आपातकाल के बाद हुए 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार हुई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद अपनी सीट नहीं बचा पायीं। कांग्रेस महज 153 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद जनता पार्टी के नेतृत्व में देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, जिसकी अगुवाई मोरारजी देसाई ने की। वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह अपनी किताब ‘दरबार’ में बताती हैं कि कैसे इंदिरा गांधी को हराने के लिए दिल्ली स्थित जामा मस्जिद के शाही इमाम ने RSS नेताओं से हाथ मिला लिया था।

जामा मस्जिद की सीढ़ियों से हुई तक़रीर

आपातकाल के दौरान संजय गांधी द्वारा जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर चलाए गए नसबंदी अभियान से मुस्लिम समुदाय में भारी नाराजगी थी। जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद शाह बुखारी भी इस बात को अच्छे से जानते थे। ऐसे में शाही इमाम ने अपने समुदाय के भीतर व्याप्त नाराजगी को ध्यान में रखते हुए, कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

जामा मस्जिद से इंदिरा गांधी के खिलाफ जमकर माहौल बनाया गया। शाही इमाम ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं से हाथ मिला जामा मस्जिद की सीढ़ियों से कांग्रेस के खिलाफ वोट करने की अपील की थी। वहां जुटे लोगों ने इस अपील का जिस उत्साह से स्वागत किया वह देखने लायक था। पत्रकार तवलीन सिंह ने इस पूरे घटनाक्रम को अपनी आंखों से देखा था।

मंजूर है!

वह लिखती हैं, “मार्च की शुरुआत में जब चुनावी अभियान का अंत हो रहा था, तब जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर एक राजनीतिक बैठक में भाग लेने के बाद मुझे इंदिरा गांधी की हार की आशंका और सच लगने लगी। देर शाम हो चुकी थी और मस्जिद की सीढ़ियां रोशन कर दी गई थीं ताकि उसके चारों ओर जाने वाली संकरी गलियों में इकट्ठा हुए हजारों लोग अपने इमाम को देख सकें।”

सिंह लिखतीं हैं, “सफेद दाढ़ी वाले सैयद अहमद शाह बुखारी भारी-भरकम शरीर के मालिक थे। उनकी आवाज दूर तक गूंज रही थी। उस शाम उन्होंने शानदार पोशाक भी पहनी था। जब वह मस्जिद की सीढ़ियों पर आरएसएस नेताओं का हाथ पकड़ खड़े हुए तो भीड़ ने जोर से नारा लगाया और तालियां गूंज उठी। जिस लहजे में वह जुमे की तकरीर करते थे, उसी लहजे में उन्होंने बड़े पैमाने पर इकट्ठा हुए मुसलमानों से कहा कि वह बतौर इमाम उन्हें इंदिरा गांधी के खिलाफ वोट देने का आदेश देते हैं। उन्होंने भीड़ से पूछा क्या आपको यह मंजूर है? मस्जिद के चारों ओर की हर संकरी गली से उमड़े दर्शकों ने चिल्लाकर कहा- मंजूर है।”