उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि सारा विपक्ष एकजुट हो जाए, तब भी कमल खिलेगा। उनका दावा है कि भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में 400 से ज्यादा सीटें जीतेगी। देश के कुल 543 निर्वाचन क्षेत्रों में से 400 से अधिक पर जीत दर्ज करने का दावा करने वाले यूपी डिप्टी सीएम साल भर पहले हुए यूपी विधानसभा चुनाव में अपनी सीट हार गए थे।

केशव प्रसाद मौर्य सिराथू की सीट सपा की पल्लवी पटेल से हार गए थे। डिप्टी सीएम को कुल 98941 वोट मिले थे, वहीं पटेल के खाते में 106278 मत गए थे। मई 2023 में मौर्य ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के आइडिया एक्सचेंज कार्यक्रम में शामिल हुए थे, जहां उन्होंने अपनी इस हार पर भी बातचीत की थी।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार श्यामलाल यादव ने केशव प्रसाद मौर्य से पूछा, “सिराथू विधानसभा सीट पर आपकी हार 1957 में सीबी गुप्ता और 1967 में कमलापति त्रिपाठी की हार जैसी थी, कहां कमी रह गई?”

मौर्य ने अपने जवाब में कहा, “पार्टी नेतृत्व एक सीट पर चुनाव नहीं लड़ता है। उदाहरण के लिए यूपी में हम 403 सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे। और मैं अपनी विधानसभा सीट को सिर्फ डेढ़ दिन दे सका। आप मंत्री हो या प्रदेश के नेता, मतदाता को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह बस सोचते हैं, यह केशव जी हैं जो हमारे साथ बैठकर खाए-पिए और आज उनके पास वोट मांगने की भी फुरसत नहीं है। डेढ़ दिनों में आप एक विधानसभा क्षेत्र को कवर नहीं कर सकते। इस कारण यह (हार) हुआ।”

सीबी गुप्ता के साथ क्या हुआ था?

चंद्रभानु गुप्ता (CB Gupta) उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी नेता थे। ऐसा कहा जाता है कि साल 1957 में वह अपने ही दल के नेताओं की गुटबाजी के कारण हार गए थे। चंद्रभानु गुप्ता तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री थे। चंद्रभानु गुप्ता ने अपनी आत्मकथा ‘सफर कहीं रुका नहीं, झुका नहीं’ में बताया है कि कैसे गुटबाजी और अफवाह के कारण वह मौदहा सीट से चुनाव हार गए थे।

उन्होंने लिखा है, “पार्टी के ही विरोधियों ने मेरे खिलाफ पहले शत्रुघ्न सिंह को चुनाव लड़ाना चाहा। लेकिन जब वह नहीं माने तो उनकी पत्नी रानी राजेंद्र कुमार को मैदान में उतार दिया।  …मेरे साथ जो हुआ उसका मुझे सपने में भी विश्वास नहीं था। मुझे यह तो आशंका थी कि पार्टी के कई बड़े नेता मुझे हराने के लिए मेरे विरुद्ध कार्य करेंगे। पर यह आशंका नहीं थी कि सरकारी अधिकारियों को भी मेरे विरुद्ध कार्य करने के लिए उकसाया जा सकता है।”

मतदान से एक दिन पहले कुछ लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि गुप्त जी जीते तो रानी का डोला (किसी को उठाकर उससे जबरन शादी करना) उठा ले जाएंगे। यह रानी का अपमान था। बुंदेलखंड के लोग रानी का बहुत सम्मान करते थे। सीबी गुप्ता सफाई देते रहे कि इस आपत्तिजनक टिप्पणी से उनका कोई संबंध नहीं है। लेकिन कोई असर न हुआ और वह चुनाव हार गए।

कमलापति त्रिपाठी के साथ क्या हुआ था?

कांग्रेस के दिग्गज और यूपी के 7 वें सीएम कमलापति त्रिपाठी 1967 में चंदौली से एक एसएसपी उम्मीदवार से हार गए थे। अब तक यूपी के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनके शासन को उनकी अपनी पार्टी की केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन से बदल दिया गया था। त्रिपाठी यूपी के कई मुख्यमंत्रियों के मंत्रिमंडल में मंत्री रहे थे। वह 1952 में सिंचाई और सूचना मंत्री थे। 1957 में गृह, शिक्षा और सूचना मंत्री थे। उन्होंने 1969-70 के दौरान चंद्र भानु गुप्ता सरकार में डिप्टी सीएम के रूप में भी काम किया।