इजरायल के हमलों से गाजा में मानवीय संकट पैदा हो चुका है। तबाही, विस्थापन और मौत की तस्वीरों का आना लगातार जारी है। दुनिया के कई अन्य देशों की तरह ही भारत में भी गाजा के नागरिकों के लिए एकजुटता दिखाई जा रही है, संवेदना व्यक्त की जा रही है।

ऐसी ही एक सॉलिडेरिटी मीटिंग के दौरान 20 अक्टूबर को जम्मू से 92 वर्षीय शेख अब्दुल रहमान को हिरासत में ले लिया गया। इस घटना से पहले अब्दुल रहमान को जम्मू-कश्मीर में उनके अन्य कामों की वजह से जाना जाता रहा है, जिनमें से अधिकांश आरएसएस से जुड़े हैं।

शेख अब्दुल रहमान का BJP-RSS कनेक्शन

शेख अब्दुल रहमान पूर्व सांसद और दो बार के विधायक हैं। वह भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) की जम्मू-कश्मीर इकाई के एकमात्र निर्वाचित मुस्लिम अध्यक्ष रहे हैं। बतौर अध्यक्ष उनका कार्यकाल 1972 से 1973 तक था। वह 1972 में जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में जीतने वाले एकमात्र मुस्लिम भी रहे हैं। उन्होंने हिंदू बहुल जम्मू नॉर्थ विधानसभा सीट (अब जम्मू ईस्ट और जम्मू वेस्ट) से चुनाव लड़ा था।

पहले इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व पंडित प्रेम नाथ डोगरा करते थे। उन्होंने 1947 में आरएसएस से संबद्ध ‘जम्मू प्रजा परिषद’ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डोगरा और उनके संगठन ने जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण रूप से विलय का भी आह्वान किया था। 1972 के विधानसभा चुनाव के वक्त डोगरा का स्वास्थ्य खराब था। उन्होंने चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया और खुद जम्मू उत्तर के लिए रहमान का नाम आगे किया।

चुनाव जीतने के बाद रहमान आशीर्वाद लेने प्रेम नाथ डोगरा के पास पहुंचे। डोगरा ने नए विधायक के सिर पर अपनी पगड़ी रख दी और प्रतीकात्मक रूप से रहमान को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। इसी वर्ष रहमान को सर्वसम्मति से जनसंघ की राज्य इकाई का अध्यक्ष भी चुन लिया गया।

हालांकि एक साल बाद ही जनसंघ के संस्थापक सदस्य और तत्कालीन महासचिव यज्ञ दत्त शर्मा ने पार्टी की निर्वाचित राज्य कार्य समिति को भंग कर दिया। रहमान ने फैसले को असंवैधानिक बताते हुए पार्टी के भीतर इसका विरोध किया। जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने शर्मा के फैसले का समर्थन किया, तो रहमान ने इस्तीफा दे दिया।

विभाजन की त्रासदी में खोया परिवार

शेख अब्दुल रहमान भारत-पाकिस्तान विभाजन के शिकार रहे हैं। उन्होंने विभाजन के बाद भद्रवाह में हुए दंगों में अपने माता-पिता, चाचा, भाई और बहनों सहित परिवार के 16 सदस्यों को खो दिया था। वह केवल 10वीं कक्षा तक की स्कूली शिक्षा हासिल कर सके थे। जनसंघ तक पहुंचने की उनकी राह दिलचस्प थी।

छात्र राजनीति के दौरान शेख अब्दुल्ला के मैसेंजर थे रहमान

छात्र जीवन में शेख अब्दुल रहमान नेशनल कॉन्फ्रेंस के भद्रवाह छात्र विंग के अध्यक्ष थे। रहमान किशोरावस्था में थे। उन्हें जेल में बंद नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला तक संदेश पहुंचाने और जवाब लाने का काम सौंपा गया था। जेल में अब्दुल्ला को सीमित संख्या में ही लोगों से मिलने की अनुमति थी। ऐसे में रहमान ने अब्दुल्ला तक मैसेज पहुंचाने की एक तरकीब निकाली थी। वह अपने हिंदू दोस्तों को जेल परिसर में मौजूद मंदिर में पूजा करने भेजते थे। दोस्त पूजा के बहाने जेल में घुसकर अब्दुल्ला तक पत्र पहुंचा देते थे और लौटते वक्त पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए उनके संदेश वापस लाते थे।

विभाजन की हिंसा के दौरान रहमान का नेशनल कॉन्फ्रेंस से नाता टूट गया। इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, रहमान ने पार्टी के स्थानीय नेताओं से भद्रवाह में चोरी और एक हिंदू महिला के अपहरण के प्रयास की शिकायत की थी। लेकिन पार्टी नेताओं ने कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। नाराज रहमान ने पार्टी से ताल्लुक खत्म कर लिया।

उप-प्रधानमंत्री से ले लिया पंगा

अक्टूबर 1947 में शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर प्रशासन का प्रमुख नियुक्त किया गया था। बख्शी गुलाम मोहम्मद उप प्रमुख बनाए गए थे। मार्च 1948 में प्रशासन को एक अंतरिम सरकार में अपग्रेड किया गया। इस तरह शेख अब्दुल्ला ‘प्रधानमंत्री’ और बख्शी गुलाम ‘उप प्रधानमंत्री’ बन गए।

