(द इंडियन एक्सप्रेस ने UPSC उम्मीदवारों के लिए इतिहास, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कला, संस्कृति और विरासत, पर्यावरण, भूगोल, विज्ञान और टेक्नोलॉजी आदि जैसे मुद्दों और कॉन्सेप्ट्स पर अनुभवी लेखकों और स्कॉलर्स द्वारा लिखे गए लेखों की एक नई सीरीज शुरू की है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स के साथ पढ़ें और विचार करें और बहुप्रतीक्षित UPSC CSE को पास करने के अपने चांस को बढ़ाएं। इस लेख में, पौराणिक कथाओं और संस्कृति में विशेषज्ञता रखने वाले प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक बताते हैं कि भारत में मुस्लिम शासन को एक होमोजेनियस एंटिटी  के रूप में क्यों नहीं देखा जा सकता है।)

पॉलिटिशियनंस आमतौर पर इस्लामी काल (1000 से 1800) को मुगल काल (1500-1800) के रूप में संदर्भित करते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। मुगलों की मंगोलियन जड़ें थीं, जबकि भारत के पहले के मुस्लिम शासकों की तुर्की (घुरिद, मामलूक, खिलजी, तुगलक) और अफगान (लोदी, सूरी) जड़ें थीं। मुगलों ने शाही फ़ारसी दरबारी रीति-रिवाजों का पालन किया। तुर्क और अफ़गान ज़्यादा ट्राइबल थे, इसलिए उन्होंने समानाधिकारवादी अरब तरीकों को तवज्जो दी।

भारत में मुस्लिम शासन को एक समरूप इकाई के रूप में देखने की प्रवृत्ति है। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। इस्लामी दुनिया अरब में उभरी लेकिन सांस्कृतिक रूप से पर्शिया (Persia – फारस) अधिक समृद्ध था। फारसियों के पास इस्लाम से पहले के शानदार साम्राज्यों और राजवंशों का एक लंबा इतिहास है। वे ब्लडलाइन को महत्व देते हैं और इसलिए वे ज़्यादातर शिया हैं, जिनकी विशेषता वंशानुगत शिक्षकों के कई स्कूल हैं, जिनके लिए मकबरे बनाए गए थे। अरब ज़्यादातर सुन्नी हैं, जो ब्लडलाइन को महत्व नहीं देते। वे कला, वास्तुकला और सौंदर्यशास्त्र से सावधान दिखते हैं और कब्र-निर्माण (मकबरा बनाने) से दूर रहते हैं।

अरब से बहुत पहले फारस में पारसी धर्म और मनिचैइज्म के रूप में एकेश्वरवाद (monotheism) था। लेकिन जब इस्लाम 700 ई. से 900 ई. तक फारस में फैला, तो एक ‘सदी की खामोशी’ थी जब पुरानी फारसी संस्कृति को इस्लाम के अनुकूल बनाने के लिए बेरहमी से बदल दिया गया था। बाद में, 800 ई. के आसपास बगदाद के अब्बासिद खलीफाओं के उदय के साथ फारस अरबी शक्ति के लिए एक चुनौती के रूप में फिर से उभरा, और इससे भी अधिक शक्तिशाली रूप से महमूद गजनी के उदय के साथ – मध्य एशिया का हमलावर जिसने 1000 ई. के आसपास भारत को लूटा। गजनी कवि फिरदौसी का संरक्षक था जिसने “शाहनामा” या “पर्शियन बुक ऑफ किंग्स” लिखी थी, जो इस्लाम-पूर्व फारस की एकमात्र साहित्यिक स्मृति है।

”गनपाउडर किंगडम्स”

मध्य एशिया (फारस के पूर्व) से आए तुर्कों ने मॉडर्न-डे तुर्की (फारस के पश्चिम) में ओटोमन साम्राज्य बनाने के लिए माइग्रेट किया। उन्होंने मिस्र के मामलुकों को हराया। 1600 ई. के बाद, दुनिया पर तीन महान मुस्लिम “गनपाउडर” साम्राज्यों का प्रभुत्व था: तुर्की के ओटोमन, फारस के सफाविद और भारत के मुगल।

ओटोमन खुद को खलीफा के उत्तराधिकारी मानते थे। सफाविद सूफी गुरुओं और शिया रहन-सहन के तरीकों की ओर आकर्षित थे। मुगलों ने फारसी शब्दावली का उपयोग करते हुए खुद को बादशाह (विश्व-सम्राट) और शहंशाह (राजाओं का राजा) कहा। उन्होंने खुद को पहले के तुर्की सुल्तान से अलग किया, जो सिद्धांत रूप में खलीफा को महत्व देते थे। इल्तमुश एकमात्र दिल्ली सम्राट था जिसने औपचारिक रूप से खलीफा से मान्यता मांगी थी।

भारत के सुल्तान और बादशाह दोनों ही शाही परिवार के सदस्यों के लिए भव्य मकबरे बनवाने के शौकीन थे, जिसकी शुरुआत इल्तमुश से हुई, जो मस्जिदों और दरगाहों की वास्तुकला से मिलती-जुलती थी। यह एक फारसी प्रथा थी जिसकी शुरुआत फारस में बनी सबसे पुरानी ऐसी कब्र गोनबाद-ए-कबूस (1000 ई.) से हुई थी। यह संभवतः प्राचीन अचमेनिद राजाओं (500 ई.पू.) की कब्रों से प्रेरित थी, जो पारसी और इस्लामी अंतिम संस्कार प्रथाओं को चुनौती देती थी। मुगल सम्राट औरंगजेब एकमात्र अपवाद था; उसने अपने लिए मकबरा बनवाने से परहेज किया और इस्लामी दफन प्रथा को चुना।

