व्‍यवस्‍था, ज‍िसमें न्‍यायपाल‍िका का अंत‍िम फैसला ही मान्‍य होता है। हम दुन‍िया के इकलौते देश हैं जहां जजों की न‍ियुक्‍त‍ि जज ही करते हैं। जो (वकील) बेहतरीन हैं, वे तो जज बनना भी नहीं चाहते। ये दूसरी चुनौती है। र‍िटायरमेंट की उम्र तय है, फ‍िर भी जज र‍िटायर नहीं होना चाहते। र‍िटायरमेंट के पहले द‍िए जाने वाले फैसले र‍िटायरमेंट के बाद की नौकरी से प्रभाव‍ित होते हैं।

ऊपर ल‍िखी बातें अक्‍तूबर, 2012 में अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने कही थीं। एक सेम‍िनार में। सेम‍िनार भाजपा (BJP) की लीगल सेल ने आयोज‍ित क‍िया था। तब जेटली पूर्व कानून मंत्री और भाजपा के बड़े नेता थे और केंद्र में सरकार कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए की थी। 

उन द‍िनों बीजेपी के अध्‍यक्ष न‍ित‍िन गडकरी (Nitin Gadkari) थे। उन्‍होंने भी अपनी राय दी थी। गडकरी ने कहा था- 

मेरी राय है क‍ि र‍िटायरमेंट के बाद दो साल का गैप (नई न‍ियुक्‍त‍ि के ल‍िए) होना चाह‍िए। नहीं तो सरकार प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से अदालतों को प्रभाव‍ित कर सकती है। इस तरह देश में स्‍वतंत्र, न‍िष्‍पक्ष न्‍यायपाल‍िका का सपना कभी हकीकत नहीं बन पाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला…

बीजेपी नेताओं के इन बयानों से कुछ सप्‍ताह पहले ही सुप्रीम कोर्ट का भी एक फैसला आया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था क‍ि देश भर में सूचना आयोग का प्रमुख हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के र‍िटायर्ड या मौजूदा जजों को ही बनाया जाए। साथ ही, यहां आने वाली हर अर्जी की सुनवाई दो लोगों द्वारा की जाए। इनमें से एक व्‍यक्‍त‍ि न‍िश्‍च‍ित रूप से र‍िटायर्ड या मौजूदा जज हो या फ‍िर 20 साल के अनुभव वाला कोई वकील हो।

बता दें क‍ि सूचना आयोग के जर‍िए ही सूचना के अध‍िकार (आरटीआई) के तहत मांगी जाने वाली जानकार‍ियां सामने आती हैं। इस तरह इस आयोग की सरकार के दस्‍तावेज तक पहुंच होती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तब कई लोगों ने यह कह कर आलोचना की थी क‍ि यह जजों के ल‍िए लाई गई रोजगार योजना है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के करीब एक साल बाद 5 स‍ितंबर, 2013 में अरुण जेटली ने राज्‍यसभा में भी कुछ ऐसी ही बात कही थी। उन्‍होंने कहा था

कुछ अपवादों को छोड़ कर लगभग हर कोई (जज) र‍िटायरमेंट के बाद जॉब चाहता है। अगर हम (संसद) इसकी व्‍यवस्‍था नहीं करें तो वे खुद कर लेंगे। र‍िटायरमेंट के बाद पद पाने की इच्‍छा र‍िटायरमेंट से पहले के फैसलों को प्रभाव‍ित करती है। यह न्‍यायपाल‍िका की स्‍वतंत्रता के ल‍िए खतरा है।

बेनजीर नजीर 

बतौर सुप्रीम कोर्ट जज र‍िटायर होने (चार जनवरी, 2023) के 39 द‍िन बाद ही (12 फरवरी) जस्‍ट‍िस एस. अब्‍दुल नजीर (Justice S. Abdul Nazeer)  को आंध्र प्रदेश का राज्‍यपाल (Governor of Andhra Pradesh) बनाने की घोषणा हो गई। इसके साथ ही न्‍यायपाल‍िका की साख और जवाबदेही पर एक बार फ‍िर बहस शुरू हो गई। इस तथ्‍य के बावजूद क‍ि जजों को र‍िटायर होने के बाद पद द‍िए जाने का यह पहला मामला नहीं है। लेक‍िन, जो थोड़ा अप्रत्‍याश‍ित है, वह यह क‍ि जस्‍ट‍िस नजीर को र‍िटायरमेंट के बाद काफी जल्‍दी पद म‍िल गया।

