पिछले सप्ताह (1 सितंबर, 2023) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने देश के लोगों से ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल करने का आग्रह किया था। अपने बयान में भागवत ने संघ परिवार की एक दीर्घकालिक परंपरा का उदाहरण दिया, जिसमें आजादी से पहले से ही ‘भारत’ का उपयोग किया जाता रहा है।
सरकार की ओर से ‘President of Bharat’ के नाम से भेजे गए जी-20 रात्रिभोज के निमंत्रण पर मंगलवार को राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य अनिर्बान गांगुली ने इसे कांग्रेस द्वारा उठाया गया ‘अनावश्यक विवाद’ करार दिया है।
सीलोन और बर्मा के भी नाम तो बदले गए…
श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष गांगुली कहते हैं, “भारत, इंडिया का नेचुरल नाम है। यह भाजपा की विचारधारा का सवाल नहीं है। सभी भारतीय भाषाएं देश को भारत ही कहती हैं। बांग्ला साहित्य पढ़ें और जानें कि उसमें भारत को क्या लिखा गया है। इंडिया और भारत दोनों शब्द संविधान का हिस्सा हैं। हम भारत को प्रधानता दे रहे हैं क्योंकि ज्यादातर लोग इसे भारत कहते हैं।”
विरोध करने वालों पर ‘इतिहास और सभ्यतागत पहचान को विकृत’ करने का आरोप लगाते हुए गांगुल कहते हैं, “अंग्रेजों ने कई नाम दिए। लेकिन सीलोन बाद में श्रीलंका बन गया और बर्मा, म्यांमार बन गया। क्या इससे कोई समस्या पैदा हो गई? हमारे शुरुआती नेताओं ने जो तर्क दिए, वो सही हैं। लेकिन क्या वो ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों पर भी लागू नहीं होने चाहिए क्योंकि इन शब्दों को उन्होंने स्वीकृत नहीं किया था?”
एक आरएसएस नेता, जो अब एक सरकारी संस्थान में हैं, उन्होंने भी तर्क दिया कि भारत बनाम इंडिया की बहस नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हिंदुस्तान और भारत के बीच एक बहस है। लेकिन इंडिया और भारत के बीच कोई मसला नहीं है। इंडिया को हिंदी में हर कोई भारत कहता है। मराठी, बंगाली, गुजराती और कई अन्य भारतीय भाषाओं में इसे भारत कहा जाता है। सांस्कृतिक दृष्टि से इंडिया हमेशा भारत ही रहा है। इंडिया बाहरी लोगों द्वारा दिया गया एक भौगोलिक शब्द था। भारत का अर्थ भी कितना सुंदर है। यहां तक कि संविधान में भी वास्तव में ‘भारत दैट इज़ इंडिया’ होना चाहिए था।”
अपनी स्थापन के समय से ‘भारत’ कहता रहा है संघ
संघ, जिसकी बड़ी राजनीतिक परियोजनाओं में से एक भारतीय संस्कृति को ब्रिटिश और इस्लामी प्रभाव से मुक्त करना है, वह 1925 में अपनी स्थापना के बाद से ही भारत शब्द का उपयोग करता रहा है। प्रोफेसर राकेश सिन्हा अपनी पुस्तक बिल्डर्स ऑफ मॉडर्न इंडिया: केबी हेडगेवार (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित) में लिखते हैं कि आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार ने 1929 में महाराष्ट्र के वर्धा में कहा था, “ब्रिटिश सरकार ने कई मौकों पर इंडिया को आजादी देने का वादा किया है, लेकिन वो वादे झूठे साबित हुए हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अपने बल पर स्वतंत्रता प्राप्त करेगा।”
अपनी मृत्यु से पहले अपने आखिरी भाषण में हेडगेवार ने 1940 में नागपुर में कहा था, “वह स्वर्णिम दिन अवश्य आएगा जब पूरा भारत संघीकृत (Sanghified) होगा। तब पृथ्वी पर कोई शक्ति नहीं होगी जो हिंदुओं पर बुरी नजर डालने का साहस कर सके।”
आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता ने रेखांकित किया कि “चूंकि संघ के सभी नेता हिंदी में बात करते हैं, इसलिए वे इंडिया को भारत कहते हैं। जब तक अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को संबोधित न करना हो, तब तक प्रधानमंत्री भी अधिकतर हिंदी में ही बोलते हैं। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे भारत की बात करते हैं, इंडिया की नहीं। इसके अलावा, इंडिया सांस्कृतिक रूप से एक अजीब शब्द है। क्या आपने किसी को इंडिया माता की जय कहते सुना है?”
