देश की राजनीति इन दिनों कई मोर्चों पर हलचल से भरी है। एक तरफ चुनाव आयोग की एसआईआर प्रक्रिया पर बंगाल में विवाद चरम पर है, वहीं झारखंड और राजस्थान के उपचुनावों ने नए संकेत दिए हैं। महाराष्ट्र में धड़ों की राजनीति भी नए गठबंधन का रास्ता बना रही है। ये सभी बदलाव आने वाले समय के समीकरण तय करेंगे।

कमजोर कड़ी

चुनाव आयोग ने एसआइआर अर्थात विशेष गहन पुनरीक्षण यूं तो एक दर्जन राज्यों में शुरू किया है, पर इसका ज्यादा विरोध पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में हो रहा है। विवाद बिहार की तरह सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा है। ममता बनर्जी की अगुआई वाले पश्चिम बंगाल में तो विवाद थम ही नहीं रहा। एक तरफ तो चुनाव आयोग राज्य में 75 फीसद मतदाताओं के पास गणना पत्र पहुंच जाने का दावा कर रहा है, दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस लगातार एसआइआर का विरोध कर रही है। आयोग ने बूथ स्तर एजंटों की नियुक्ति की शर्तों में कुछ रियायत देकर ममता दीदी को यह आरोप लगाने का अवसर और दे दिया कि आयोग भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। पहले किसी पार्टी का बूथ स्तर एजंट वही होता था जो उस बूथ का मतदाता हो।

बिहार की महिलाओं ने कैसे लिखी NDA की जीत की कहानी? राजद की छवि अभी भी ‘जंगलराज’ की

अब पूरे विधानसभा क्षेत्र का कोई भी मतदाता उस क्षेत्र के किसी भी बूथ का एजंट बन सकता है। ये एजंट चुनाव में अपने दल के लिए काम करते हैं। तृणमूल कांग्रेस एक तरफ तो चुनाव आयोग पर भाजपा के पक्ष में नियमों में बदलाव का आरोप लगा रही है, दूसरी तरफ वह खुश भी है कि भाजपा के पास हर बूथ पर स्थानीय एजंट नहीं हैं जो भाजपा की जमीनी कमजोरी दिखाता है। ममता बनर्जी को यह अहसास है कि विरोध एक तरफ, और एसआइआर का सच दूसरी तरफ। इसलिए वह इसे लेकर पूरी सतर्कता बरत रही हैं और अपनी तरफ से कमी नहीं रखना चाहतीं।

झारखंड में यथावत

बिहार में चली राजग की आंधी का झारखंड में कोई असर नहीं दिखा। कभी बिहार का हिस्सा रहे झारखंड की घाटशिला विधानसभा सीट पर सत्तारूढ़ झामुमो ने अपना कब्जा कायम रखा है। इस सीट पर उपचुनाव रामदास सोरेन के निधन के कारण हुआ। जो हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री थे। झामुमो ने उपचुनाव में उनके बेटे सोमेश सोरेन को उम्मीदवार बनाया था। भाजपा ने चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को ही फिर मैदान में उतारा था, जो पिछले साल हुए आम चुनाव में झामुमो से हार गए थे। भाजपा ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाया था, पर उसे हार का मुंह ही देखना पड़ा। हेमंत सोरेन के वर्तमान कार्यकाल का यह पहला उपचुनाव था। इसके नतीजे का उनकी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ना था क्योंकि 81 सदस्यीय विधानसभा में उन्हें पहले ही 55 विधायकों का समर्थन हासिल है।

