बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब सुप्रीम विस्पर्स (Supreme Whispers) में प्रोफेसर ‘जॉर्ज एच.गोडबोइस (George H. Gadbois)’ के हवाले से बताया है कि न्यायाधीश एस.सी. रॉय की सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें अपने प्रॉपर्टी का काम सौंप दिया था। इंदिरा गांधी ने उन्हें इलाहाबाद में अपने परिवार की संपत्ति के संबंध में कुछ कानूनी कार्य करने के लिए कहा।
हालांकि नियुक्ति के कुछ ही समय बाद जस्टिस एस.सी. रॉय की मौत हो गई थी। 29 जून, 1983 को गोडबोइस को दिए इंटरव्यू में जस्टिस एस.सी. रॉय की पत्नी अर्चना रॉय ने बताया था कि उनके पति की मौत के कुछ ही समय बाद कुछ लोग घर पहुंचे और सारी फाइलें उठा ले गए ताकि किसी को इस बात का पता न चले।
कौन हैं गोडबोइस?
अभिनव चंद्रचूड़ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (D.Y. Chandrachud) के बेटे हैं। अभिनव अमेरिकी स्कॉलर गोडबोइस को अपना मेंटर और दोस्त बताते हैं। गोडबोइस कई बार भारत आए। वह इंडियन ज्यूडिशियरी पर बहुत अधिकार से लिखा करते थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 66 से अधिक जजों के 116 इंटरव्यू किए थे। इन जजों में भारत के 19 मुख्य न्यायाधीशों का भी नाम शामिल है।
गोडबोइस ने ड्यूक विश्वविद्यालय से स्नातक किया था। मास्टर्स में वह चीन का का अध्ययन करना चाहते थे। लेकिन भाषाओं में अच्छी पकड़ ना होने के कारण उन्होंने भारत को चुना। 1961 में गोडबोइस ने अपने मास्टर्स की थीसिस लिखी। एमए थीसिस के तीन साल बाद गोडबोइस ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट के प्रारंभिक इतिहास पर अपना शोध प्रबंध पूरा किया।
1968 में गोडबोइस ने एक प्रमुख अमेरिकी लॉ मैग्जीन ‘लॉ एंड सोसाइटी रिव्यू’ में एक निबंध लिखा था, जिसका शीर्षक था: Indian Supreme Court Judges: A Portrait. यह बहुत चर्चित हुआ था। साल 2017 में गोडबोइस का निधन हो गया था।
इंदिरा गांधी और वाईवी चंद्रचूड़
भारत के 16वें मुख्य न्यायाधीश यशवंत विष्णू चंद्रचूड़, अभिनव चंद्रचूड़ के दादा थे। उनकी नियुक्ति जनता पार्टी के कार्यकाल के दौरान हुई थी। वह साल 1978 साल 1985 तक करीब सात साल सीजेआई रहे। यह अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है।
आपातकाल से नाराज जनाधार पर सवार होकर सत्ता में आयी जनता पार्टी की सरकार दो साल में गिर गई। इसके बाद एक बार फिर सत्ता की चाभी कांग्रेस के हाथ में आ गई, जिसका नेतृत्व इंदिरा गांधी कर रही थीं।
वाईवी चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐतिहासिक मामलों की सुनवाई की, जिनमें से एक किस्सा कुर्सी का मामला भी था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संजय गांधी को 30 दिनों की न्यायिक हिरासत (1978) में भेज दिया था।
बाद में भारतीय मूल के कैनेडियन स्कॉलर भगवान डी. दुआ ने अपनी किताब ‘A Study in Executive-Judicial Conflict: The Indian Case’ में लिखा, “1981 के मध्य तक चंद्रचूड़ और सत्ताधारी दल के बीच मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि कांग्रेस (आई) के सांसद और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक सेन ने संसद द्वारा उनके महाभियोग का संकेत भी दे दिया था। हालांकि इसके बावजूद मुख्य न्यायाधीश ने निडर होकर एग्जीक्यूटिव इंटरफेरेंस के खिलाफ न्यायपालिका का बचाव करना जारी रखा और बेंच और बार को एकजुट होने का आह्वान किया।”
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बॉम्बे और मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हेमंत चंदूरकर को तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ (Former CJI YV Chandrachud) सुप्रीम कोर्ट में लाना चाहते थे। लेकिन इंदिरा गांधी सरकार ने चंदूरकर के नाम को रिजेक्ट कर दिया था।
अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब में बताया है कि इंदिरा गांधी ने हेमंत चंदूरकर का नाम इसलिए रिजेक्ट कर दिया था क्योंकि वह आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एम.एस. गोलवलकर की अंत्येष्टि में शामिल हुए थे। चंदूरकर के पिता और गोलवलकर अच्छे मित्र थे। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)