जस्‍ट‍िस नजीर सुप्रीम कोर्ट में 2017 में जज बने थे। वह क‍िसी हाईकोर्ट में चीफ जस्‍टि‍स रहे ब‍िना सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उनके जज बनने से पहले सुप्रीम कोर्ट में केवल दो बार ही ऐसा हुआ था। सुप्रीम कोर्ट में जज रहते वह  2021 में 26 द‍िसंबर को वह अख‍िल भारतीय अध‍िवक्‍ता पर‍िषद (एबीएपी) की नेशनल काउंस‍िल मीट‍िंग में संबोधन के ल‍िए गए थे। एबीएपी का राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) से ठोस वैचार‍िक जुड़ाव है।

सुप्रीम कोर्ट में वह सर्वाध‍िक समय तक काम करने वाले चुन‍िंंदा जजों में शाम‍िल रहे। नोटबंदी, अयोध्‍या, सीबीआई न‍िदेशक पद से आलोक वर्मा की व‍िदाई, तीन तलाक, सबरीमाला, आधार, आजम खान केस समेत कई मुद्दों की सुनवाई में वे शाम‍िल रहे।

पांच पुराने उदाहरण 

  • जस्‍ट‍िस एस. फजल अली: 18 स‍ितंबर, 1951 को र‍िटायर हुए और 7 जून, 1952 को ओड़‍िशा के राज्‍यपाल बनाए गए। वह 1956 से 1959 तक असम के भी गवर्नर रहे। 
  • जस्‍ट‍िस फात‍िमा बीवी: 29 अप्रैल, 1992 को सुप्रीम कोर्ट से र‍िटायर हुईं और 1997 में तम‍िलनाडु की राज्‍यपाल बनाई गईं। 
  • जस्‍ट‍िस पी. सतश‍िवम सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश (सीजेआई) पद से 26 अप्रैल, 2014 को र‍िटायर हुए और उसी साल पांच स‍ितंबर को केरल के राज्‍यपाल की कुर्सी पर ब‍िठाए गए
  • रंजन गोगोई को 2020 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्‍ट‍िस पद से र‍िटायर होने के करीब चार महीने बाद ही राज्‍यसभा के ल‍िए मनोनीत क‍िया गया था। न्‍यायपाल‍िका से र‍िटायर हुई क‍िसी हस्‍ती को मनोनयन के जर‍िए राज्‍यसभा भेजने का यह पहला उदाहरण था। गोगोई राफेल, अयोध्‍या, आलोक वर्मा को सीबीआई न‍िदेशक पद से हटाने सह‍ित सरकार से जुड़े कई मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच में थे। इनके फैसले सरकार के हक में आए थे।
  • जस्‍ट‍िस रंगनाथ म‍िश्रा: 1992 में सीजेआई के पद से रिटायर हुए। नर‍स‍िंंहा राव सरकार में 1993 में राष्‍ट्रीय मानवाधि‍कार आयोग के अध्‍यक्ष बनाए गए। अटल सरकार के दौरान 1998 में कांग्रेस के ट‍िकट पर राज्‍यसभा गए। तब कांग्रेस व‍िपक्ष में थी, फ‍िर भी आरोप लगे क‍ि जस्‍ट‍िस म‍िश्रा को रंगनाथ आयोग र‍िपोर्ट के जर‍िए स‍िख दंगों के आरोपी कांग्रेस के बड़े नेताओं को बचाने की कोश‍िशों का इनाम द‍िया गया है।   

कानून बनाम इरादा

यूपीए-एक और दो के दौरान 14 र‍िटायर्ड जजों को पद द‍िए गए थे। जबक‍ि, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह संख्‍या करीब एक दर्जन बताई जाती है।  

क‍िसी जज को र‍िटायर होने के क‍ितने द‍िन बाद पद द‍िया जाए, इस बारे में कोई कानून नहीं है। लेक‍िन, व‍िध‍ि आयोग (Law Commission) के पूर्व अध्‍यक्ष जस्‍टि‍स एपी शाह ने स‍िफार‍िश की थी जजों को र‍िटायर होने के तीन साल बाद ही सरकार से कोई पद लेना चाहि‍ए। लेक‍िन, 2019 में केंद्र सरकार ने संसद में साफ क‍िया क‍ि इस बारे में अलग से कानून बनाने का उसका कोई इरादा नहीं है। मतलब साफ है क‍ि न्‍यायपाल‍िका की जवाबदेही और साख पर उठने वाले सवालों का अभी अंत नहीं है।