दोस्ताना लड़ाई का बुरा नतीजा

मतदाताओं के नए कीर्तिमान के बाद इस बार सीटों का भी नया कीर्तिमान बिहार ने बना दिया है। हालांकि, इस कीर्तिमान की रणनीति का सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ा है। कांग्रेस पार्टी समेत उसके सहयोगी दलों ने नामांकन दाखिल करने तक मतदाताओं को असमंजस में रखा, जो कि नुकसान का कारण बना। वहीं गठबंधन के सहयोगी दलों ने एक साथ मिलकर फैसला लिया और किसी अपने के खिलाफ कोई मोर्चाबंदी नहीं की। महागठबंधन ने इसे दोस्ताना मुकाबला कह कर संतोष तो कर लिया, लेकिन उसका यह फैसला सबसे बड़ा दुश्मन साबित हुआ। मतदाताओं ने चुनाव में ‘महाअसमंजस’ को बुरी तरह खारिज कर दिया।

नीतीश कुमार की चुनावी सभाओं का असर, 80% सीटों पर राजग का कब्जा

मिलाया हाथ

संसदीय राजनीति में राजनीतिक दल कब किससे हाथ मिला ले, कोई नहीं जानता। महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो धड़े हैं। एक शरद पवार का, जो महाविकास अघाड़ी में है, तो दूसरा अजित पवार का, जो महायुति में शामिल है। पर अजित पवार के बेटे पार्थ की कंपनी का नाम जमीन घोटाले में आया तो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने अजित दादा के बेटे पार्थ की हिमायत करते हुए बयान दिया कि पार्थ ऐसा नहीं कर सकते। जबकि इस मसले पर खुद शरद पवार ने यही कहा था कि मामले की जांच होनी चाहिए। सुप्रिया सुले के इस बयान को बुआ-भतीजे के स्नेह के तौर पर ही देखा जा रहा है। बहरहाल, एक स्थानीय चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दोनों खेमे साथ आ गए हैं। चांदगढ़ नगर पंचायत के चुनाव में दोनों पार्टियों ने साथ आने की घोषणा की है।

कोल्हापुर में अजित समर्थक मंत्री हसन मुश्रीफ ने बाकायदा प्रेस वार्ता कर इसका एलान किया। इस मौके पर शरद पवार की पार्टी के नेता भी थे। इसे स्थानीय निकाय चुनाव का पूर्वाभ्यास माना जा रहा है। दोनों दल अनायास साथ नहीं आए हैं। बाकायदा पिछले दिनों एक बैठक हुई थी, जिसमें नया गठबंधन बना। जिसका नाम ‘शहर विकास अघाड़ी’ रखा गया है। महाविकास अघाड़ी की तर्ज पर। क्षेत्रीय राजनीति में पहले टुकड़ों में बंटना और फिर अस्तित्व बचाने के लिए साथ आ जाना अब अचरज भी नहीं करता है। मसला सिर्फ अस्तित्व बचाने का है।

नाकाम भजनलाल

राजस्थान में विधानसभा की अंता सीट कांग्रेस की झोली में जाना भाजपा के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है। इस सीट को 2023 में भाजपा ने जीता था, पर उसके विधायक कंवरलाल मीणा को आपराधिक मामले में तीन साल की सजा हो जाने से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया था और उपचुनाव की नौबत आई थी। भाजपा ने उपचुनाव में मोरपाल सुमन को उतारा था जबकि कांग्रेस ने प्रमोद जैन भाया को, जो इस सीट से तीन बार जीत चुके थे। असरदार नरेश मीणा निर्दलीय थे। जो कभी कांग्रेस में रह चुके थे।

उनका प्रचार हनुमान बेनीवाल ने भी किया। फिर भी कांटे की लड़ाई में कांग्रेस उम्मीदवार ने अंता सीट 15,000 से भी ज्यादा वोटों के अंतर से भाजपा से छीन ली। यह हार भाजपा और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा—दोनों के लिए करारा झटका है। मुख्यमंत्री बनने के बाद यह भजनलाल का पहला इम्तिहान था। पर वे इसमें फेल हो गए। आमतौर पर उपचुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी की जीत होती है। पर अंता में उलटा हुआ। बावजूद इसके कि भजनलाल ने ही नहीं वसुंधरा राजे ने भी मोरपाल सुमन का प्रचार किया था।