आरएसएस ने अपने अंग्रेजी की किताबों में भी इंडिया को दर्शाने के लिए भारत शब्द का ही उपयोग किया है। आरएसएस अपना पहला प्रस्ताव साल 1950 में विभाजन के दौरान पीड़ित हिंदुओं की दुर्दशा पर लायी थी, उसमें भी ‘State of Bharat’, ‘Govt of Bharat’ और ‘citizens of Bharat’ का उल्लेख मिलता है।
संघ की दो संस्थाओं ‘अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा’ और ‘कार्यकारी मंडल’ दोनों ने 1953 में एक-एक रेजुलेशन लाया था। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के रेजुलेशन का शीर्षक था, “Movement for Complete Integration of Kashmir with Bharat”, कार्यकारी मंडल के संकल्प पत्र का टाइटल था, “Bharat’s Pak policy vis-a-vis Kashmir”
दरअसल, आरएसएस ने अपने संकल्पों के शीर्षक में कभी भी इंडिया शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। संघ अपने रेजुलेशन में पहली बार इंडिया शब्द का इस्तेमाल 1962 में कर रहा है। तब संघ ने सरकार को Government of India लिखा था। इसके बाद से संघ के अंग्रेजी टेक्स्ट में इंडिया और भारत दोनों का प्रयोग किया जाने लगा। लेकिन, आरएसएस की तरफ से कभी भी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है जिसमें देश का नाम इंडिया की जगह सिर्फ भारत करने का आह्वान किया गया हो।
भारत सभी हिंदुओं की माँ हैं: गोलवलकर
आरएसएस के लिए भारत का गहरा सांस्कृतिक अर्थ है। आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में मातृभूमि की अवधारणा की व्याख्या करते हुए इस बात को रेखांकित किया है।
वह लिखते हैं, “असल में, ‘भारत’ नाम से ही पता चलता है कि यह हमारी माँ है। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में किसी महिला को उसके बच्चे के नाम से बुलाने का सम्मानजनक तरीका है। किसी महिला को अमुक श्रीमान की पत्नी या अमुक श्रीमती कहकर पुकारना पश्चिमी तरीका है। हम कहते हैं, ‘वह रामू की माँ है।’ यही स्थिति हमारी मातृभूमि के लिए ‘भारत’ नाम के मामले में भी है। भरत हमारे बड़े भाई थे, जिनका जन्म हमसे बहुत पहले हुआ। वह एक महान, सदाचारी और विजयी राजा थे। वह हिंदुओं की बहादुरी के उदाहरण हैं। जब किसी महिला के एक से अधिक बच्चे होते हैं, तो हम उसे उसके सबसे बड़े या सबसे चर्चित बेटे के नाम से बुलाते हैं। भरत इस भू-भाग में प्रसिद्ध थे। इस भू-भाग को हमने भरत की मां ‘भारत’ कहा। भारत, सभी हिंदुओं की माँ है।”
गोलवलकर ने भारत को हिंदुओं की भूमि कही है। यह उनके लेखन में एक थीम रहा। स्वतंत्र भारत के नेताओं द्वारा “मुसलमानों के तुष्टिकरण” के बारे में बात करते हुए, गोलवलकर ने अपनी पुस्तक में लिखा, “पहली बात जो उन्होंने प्रचारित की वह यह थी कि हमारी राष्ट्रीयता को हिंदू नहीं कहा जा सकता है, यहां तक कि हमारी भूमि को उसके पारंपरिक नाम हिंदुस्तान से नहीं बुलाया जा सकता है, जैसा कि इससे मुस्लिम नाराज हो जाएंगे। अंग्रेजों द्वारा दिया गया ‘इंडिया’ नाम स्वीकार कर लिया गया। उसी नाम को अपनाकर ‘नए राष्ट्र’ को ‘इंडियन नेशन’ कहा गया।”
गौरतलब है कि आरएसएस के अधिकांश सहयोगी संगठनों के नाम में भारतीय शब्द है, जिनमें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ शामिल हैं। अपनी प्रेस विज्ञप्तियों और बयानों में, आरएसएस इंडिया को इंगित करने के लिए भारत का उपयोग करता है और “ऑल इंडिया” जैसे शब्दों का अनुवाद “अखिल भारतीय” करता है।
भागवत ने अपने गुवाहाटी भाषण में इस बात पर जो दिया कि भारत शब्द को अपनाया जाना चाहिए और लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए, “हमारे देश का नाम युगों-युगों से भारत ही रहा है। भाषा कोई भी हो, नाम एक ही है… हमारा देश भारत है और हमें इंडिया शब्द का प्रयोग बंद कर सभी व्यवहारिक क्षेत्रों में भारत का प्रयोग शुरू करना होगा। तभी बदलाव आएगा। हमें अपने देश को भारत कहना होगा और दूसरों को भी समझाना होगा।”