इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों (बेअंत सिंह और सतवंत सिंह) ने की थी। प्रधानमंत्री को पॉइंट ब्लैंक रेंज से 30 से अधिक गोलियां मारी गई थीं। प्रधानमंत्री के दोनों अंगरक्षक ऑपरेशन ब्लू स्टार से नाराज थे। उनका मानना था कि इंदिरा सरकार ने स्वर्ण मंदिर में सेना भेजकर सिखों का अपमान किया है।

हाल में वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने दावा किया है कि इंदिरा गांधी स्वर्ण मंदिर में सेना नहीं भेजना चाहती थीं। लेकिन उन पर कार्रवाई करने का दबाव बनाया गया। खुद इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी, दबाव बनाने वालों में शामिल थे।

गुरुवार को चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस के रेजिडेंट एडिटर मनराज ग्रेवाल शर्मा द्वारा संचालित एक पुस्तक-चर्चा सत्र में बोलते हुए चौधरी ने कहा कि “भारत को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के सिख विरोधी दंगों को भूलने में लंबा समय लगेगा।”

चुनाव जीतने के लिए हुआ हिंसा का इस्तेमाल

सत्र में बोलते हुए चौधरी ने कहा, “जब मैं पुस्तक-चर्चा के लिए आ रही थी, तो मैं सोच रही थी कि इस मुद्दे को ख़त्म करने की ज़रूरत है। यह अब भी कहीं न कहीं खलता है। जिस तरह से हिंसा फैलाई गई, उससे मानस को ठेस पहुंची है। यह चुनाव जीतने के लिए सत्ता का बहुत ही निंदनीय प्रयोग था।”

वरिष्ठ पत्रका ने याद किया कि कैसे पूर्व सांसद अरुण नेहरू ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी के लिए रास्ता तैयार किया था। उन्होंने कहा, “राजीव गांधी एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे। अरुण नेहरू ने एक बार राजीव को उनके प्रधानमंत्री बनने के पीछे का किस्सा बताया था। नेहरू ने गांधी को बताया था कि कैसे 5,000 सिख मारे गए और हिंदू वोट एकजुट हुए। वोट बैंक की राजनीति के लिए हिंसा का बहुत ही निंदनीय ढंग से इस्तेमाल किया गया।”

चौधरी के मुताबिक, अरुण नेहरू ने राजीव गांधी को तीन सूत्रीय एजेंडा दिया था। ये था राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 का खात्मा और यूनिवर्सल सिविल कोड (यूसीसी) को लागू करना। बाद में यह तीनों एजेंडा भाजपा का मुख्य एजेंडा बन गया।

राहुल गांधी को शोक न मनाने को कहा था

स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार के मुद्दे पर चौधरी ने कहा कि इंदिरा गांधी सेना की कार्रवाई शुरू करने से कतरा रही थीं। लेकिन अरुण नेहरू, राजीव गांधी और अर्जुन सिंह सहित पार्टी के युवा लोगों ने जोर दिया। सेना की कार्रवाई के बाद उन्होंने अपने घर पर महामृत्युंजय पूजा का आयोजन किया। वह अक्सर मौत के बारे में बात करती रहती थी। उन्होंने राहुल गांधी से कहा था कि वह उनकी मौत पर शोक न मनाएं। उन्हें शायद पहले से ही अंदाज़ा था या उन्हें इस बात की जानकारी थी कि उनकी सरकार ने क्या किया है।”

मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री माना गया लेकिन…

पंजाब के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि राज्य ने देश को तीन प्रधानमंत्री (गुलजारी लाल नंदा, आईके गुजराल और डॉ. मनमोहन सिंह ) दिए हैं। यह कुल प्रधानमंत्रियों के 20 प्रतिशत हैं। पंजाब ने भारत को अल्पसंख्यक समुदाय, सिखों से एकमात्र प्रधानमंत्री दिया।

यह पूछे जाने पर कि उनका पसंदीदा प्रधानमंत्री कौन है, क्योंकि वह दिल्ली में राजनीति को कवर करती रही हैं और उन्होंने अपने अनुभवों के आधार पर किताब लिखी है, उन्होंने कहा, “मैं यह नहीं कह सकती कि मेरा पसंदीदा कौन है। हर किसी में अच्छाई थी… । मैं कहूंगी कि डॉ. मनमोहन सिंह को कमजोर माना जाता था, लेकिन जिस तरह से उन्होंने 39 महीने तक अपनी पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी, गठबंधन सहयोगियों के दबाव को झेला, लेकिन भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को नहीं छोड़ा। यह उनकी क्षमता को दर्शाता है। मैं किताब लेकर उनसे मिलने गई थी। जब उन्होंने अपने ऊपर अध्याय देखा, जिसका शीर्षक था- द अंडररेटेड प्राइम मिनिस्टर हू ट्राइंफ्ड, तो बहुत खुश हुए।”