हरियाणा के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस की जोरदार तैयारियों के बीच जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के सामने अपने वजूद को बचाने का संकट है। 2019 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़कर 10 सीटें जीतने वाली जेजेपी इस चुनाव से पहले काफी मुसीबतों का सामना कर रही है। उसके कई विधायक बागी हो चुके हैं, लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है और बड़ी संख्या में नेता और कार्यकर्ता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।

ऐसे में जेजेपी के सामने सवाल इस बात का है कि क्या पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय चौटाला जेजेपी को मुसीबतों से बाहर निकाल पाएंगे?

उचाना से लड़ेंगे दुष्यंत, डबवाली से दिग्विजय

इन दुश्वारियों के बीच विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटते हुए जेजेपी ने उचाना से दुष्यंत चौटाला, डबवाली से दिग्विजय चौटाला, जुलाना से अमरजीत ढांडा और दादरी से राजदीप फोगाट का नाम फाइनल कर दिया है। इसके अलावा भी अन्य 20 सीटों पर प्रत्याशियों के टिकट तय कर दिए गए हैं।

इसके अलावा संगठन को चुनाव के लिए तैयार करते हुए सलाहकार समिति, पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी और अनुशासन समिति का भी गठन किया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अजय सिंह चौटाला के नेतृत्व में दस सदस्यीय सलाहकार समिति भी बनाई गई है।

Nayab singh Saini
नायब सिंह सैनी के कंधों पर बीजेपी को जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है। (Source-NayabSainiOfficial)

2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद जब बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला था तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दुष्यंत चौटाला से मुलाकात कर उन्हें बीजेपी के साथ सरकार बनाने का न्यौता दिया था।

जेजेपी ने इस मौके का फायदा उठाया और दुष्यंत चौटाला राज्य की सरकार में उपमुख्यमंत्री बने और जेजेपी के दो नेता भी मनोहर लाल खट्टर सरकार में मंत्री बने। साढ़े चार साल तक बीजेपी-जेजेपी की सरकार चली लेकिन इस साल मार्च में बीजेपी ने बिना कुछ बताए जेजेपी से अपना गठबंधन तोड़ दिया।

बागी हो गए विधायक

जैसे ही सरकार में बीजेपी की हिस्सेदारी खत्म हुई, कुछ विधायकों ने खुलकर दुष्यंत चौटाला और अजय चौटाला को तेवर दिखाने शुरू कर दिए। हालांकि पहले भी कुछ विधायकों ने धीमी आवाज में पार्टी नेतृत्व को तेवर दिखाए थे।

नारनौंद के विधायक रामकुमार गौतम, टोहाना से देवेंद्र बबली, बरवाला से जोगीराम सिहाग, गुहला से ईश्वर सिंह, नरवाना से रामनिवास सुरजाखेड़ा, शाहबाद से रामकरण काला पार्टी से बगावत कर चुके हैं। सिर्फ 4 विधायक ही जेजेपी के साथ हैं। इनमें दुष्यंत चौटाला, उनकी मां नैना चौटाला, उकलाना से अनूप धानक और जुलाना से अमरजीत ढांडा शामिल हैं।

इसके अलावा लंबे समय तक हरियाणा में पार्टी के अध्यक्ष रहे निशान सिंह भी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके अलावा भी कई बड़े पदाधिकारियों ने पार्टी को अलविदा कह दिया है।

nayab singh saini
हरियाणा का विधानसभा चुनाव जीत पाएगी बीजेपी?(Source-FB)

जेजेपी से नाराज दिखते हैं किसान

कृषि कानूनों के खिलाफ चले आंदोलन की वजह से दुष्यंत चौटाला को लंबे वक्त तक किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। किसान आंदोलन में शामिल हरियाणा के किसानों का कहना था कि जेजेपी को बीजेपी के साथ अपना गठबंधन तोड़ देना चाहिए लेकिन दुष्यंत चौटाला ने तब गठबंधन नहीं तोड़ा था और इस वजह से हरियाणा की किसान बेल्ट में कई बार दुष्यंत चौटाला और जेजेपी के खिलाफ नाराजगी देखने को मिली है।

