गांजा जिसे वीड, कैनाबिस, मारिजुआना, हिम्प आदि कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। हाल ही में थाईलैंड की सरकार ने गांजा को प्रतिबंधित ड्रग्स की सूची से हटा दिया है। इस तरह थाईलैंड एशिया का पहला ऐसा देश बन गया है जहां गांजा पीना और घर में उसकी खेती करना लीगल है। थाईलैंड सरकार ने ये कदम कोविड के बाद लचर हुई अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए उठाया है।
भारत में भी गांजा को लीगल करने की मांग उठती रही है। कांग्रेस नेता शशि थरूर और भाजपा नेता मेनका गांधी जैसा बड़े जनप्रतिनिधि भी गांजा को लीगल करने की मांग कर चुके हैं। थरूर का तर्क है कि गांजा को लीगल करने से इसके इस्तेमाल से होने वाले नुकसान में कमी आएगी, भ्रष्टाचार और अपराध का स्तर भी नीचे गिरेगा। साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। योग गुरू बाबा रामदेव भी कई मौकों पर गांजा को लीगल करने की मांग कर चुके हैं। 2017 में गांजा को लीगल करने के लिए एक बिल भी पेश किया गया था।
गांजा लीगल करने से कैसे मजबूत होगी अर्थव्यवस्था? : साल 2018 में इज़राइल स्थित एक फर्म सीडो के अपने शोध में बताया था कि मारिजुआना के उपभोग के मामले में भारतीय शहर दुनिया के टॉप-10 शहरों की सूची में शामिल हैं। मारिजुआना की खपत में नई दिल्ली तीसरे और मुंबई छठे स्थान पर है। ऐसे में अगर भारत सरकार इसे वैध करती है तो राजस्व का नया और बड़ा रास्ता खुल जाएगा। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अगर गांजा को लीगल किया जाता है तो सालाना 725 करोड़ रुपये का टैक्स सिर्फ दिल्ली से वसूला जा सकता है। मुंबई 641 करोड़ रुपये तक का टैक्स कलेक्शन हो सकता है। साल 2025 तक मारिजुआना का लीगल ग्लोबल मार्केट 33.6 बिलियन यूएस डॉलर का हो जाएगा।
कांग्रेस नेता शशि थरूर अपने एक लेख में कोलोराडो का उदाहरण देकर गांजा और अर्थव्यवस्था के रिश्ते को समझा चुके हैं। उन्होंने लिखा है, 2017 के दौरान अमेरिका के कोलोराडो में 1.5 बिलियन डॉलर मूल्य के इस उत्पाद की बिक्री की गई। कोलोराडो की जनसंख्या भारती की जनसंख्या का महज 0.4 फीसदी है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में ये कितना बड़ा कारोबार होगा।
पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण भी गांजा से अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने की बात कह चुके हैं। बालकृष्ण ने मांग की थी कि देश में गांजे के सकारात्मक प्रयोगों और लाभों पर विचार किया जाए। उन्होंने कहा था कि गांजे को अवैध घोषित कर लोगों को व्यापार के अवसरों से वंचित किया जा रहा है। आयुर्वेद में प्राचीन काल से औषधीय लाभ के लिए गांजा इस्तेमाल होता रहा है।
आयुष मंत्रालय बता चुका है कैनाबिस के फायदे
सिर्फ विदेशी संस्था ही नहीं भारत सरकार का आयुष मंत्रालय भी कैनाबिस की महिमा को मान चुका है। आयुष मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला था कि कैनाबिस के पत्ते कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के बाद कैंसर रोगियों में दर्द और अन्य लक्षणों को कम कर देते हैं। ये अध्ययन साल 2020 में सामने आया था।
इसके अलावा कई अन्य रिसर्च में कैनाबिस से ऑर्थराइटिस और एचआईवी जैसी गंभीर बीमारियों में राहत मिलने की बात कही गई है। जहां तक इसके लत लगने का सवाल है तो अल्कोहल की तुलना में गांजा के लत लगने की गुंजाइश कम होती है। अल्कोहल का एडिक्सन रेट करीब 16 प्रतिशत होता है, वहीं गांजे का एडिक्सन रेट 9 प्रतिशत।
भारत में बैन है गांजा फिर भी…
देश में भांग के अलावा मारिजुआना के सभी प्रोडक्ट पर प्रतिबंध है। नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत गांजा का सेवन करने पर 10 साल की सजा है। बावजूद इसके भारत के 670 में से 400 जिले गांजे की खेती आज भी होती है। भारत सरकार खुद मानती है कि देश में 3 करोड़ 10 लाख लोग कैनाबिस का सेवन करते हैं।