विधात्री राव, ऋषिका सिंह

जब नीतीश कुमार ने फिर से भाजपा से हाथ मिलाया और 28 जनवरी को नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उनके साथ दो नेताओं ने डिप्टी सीएम पद की भी शपथ ली: प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी और पूर्व नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा। चौधरी ओबीसी और सिन्हा ब्राह्मण हैं, लोकसभा चुनाव से पहले यह जनता को दिया गया एक राजनीतिक संदेश की तरह है।

डिप्टी सीएम की नियुक्ति, भारतीय राजनीति की लंबे समय से चली आ रही विशेषता रही है। यह एक राजनीतिक समझौते का प्रतिनिधित्व करती है जो अक्सर गठबंधन सरकार के गठन के बाद होती है।

पिछले कुछ वर्षों में यह प्रथा अधिक प्रमुख होती जा रही है। नवंबर में जिन पांच राज्यों में चुनाव हुए उनमें से चार – मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ – में वर्तमान में डिप्टी सीएम हैं। तमिलनाडु और केरल को छोड़कर सभी प्रमुख राज्यों के पास भी यह पद है।

डिप्टी सीएम का पद

संविधान के अनुच्छेद 163(1) में कहा गया है, “राज्यपाल को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद होगी।”

अनुच्छेद 163 और अनुच्छेद 164 (“मंत्रियों के संबंध में अन्य प्रावधान”) में कहीं भी उपमुख्यमंत्री का उल्लेख नहीं है। जबकि अनुच्छेद 164 के उप खंड (1) में बताया गया है कि “मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।”

डिप्टी सीएम का पद कैबिनेट मंत्री (राज्य में) के बराबर समझा जाता है। डिप्टी सीएम को कैबिनेट मंत्री के समान वेतन और सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

वर्तमान में कई राज्यों में डिप्टी सीएम

बिहार के अलावा देश के कम से कम 13 अन्य राज्यों में वर्तमान में डिप्टी सीएम हैं। इनमें से सबसे अधिक आंध्र प्रदेश में है, जहां मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी के पास पांच उपमुख्यमंत्री हैं। गठबंधन सरकार के हिस्से के रूप में देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार (महाराष्ट्र) और दुष्यंत चौटाला (हरियाणा) इस पद पर हैं।

यूपी में केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक; कर्नाटक में डीके शिवकुमार; राजस्थान में दिया कुमारी और प्रेम चंद बैरवा; मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा; छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा ; तेलंगाना में मल्लू भट्टी विक्रमार्क; हिमाचल प्रदेश में मुकेश अग्निहोत्री एक ही पार्टी से डिप्टी सीएम हैं। नागालैंड की तरह मेघालय में भी दो डिप्टी सीएम हैं। अरुणाचल प्रदेश में एक डिप्टी सीएम हैं।

डिप्टी सीएम पद का संक्षिप्त इतिहास

शायद भारत में पहले डिप्टी सीएम अनुग्रह नारायण सिन्हा थे, जो औरंगाबाद के एक उच्च जाति के राजपूत नेता थे। वह राज्य के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (सिन्हा) के बाद बिहार में कांग्रेस के सबसे महत्वपूर्ण नेता थे। विशेषकर 1967 के बाद राष्ट्रीय राजनीति पर कांग्रेस का लगभग पूर्ण प्रभुत्व कम होने के बाद, अधिक राज्यों में डिप्टी सीएम देखे गए। कुछ उदाहरण:

बिहार: अनुग्रह नारायण सिन्हा 1957 में अपनी मृत्यु तक डिप्टी सीएम बने रहे। 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व वाली राज्य की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे डिप्टी सीएम बने। इसके बाद जगदेव प्रसाद और राम जयपाल सिंह यादव को डिप्टी सीएम नियुक्त किया गया।

उत्तर प्रदेश: भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के राम प्रकाश गुप्ता संयुक्त विधायक दल (एसवीडी) सरकार में उप मुख्यमंत्री बने, जो 1967 में सत्ता में आई थी। तब चौधरी चरण सिंह के मुख्यमंत्री थे।

यह प्रयोग कांग्रेस के मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्ता के नेतृत्व वाली अगली सरकार में दोहराया गया – जब फरवरी 1969 में कमलापति त्रिपाठी ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली।

मध्य प्रदेश: बीजेएस के वीरेंद्र कुमार सकलेचा जुलाई 1967 में सत्ता में आई गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व वाली एसवीडी सरकार में डिप्टी सीएम बने।

हरियाणा: हरियाणा में डिप्टी सीएम की परंपरा रही है; चौधरी चंद राम, जो कि रोहतक के एक जाट नेता थे, राव बीरेंद्र सिंह के नेतृत्व वाली अल्पकालिक सरकार में यह पद संभालने वाले पहले व्यक्ति थे।

उप प्रधान मंत्री

भारत ने कई उप प्रधानमंत्रियों को भी देखा है – यह पद पहली बार सरदार वल्लभभाई पटेल के पास था जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। नेहरू और पटेल उस समय कांग्रेस के दो सबसे बड़े नेता थे, और उन्हें पार्टी के भीतर सोच की दो अलग-अलग धाराओं का प्रतिनिधित्व करने के रूप में भी देखा जाता था।

बाद में इस पद पर रहने वालों में मोरारजी देसाई, चरण सिंह, चौधरी देवी लाल और लाल कृष्ण आडवाणी शामिल हुए।

1989 में वीपी सिंह की सरकार में उप प्रधानमंत्री के रूप में देवीलाल की नियुक्ति को अदालत में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि “उन्हें जो शपथ दिलाई गई, वह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं थी”।

केएम शर्मा बनाम देवी लाल और अन्य (1990) में , सुप्रीम कोर्ट ने विद्वान अटॉर्नी जनरल के स्पष्ट बयान के मद्देनजर देवी लाल की नियुक्ति को बरकरार रखा कि प्रतिवादी नंबर 1 (लाल) परिषद के अन्य सदस्यों की तरह सिर्फ एक मंत्री हैं। हालांकि उन्हें उप प्रधान मंत्री के रूप में वर्णित किया गया है… उप प्रधान मंत्री के रूप में उनका वर्णन उन्हें प्रधानमंत्री की कोई शक्तियां प्रदान नहीं करता है।