जेजेपी ने जब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब भी हरियाणा की राजनीति से ऐसी खबरें आती थी कि जेजेपी के समर्थक दुष्यंत चौटाला के फैसले से नाराज हैं क्योंकि जेजेपी को बीजेपी विरोधी मतों के मुकाबले ही बड़ी कामयाबी मिली थी।

nayab saini| haryana govt| assembly election
हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी (Source- twitter)

26 की उम्र में सांसद बन गए थे दुष्यंत

दुष्यंत चौटाला ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत बहुत धमाकेदार ढंग से की थी, जब साल 2014 में सिर्फ 26 साल की उम्र में वह हिसार लोकसभा सीट से सांसद बने थे। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई को हराया था। तब उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया था।

लेकिन नवंबर, 2018 में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला ने अजय चौटाला और उनके दोनों बेटों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बाद अजय चौटाला ने जेजेपी का गठन किया था।

चाचा से मिल रही चुनौती

दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को सबसे बड़ी चुनौती अपने चाचा अभय चौटाला से मिल रही है। अभय चौटाला ने किसान आंदोलन के समर्थन में विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया था। इससे जाट समुदाय और किसानों के बीच अभय चौटाला की लोकप्रियता बढ़ी थी। ओमप्रकाश चौटाला और अभय चौटाला कई बार कह चुके हैं जेजेपी के नेताओं को वापस इनेलो में नहीं लिया जाएगा।

लोकसभा चुनाव में मिले सिर्फ .87% वोट

जेजेपी ने इस बार लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन सभी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। पार्टी को सिर्फ .87% वोट मिले। यहां तक कि बसपा को हरियाणा में 1.28% और इनेलो को 1.74% वोट मिले थे। जेजेपी 90 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई। 2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी को 14.84% वोट मिले थे।

हालात इस कदर खराब रहे कि दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला ने हिसार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा तो उन्हें सिर्फ 22032 वोट मिले। जबकि 2014 में दुष्यंत यहां से जीते थे और नैना चौटाला खुद दो बार विधानसभा का चुनाव जीत चुकी हैं।

लोकसभा सीट मिले वोट
भिवानी-महेंद्रगढ़15,265 
गुरुग्राम13,278 
सिरसा20,080 

जेजेपी ने बीते साल दिसंबर में राजस्थान में 19 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन एक को छोड़कर सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

2019 के विधानसभा चुनाव में जेजेपी को जो 10 सीटें मिली थी, उसमें से छह विधानसभा सीटें तो जींद और हिसार जिले में ही उसने जीती थी। इसके अलावा फतेहाबाद, चरखी दादरी, कैथल और कुरुक्षेत्र में भी उसे एक-एक सीट मिली थी लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में हिसार और जींद के इलाकों में कांग्रेस काफी मजबूती से उभरी है और चूंकि जेजेपी हरियाणा में विधानसभा की एक सीट पर भी बढ़त नहीं बना सकी है इसलिए भी पार्टी के सामने मुश्किलें ज्यादा हैं।

Nayab Singh saini kumari selja
प्रत्याशियों के चयन को लेकर सर्वे कराएगी बीजेपी। (Source-FB)

इतने सारे झटके खाने के बाद जेजेपी के सामने इस विधानसभा चुनाव में करो या मरो का सवाल है। बेहद कम वोट शेयर, नेताओं के पार्टी छोड़ने, कोई सहयोगी दल साथ न होने की वजह से जेजेपी के सामने निश्चित रूप से चुनौतियां बेहद ज्यादा हैं और अब जब हरियाणा में विधानसभा के चुनाव बेहद नजदीक हैं, ऐसे में अजय चौटाला और उनके बेटे जेजेपी को क्या 2019 में मिली कामयाबी के आस-पास तक पहुंचा पाएंगे?, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों की नजर है।