1948 में बख्शी गुलाम ने भद्रवाह का दौरा किया। जब उन्हें बताया गया कि रहमान पार्टी छोड़कर अपने पैतृक गांव खालू लौट गए हैं, तो उप प्रधानमंत्री ने उन्हें बुलावा भेजा। रहमान ने कहा कि वह अगली सुबह ही आएंगे। कहा जाता है कि इस ‘अपमान’ से नाराज होकर बख्शी ने कहा था, “लड़के को नहीं पता कि मैं अब उप प्रधानमंत्री और गृह विभाग का प्रभारी मंत्री हूं। वह अपनी कब्र खुद खोद रहा है।”

बख्शी की धमकी और संघ से जुड़ी पार्टी का प्रस्ताव

कहानी के अनुसार, अगले दिन ‘जम्मू प्रजा परिषद’ के एक नेता स्वामी राज ‘एडवोकेट’ रहमान से मिलने पहुंचे। उन्होंने रहमान से पार्टी में शामिल होने के लिए कहा। उन्होंने लोकतंत्र के तकाजे को समझाते हुए कहा कि एक सफल लोकतंत्र के लिए विपक्ष की आवश्यकता है। रहमान के दिमाग में बख्शी के शब्द पहले ही गूंज रहे थे। ऐसे में समाने से आए इस प्रस्ताव को रहमान ने स्वीकार कर लिया और प्रजा परिषद में शामिल हो गए।

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रजा परिषद में शामिल होने से वह मुसलमानों के बीच कुछ हद तक बहिष्कृत हो गए थे। उन्हें लंबे समय तक मस्जिदों और सामुदायिक समारोहों से प्रतिबंधित कर दिया गया था।

जब प्रजा परिषद के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण का आंदोलन शुरू हुआ, तो संगठन ने रहमान को अपना भद्रवाह प्रभारी बनाया। रामबन और किश्तवाड़ में पुलिस गोलीबारी की घटनाएं हुईं और कई गिरफ्तारियां भी हुईं। लेकिन रहमान भूमिगत होकर बच निकले।

जब प्रजा परिषद का जनसंघ में विलय हुआ तो रहमान भी जनसंघ का हिस्सा बन गए। राज्य समिति की नियुक्तियों को लेकर जनसंघ के साथ उनका मतभेद तब हुआ जब उन्हें राज्य अध्यक्ष बने बमुश्किल कुछ साल हुए थे।

कई पार्टियों से घूम कर वापस नेशनल कॉन्फ्रेंस में पहुंचे

जनसंघ से अलग होने के बाद रहमान ने चौधरी चरण सिंह की भारतीय लोक दल का राज्य में नेतृत्व किया। आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें जम्मू-पुंछ से जनता पार्टी के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया गया, लेकिन वे हार गये।

पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह ने बाद में रहमान को उत्तर प्रदेश से राज्यसभा भेजा। चरण सिंह की पार्टी के साथ रहमान का कार्यकाल भी ज्यादा समय तक नहीं रहा। 1990 में वह बहुजन समाज पार्टी में चले गए और 1996 में भद्रवाह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए फिर से चुने गए।

2011-12 के आसपास जब नेशनल कॉन्फ्रेंस सत्ता में थी, रहमान वापस पार्टी में लौट आए। हाल के वर्षों में बढ़ती उम्र के साथ रहमान सक्रिय राजनीति में दूर हो गए हैं। उनके तीनों बेटों को भी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है।

मेरा गुनाह क्या है?

पिरमिथा पुलिस स्टेशन के SHO मोहम्मद राशिद की मानें तो अनुभवी राजनेता शेख अब्दुल रहमान के खिलाफ कोई औपचारिक एफआईआर या मामला दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि एहतियात के तौर पर उसे पुलिस स्टेशन में रखा गया था। रहमान को एक रात के लिए हिरासत में रखा गया और अगली शाम एक बांड पर हस्ताक्षर करने के बाद रिहा कर दिया गया था।

घर वापस आकर रहमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पिछले साल दिया बयान याद दिलाते हैं। वह कहते हैं पिछले साल फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता दिखाते हुए प्रधानमंत्री कहा था, “फिलिस्तीन के मित्रों के साथ भारत के संबंध हमारे साझा इतिहास में निहित हैं… हमें उम्मीद है कि बातचीत के जरिए समाधान खोजने के लिए फिलिस्तीनी और इजरायली पक्षों के बीच सीधी बातचीत फिर से शुरू होगी।” रहमान कहते हैं, “हमने भी तो यही कहा था कि अमन कायम करो और हिंसा बंद करो।”

हिरासत में लिए जाने की घटना के बाद रहमान का कहना है कि वह अब अपने खिलाफ मामले का पता लगाने के लिए आरटीआई दाखिल करेंगे। वह कहते हैं, “हमें इतना तो बता दो कि हमारा जुर्म क्या था।”