Inheritance Tax (विरासत कर) से जुड़े सैम पित्रोदा के एक बयान पर भारी चुनावी बवाल हो गया है (विवाद जानने के लिए यहां क्लिक करें)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह समेत पूरी भाजपा विरोधी कांग्रेस पर हमलावर हो गई है। लेकिन, यह भी एक सच है कि मोदी सरकार में ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017 में कुछ इसी तरह का एक कर लगाने के लिए कानून में बदलाव किया था। हालांकि, इसे विरासत कर का नाम नहीं दिया गया था और न ही यह कहा जा सकता है कि सरकार की मंशा उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर कर लगाने की थी। लेकिन, कानून में बदलाव का असर यह जरूर था कि पुश्तैनी संपत्ति पाने वाले को भी टैक्स भरना पड़ता। इस कानून का भारी विरोध हुआ तो इसे वापस ले लिया गया था।
अरुण जेटली ने कानून में किया था क्या बदलाव
2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली कानून में एक संशोधन लेकर आए थे। इसके मुताबिक अगर किसी व्यक्ति को 50 हजार रुपये से ज्यादा मूल्य की नकदी या कोई संपत्ति मिलती है तो इसे ‘अन्य स्रोत से आय’ मद में गिना जाएगा और इस पर टैक्स लगाया जाएगा।
कानून में इस बदलाव से देश में उत्तराधिकार देने और धनी लोगों द्वारा बिना संपत्ति का मूल्य कम किए उसे अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने की व्यवस्था को हिला देने का खतरा पैदा हो गया था। इसका तगड़ा विरोध हुआ और सरकार को इसे वापस लेना पड़ा।
विरासत कर कानून को नए सिरे से पेश करने की कोशिश
अंग्रेजी अखबार ‘टेलीग्राफ’ के मुताबिक मुंबई स्थित लॉ फर्म Cyril Amarchand Mangaldas ने मोदी सरकार के इस कदम की तुलना ‘खतरनाक विरासत कर कानून को नए सिरे से पेश करने’ से की थी। हालांकि, फर्म ने यह भी कहा था कि सरकार ने शायद वास्तव में विरासत कर लागू करने की मंशा से यह बदलाव न किया होगा। इसके दायरे में निजी ट्रस्ट को भी रखा गया था। बता दें कि निजी ट्रस्ट के जरिए बड़े-बड़े धनकुबेर अपनी संपत्ति अगली पीढ़ी को सौंपते हैं।

जब इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के अमेरिका में लागू विरासत कर का हवाला देते हुए भारत में इस विषय पर बहस की जरूरत बताने संबंधी बयान को आधार पर बनाकर भाजपा की ओर से कांग्रेस पर हमला बोला गया तो कांग्रेस ने जेटली द्वारा लाए गए संशोधन की याद भी दिलाई।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि जयंत सिन्हा, तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री ने 2014 में विरासत कर के लिए कड़ी पैरवी की थी। तीन साल बाद, जेटली ने इसे अमलीजामा पहनाने की कोशिश की थी। असल में मोदी सरकार ने विरासत कर के विचार को पूरी तरह से कभी छोड़ा ही नहींं था।
भारत ने 1985 में उत्तराधिकार पर कर का नियम खत्म किया
भारत ने 1985 में उत्तराधिकार पर कर का नियम खत्म किया था। एस्टेट ड्यूटी कर के रूप में। उस समय वी.पी. सिंह वित्त मंत्री थे और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उस समय, अमीरों पर दो प्रकार के कर लगते थे: संपत्ति कर और एस्टेट ड्यूटी।
1985 के बजट भाषण में वीपी सिंह ने कहा था, “चूंकि संपत्ति-कर और एस्टेट ड्यूटी दोनों कानून किसी व्यक्ति की संपत्ति पर लागू होते हैं। एक मृत्यु से पहले और दूसरा मृत्यु के बाद। एक ही संपत्ति के संबंध में दो अलग-अलग कानूनों का होना एक तरह से करदाताओं और मृतक के उत्तराधिकारियों का उत्पीड़न है।”
संपत्ति कर को अरुण जेटली ने फरवरी 2016 में समाप्त किया
“दोनों करों की सापेक्षिक योग्यताओं पर विचार करने के बाद, मेरा विचार है कि एस्टेट ड्यूटी ने उन दोहरे उद्देश्यों को हासिल नहीं किया है जिनके साथ इसे शुरू किया गया था, अर्थात्, धन के असमान वितरण को कम करना और राज्यों को उनकी विकास योजनाओं के वित्तपोषण में सहायता करना। जबकि एस्टेट ड्यूटी से प्राप्ति केवल लगभग 20 करोड़ रुपये है, इसके प्रशासन की लागत अपेक्षाकृत अधिक है। इसलिए, मैं 16 मार्च, 1985 को या उसके बाद होने वाली मौतों पर पारित होने वाली संपत्तियों के संबंध में एस्टेट ड्यूटी की वसूली को समाप्त करने का प्रस्ताव करता हूं।”
संपत्ति कर को अरुण जेटली ने फरवरी 2016 में समाप्त कर दिया था। उन्होंने इसे 2% के अतिरिक्त अधिभार में बदल दिया था, जो कि सुपर-रिच, यानी 1 करोड़ रुपये से अधिक की कर योग्य आय वाले लोगों पर लगता है।