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भारत में इस्लामी शासन के तीन चरण

भारत में इस्लामी शासन को तीन फेज में बांटा जा सकता है। पहला फेज, 10वीं से 12वीं शताब्दी तक, रेड्स का दौर था। महमूद गजनी (पूर्वी अफ़गानिस्तान में) जैसे आदिवासी तुर्की सरदार भारत में घुसते थे, शहरों और धन और शक्ति के सेंटर्स, विशेष रूप से मंदिरों पर हमला करते थे, ताकि उनकी संपत्ति लूट सकें। इससे भारत से चांदी का बहुत ज्यादा आउट फ्लो हुआ।

दूसरा चरण 12वीं सदी के अंत में शुरू हुआ जब सल्तनत की स्थापना हुई, जिसकी शुरुआत गुरीद सल्तनत से हुई। ग़ुरीद मध्य एशिया के ताजिक थे। इस अवधि के दौरान दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण किया गया था, और इसी तरह की एक मीनार – जाम की मीनार – अफगानिस्तान में बनाई गई थी, जो दो भाइयों, ग़यासुद्दीन गोरी और मुइज़ुद्दीन मुहम्मद गोरी द्वारा शासित एक महान साम्राज्य के दो छोरों को चिह्नित करती है।

इसके बाद मामलूक आए, जो ताजिकों के गुलाम थे, लेकिन तुर्की क्षेत्र से थे। उनके बाद खिलजी और तुगलक आए, दोनों मध्य एशिया से थे, उसके बाद लोधी और सूरी आए, जो अफ़गान पश्तून क्षेत्रों से आए थे। इन राजवंशों ने राजतंत्र के अरब मॉडल का बारीकी से पालन किया और खलीफा के समर्थन पर निर्भर थे, जो उस समय बगदाद, इराक में स्थित था।

बाबर को फारसी उपाधियां क्यों पसंद थीं?

यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि खलीफा राज्य मूल रूप से मदीना में स्थापित किया गया, बाद में यह सीरिया के दमिश्क में स्थानांतरित हो गया, 8वीं शताब्दी में बगदाद में बसने से पहले, जहां यह लगभग 500 वर्षों तक फलती-फूलती रही। हालांकि, 13वीं शताब्दी में, बगदाद को मंगोलों ने नष्ट कर दिया था। जबकि मंगोलों ने पंजाब के कई हिस्सों पर आक्रमण किया, वे खिलजी के भयंकर प्रतिरोध के कारण दिल्ली तक नहीं पहुंच सके और क्योंकि चंगेज खान ने एक सींग वाले गैंडे (एक चीनी-बौद्ध किंवदंती) का सपना देखा था जिसने उसे वापस लौटने के लिए कहा था।

हालांकि, सौ साल बाद, मंगोल वंश के एक उज्बेक तैमूर लंग ने 1399 में दिल्ली पर आक्रमण किया और लूटपाट की, जिससे इस्लामी शासन की संरचना में बदलाव आया।

बाबर, मुगल, अपने पिता की ओर से तैमूरिद था और अपनी मां की ओर से महान मंगोल खान, चंगेज से जुड़ा हुआ था। वह फारसी संस्कृति से बहुत प्रभावित था, जैसा कि भारत में लाए गए चार-बाग लैंडस्केप गार्डन के प्रति उसके प्रेम से पता चलता है। नतीजतन, सुल्तान की उपाधि अपनाने के बजाय, उसने और उसके वंशजों ने बादशाह (शासक) और शहंशाह (राजाओं का राजा) जैसी फारसी उपाधियों को प्राथमिकता दी।

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Post Read Questions

भारत में मुस्लिम शासन को एक समरूप इकाई के रूप में देखने की प्रवृत्ति है, जो भारत में इस्लामी काल (1000 से 1800) को मुगल काल के रूप में संदर्भित करने से स्पष्ट है। टिप्पणी करें।

बगदाद के अब्बासिद खलीफाओं (लगभग 800 ई. से) ने इस्लाम के प्रारंभिक प्रसार के बाद फारसी प्रभाव को पुनर्जीवित करने में किस प्रकार सहायता की?

1600 ई. के बाद, दुनिया पर तीन महान मुस्लिम “गनपाउडर किंगडम्स” का प्रभुत्व था: तुर्की के ओटोमन, फारस के सफाविद और भारत के मुगल। वे एक दूसरे से कैसे भिन्न थे?

भारत में इस्लामी शासन को तीन चरणों में कैसे विभाजित किया जा सकता है? 12वीं शताब्दी के अंत में ग़ुरीद सल्तनत की स्थापना किस तरह एक बदलाव का संकेत थी?

सुल्तान की उपाधि अपनाने के बजाय बाबर और उसके वंशजों ने बादशाह और शहंशाह जैसी फारसी उपाधियों को क्यों प्राथमिकता दी?

(देवदत्त पटनायक एक प्रसिद्ध पौराणिक कथाकार हैं जो कला, संस्कृति और विरासत पर लिखते हैं।)

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