राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (M. S. Golwalkar) सबसे लंबे समय (1940–1973) तक संघ प्रमुख रहे। गोलवलकर ने 1 जनवरी, 1969 को पुणे में ‘दैनिक नवाकाल’ के संपादक को दिए इंटरव्यू में कहा था कि महात्मा गांधी की सलाह को मानते हुए कांग्रेस पार्टी को खत्म करना चाहिए।
संपादक ने गोलवलकर से समान अवसर को लेकर सवाल पूछा था, जिसके जवाब में उन्होंने कहा, “सबसे पहले यह ध्यान में रखें कि समान अवसर का अर्थ ‘नौकरी’ नहीं है। अंग्रेजों के शासनकाल में ज्यादातर ब्राह्मण नौकरी और रायबहादुरी की धुन में लग गया। यानी जिस वर्ग पर स्वतंत्र रहकर समाज का मार्गदर्शन करने का दायित्व था, उसी ने गुलामी स्वीकार कर समाज को नुकसान पहुंचाया।
प्रत्येक व्यक्ति को अपना कार्य करना चाहिए और शिक्षा ग्रहण कर उसे अधिक संपन्न बनाना चाहिए। किसान का लड़का शिक्षा प्राप्त करते ही खेती छोड़कर नौकरी के पीछे भागता है। इसमें किसका हित है? इससे देश की स्थिति असंतुलित हो रही है। शिक्षा केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि सभी के व्यवसाय के लिए उपयोगी होनी चाहिए और वैसी शिक्षा प्राप्त करने का सबको समान अवसर मिलना चाहिए।”
स्वतंत्रता सेनानियों ने समाज को धक्का पहुंचाया
गोलवलकर का मानना था कि अंग्रेजों के शासनकाल में नौकरी के पीछे भागकर ब्राह्मणों ने जैसा आघात पहुंचाया, वैसा ही धक्का स्वतंत्रता सेनानियों ने समाज को दिया। संपादक से बातचीत में गोलवलकर कहते हैं, “जेल जाने व त्याग करने के कारण स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान मिला था। लेकिन उन्हीं लोगों ने सत्ता और स्वार्थ के पीछे पड़कर समाज को जबरदस्त आघात पहुंचाया। जो असल मायने में उदारवादी थे सत्ता उन्हीं के हाथों में सौंपना चाहिए था। ऐसा करने के बजाय जो लोग स्वतंत्रता के लिए जेल गए, जिन्होंने सत्याग्रह किया, वो ही सत्ता पर आ गए और स्वार्थ में दबकर अपनी प्रतिष्ठा भी खो दी।”
‘कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए था’
गोलवलकर, कांग्रेस को खत्म करने के गांधी के विचारों का समर्थन करते हैं। वह कहते हैं, “गांधी जी ने कांग्रेस को विसर्जित करने का जो सुझाव पेश किया था, वह बहुत ही अच्छा था। शांतिकाल में युद्धकाल की सर्वश्रेष्ट संरचना भी विसर्जित करनी जरूरी हो जाती है। गांधी जी का सुझाव ठीक ऐसा ही था। उनकी ट्रस्टीशिप की कल्पना भी उत्कृष्ट थी, लेकिन उनकी बात किसी ने सुनी नहीं। मंत्रियों का रहन-सहन सादगीपूर्ण होना चाहिए। आने-जानेवालों पर जो खर्च होता हो, सो तो होता ही है, लेकिन मंत्रियों को गांधी जी की तरह ही झोपड़ियों में रहना चाहिए। चारों ओर दारिद्रय रहते हुए भी उनका ऐश-आराम चलता है। समाज पर इन सब बातों से अनिष्ट आघात हुए हैं।”
जमात-ए-इस्लामी को दी थी सलाह
पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह को दिए इंटरव्यू में गोलवलकर ने बताया था कि एक बार उनसे मिलने जमात-ए-इस्लामी का एक प्रतिनिधि मंडल पहुंचा था। गोलवलकर ने उन्हें मुस्लिम समाज को लेकर सलाह दी थी कि यह बात भूल जानी चाहिए कि उन्होंने (मुसलमानों) भारत पर राज किया था। विदेशी मुस्लिम देशों को उन्हें अपना घर नहीं समझना चाहिए और भारतीयता के मुख्यधारा में शामिल हो जाना चाहिए। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)
