हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर एक नया समीकरण बनने जा रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के महासचिव अभय चौटाला की शनिवार को दिल्ली में मुलाकात हुई है। आने वाले कुछ दिनों में दोनों दल हरियाणा में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर देंगे।

लेकिन सवाल यह है कि क्या हरियाणा के मतदाता इस चुनावी गठबंधन को वोट देंगे? यह गठबंधन बीजेपी और कांग्रेस में से किसका खेल बिगाड़ेगा?

लोकसभा चुनाव के नतीजे इनेलो और बीएसपी दोनों के लिए बेहद खराब रहे हैं। दोनों ही दलों को एक भी सीट नहीं मिली है और वोट प्रतिशत भी काफी कम रहा है।

राजनीतिक दलमिले वोट (प्रतिशत में)
इनेलो0.04
बसपा2.04

इनेलो मूल रूप से हरियाणा की ही पार्टी है जबकि बसपा का मुख्य जनाधार उत्तर प्रदेश में है। लेकिन हरियाणा में इनेलो और उत्तर प्रदेश में बसपा बेहद कमजोर हो चुकी है और इनके राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।

बसपा के राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर संकट

2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बसपा और इनेलो दोनों के सामने ही इस बात का संकट है कि वे अपना राजनीतिक आधार कैसे बनाए रखें। बसपा 1997 में राष्ट्रीय पार्टी बनी थी लेकिन लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिली है और उसका वोट शेयर 2% के आसपास रहा है, ऐसे में वह अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो सकती है।

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बसपा सुप्रीमो मायावती (Source- PTI)

हरियाणा में इनेलो और बसपा का पहले भी चुनावी गठबंधन था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बसपा ने गठबंधन तोड़ दिया था और तब उसने लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था।

हरियाणा में पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में बसपा, इनेलो को मिले वोट

राजनीतिक दलबसपा को मिले वोट (प्रतिशत में)इनेलो को मिले वोट (प्रतिशत में)
2005 विधानसभा चुनाव 3.2226.77
2009 विधानसभा चुनाव6.7325.79
2014 विधानसभा चुनाव4.3724.11
2019 विधानसभा चुनाव4.142.44

टूट से हुआ इनेलो को नुकसान

2018 में चौटाला परिवार में अंदरुनी खींचतान के बाद ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला अपने दोनों बेटों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला के साथ इनेलो से अलग हो गए थे और उन्होंने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का गठन किया था। जेजेपी ने सबसे ज्यादा नुकसान इनेलो का ही किया और 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीत सकी थी। जबकि 2014 में उसने विधानसभा की 19 सीटें जीती थी।

हरियाणा में लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई होने जा रही है। लेकिन इनेलो, बसपा, जेजेपी, आम आदमी पार्टी भी कुछ सीटें हासिल करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।

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पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुडा और सीएम नायब सैनी। (Source- FB)

45% है जाट और दलित समुदाय की आबादी

हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी 22 से 25% के बीच है और दलित समुदाय की आबादी 20% के आसपास है। ऐसे में इनेलो और बसपा के एक मंच पर आने से क्या प्रदेश के अंदर जाट और दलित मतदाता इस गठबंधन का साथ देंगे? इनेलो को जाट और बसपा को दलित मतदाताओं के समर्थन वाली पार्टी माना जाता है।

कांग्रेस ने जाट और दलित समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही पूर्व मुख्यमंत्री और जाट बिरादरी से आने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को फ्रंट फुट पर रखा है जबकि प्रदेश कांग्रेस की कमान चौधरी उदयभान सिंह के पास है। कुमारी सैलजा के रूप में भी कांग्रेस के पास एक बड़ा दलित चेहरा मौजूद है जबकि बीजेपी मूल रूप से गैर जाट राजनीति के रास्ते पर आगे चल रही है।

बीजेपी ने 2014 में हरियाणा में सरकार बनाने के बाद पहले मनोहर लाल खट्टर और फिर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है हालांकि उसने पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े जाट नेता रहे बंसीलाल की बहू किरण चौधरी को अपने साथ जोड़कर, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला को राज्यसभा का सदस्य और ओमप्रकाश धनखड़ को राष्ट्रीय सचिव बनाकर यह संदेश दिया है कि वह इस ताकतवर समुदाय से दूरी नहीं रखना चाहती। बीजेपी के पास दलित चेहरे के रूप में राज्य सभा सदस्य कृष्ण लाल पंवार हैं।

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(बाएं से दाएं) दीपेंदर हुड्डा और कुमारी शैलजा (Source- facebook)

जेजेपी में बगावत से है इनेलो को उम्मीद

लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद भी इनेलो को उम्मीद है कि वह विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें जीत सकती है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जेजेपी में हो रही बगावत है। जेजेपी के 10 में से छह विधायक बगावत के रास्ते पर हैं और पिछले कुछ महीनों में कई नेता पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं।

इनेलो को उम्मीद है कि जेजेपी में हुई बगावत का उसे फायदा मिलेगा और बसपा के साथ गठबंधन करने से कुछ हद तक दलित मतदाता भी उसके साथ आएंगे और ऐसे में वह खुद को हरियाणा की राजनीति में फिर से जिंदा कर सकेगी।

इनेलो की कोशिश कुछ और राजनीतिक दलों को अपने साथ जोड़ने की है। ऐसी चर्चा है कि आगे इस गठबंधन में निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू की पार्टी हरियाणा जन सेवक पार्टी (हजपा) और आम आदमी पार्टी भी आ सकते हैं।

कांग्रेस को होगा नुकसान?

सीएसडीएस-लोकनीति के द्वारा कराए गए पोस्ट पोल सर्वे से पता चलता है कि हरियाणा में इस बार दलित समुदाय के मतदाताओं में से हर तीन में से दो ने कांग्रेस को वोट दिया है जबकि हर तीन में से दो जाट मतदाताओं ने भी कांग्रेस को वोट दिया है। ऐसे में जाट और दलित मतदाताओं का रुख लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर दिखाई दिया है। लेकिन अगर बसपा और इनेलो इन वर्गों के मतदाताओं को कुछ हद तक साथ लाने में कामयाब रहे तो इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। 

जबकि ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी का जोर गैर जाट वोट बैंक पर है। 75% आबादी वाले इस वोट बैंक में दलित समुदाय भी शामिल है। ऐसे में बीजेपी को भी इनेलो-बसपा गठबंधन से नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।