विकास पाठक

नए वर्ष के पहले महीने में अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का उद्घाटन होना है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा के लिए न्योता देने का काम शुरू कर चुका है। ट्रस्ट ही मंदिर का काम-काज देखता है।

पिछले दिनों ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के जानकारी दी कि वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होने को कहा गया है। राय के मुताबिक, ऐसा दोनों नेताओं की उम्र और उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कहा गया है।

हालांकि राय के बयान के अगले ही दिन विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने दोनों नेताओं को जाकर निमंत्रण पत्र दिया। दोनों नेता ने ‘राम मंदिर आंदोलन’ जो भूमिका निभाई उसने राष्ट्रीय राजनीति की दिशा बदल दी।

वाजपेयी की जगह आडवाणी ने संभाली पार्टी की कमान

VHP पहले से राम मंदिर की मांग कर रही थी। लेकिन भाजपा ने इस मांग का समर्थन 1986 में किया, जब अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लालकृष्ण आडवाणी पार्टी अध्यक्ष बने। यह फैसला 1984 के लोकसभा चुनाव के दो साल बाद लिया गया था। 1984 के चुनाव में भाजपा दो सीटों पर सिमट गई थी।

पार्टी की कमान संभालने के बाद आडवाणी ने मुरली मनोहर जोशी को राष्ट्रीय महासचिव बनाया। जोशी आरएसएस कार्यकर्ता थे और फिजिक्स के लेक्चरर थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जोशी के पीएचडी गाइड पूर्व आरएसएस प्रमुख राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया थे।

हिमाचल में लिए एक फैसले ने बदल दी पार्ट की दिशा

9 मई को 1989 को आडवाणी के भाजपा अध्यक्ष के रूप में कमान संभालने के करीब एक माह बाद  11 जून 1989 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक होती है। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने VHP की राम मंदिर की मांग का औपचारिक रूप से समर्थन करने का प्रस्ताव पास किया। यह एक ऐसा कदम था, जो जसवंत सिंह को पसंद नहीं आया। वह सत्र से पैदल ही रेलवे स्टेशन तक चल पड़े थे।

आरएसएस से संबंद्ध साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर के पूर्व संपादक शेषाद्री चारी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “पालमपुर प्रस्ताव भाजपा के लिए टर्निंग प्वाइंट था। इसने पार्टी की दिशा बदल दी और भाजपा गांधीवादी समाजवाद से हिंदुत्व की ओर चल पड़ी।”

लगभग इसी समय संघ की पृष्ठभूमि वाले जोशी पार्टी के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभरे। अयोध्या आंदोलन का समर्थन नहीं करने के कारण वाजपेयी पीछे कर दिए गए थे।

किसान आंदोलन, ओबीसी आरक्षण और राम मंदिर आंदोलन

एक अगस्त, 1990 को भाजपा के समर्थन से सरकार चला रहे प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने देवीलाल को उपप्रधानमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया। देवीलाल ने किसानों से दिल्ली में रैली का आह्वान कर दिया। वीपी सिंह को लगा देवीलाल प्रधानमंत्री के अधिकार को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने 7 अगस्त, 1990 को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा कर दी। इसे देवीलाल के आह्वान पर पीएम की त्वरित प्रतिक्रिया मानी गई।

वीपी सिंह के फैसले से उस ‘हिंदू एकता’ को खतरा पैदा हो गया जो राम जन्मभूमि आंदोलन धीरे-धीरे तैयार कर रहा था। मंडल की घोषणा के कुछ सप्ताह बाद 26 अगस्त, 1990 को आरएसएस ने एक बैठक बुलाई। वीएचपी ने घोषणा की थी कि वह कुछ महीनों के भीतर अयोध्या में मंदिर का उद्घाटन करेगा। संघ ने वीएचपी के इसी कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए बैठक बुलाई थी।

बैठक में उपस्थित आडवाणी ने आंदोलन की क्षमता को भाप लिया। कुछ ही सप्ताह के भीतर उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालने की घोषणा की। यात्रा का उद्देश्य अयोध्या में भव्य राम मंदिर के लिए समर्थन जुटाना बताया गया था। यात्रा 25 सितंबर, 1990 को शुरू हुई। इस रोज आडवाणी ने प्रतीकात्मक रूप से सोमनाथ मंदिर में प्रार्थना की। नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा के गुजरात चरण के आयोजन में मदद की थी।

Ayodhya Rath Yatra
इसी वाहन पर आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकले थे। (फोटो: एक्सप्रेस आर्काइव)

क्या मंडल की काट था मंदिर आंदोलन?

शेषाद्री चारी बताते हैं कि “यह गलत धारणा है कि यात्रा मंडल की प्रतिक्रिया थी। राम मंदिर आंदोलन को एक जन आंदोलन कैसे बनाया जाए, इसकी योजना बनाने के लिए आरएसएस ने पहली बैठक 1980 में की थी। इस आंदोलन के पीछे मोरापंत पिंगले का दिमाग था। गंगा माता यात्रा और ईंटें रखने जैसे कार्यक्रम पूरी योजना का हिस्सा थे। आडवाणी की रथ यात्रा शायद उस कड़ी में चौथी घटना थी।”

यात्रा से कुछ स्थानों पर दंगे भड़क उठे और आडवाणी राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में आ गए। भाजपा ने निर्णय लिया कि यदि आडवाणी को गिरफ्तार किया गया तो वह वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेगी। गिरफ्तारी बिहार के समस्तीपुर में हुई। तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद की सरकार ने 22 अक्टूबर 1990 की रात को आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें दुमका के एक गेस्ट हाउस में ले जाया गया, जो अब झारखंड में है।

वीपी सिंह की गई सरकार, कारसेवकों पर चली गोली

भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सरकार गिर गई। इस बीच 30 अक्टूबर को अयोध्या (यूपी) में कार सेवा की प्रस्तावित तिथि पर कार सेवकों (हिंदुत्व स्वयंसेवकों) पर पुलिस गोलीबारी हुई। यह मस्जिद पर कार सेवकों का हमला रोकने के लिए था। उस वक्त मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

पार्ट-2 में पढ़ें कैसे गिराई गई बाबरी मस्जिद, क्यों कारसेवकों को गुंबद से उतारने के लिए माइक्रोफोन से आवाज लगा रहे थे आडवाणी?

आडवाणी के बाद फरवरी 1991 में मुरली मनोहर जोशी को पार्टी प्रमुख बनाए गए। जोशी के कमान संभालते ही पार्टी ने 1991 के लोकसभा में चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया। जून में जोशी ने अपने करीबी कल्याण सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया। सिंह ने सीएम बनते ही बाबरी मस्जिद के आसपास की 2.77 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर विश्व हिंदू परिषद को सौंप दिया। वीएचपी ने घोषणा कर दी कि वह 30 अक्टूबर, 1992 को मस्जिद के बगल की जमीन पर मंदिर का निर्माण शुरू कर देगा। यह कोर्ट के फैसले के खिलाफ था। कोई बड़ी घटना न हो इसके लिए केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने आडवाणी के साथ नियमित बैठकें शुरू दी। आडवाणी और कल्याण सिंह दोनों ने वादा किया कि मस्जिद को कुछ नहीं होगा। लेकिन 6 दिसंबर को मस्जिद गिरा दी गई। ये सब कैसे हुआ, विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें

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6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती। (फोटो: एक्सप्रेस आर्काइव)