देश को अपना नया संसद भवन मिल चुका है। नए संसद भवन का आकार तिकोना है। हालांकि यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि अंग्रेज वास्तुकार हर्बर्ट बेकर पुराने संसद भवन (तब काउंसिल हाउस) को भी तिकोना ही बनाना चाहते थे। संसद का मूल डिजाइन तिकोना ही था। बेकर ने अपने डिजाइन को न सिर्फ निर्माण समिति के सामने पेश किया था, बल्कि भवन को तिकोना बनाने को लेकर मजबूत तर्क भी दिया था। फिर क्यों गोलाकार क्यों बना संसद भवन? बेकर के डिजाइन का क्या हुआ? क्यों टेंट में संसद चलाने का प्रस्ताव रखा गया?
शुरू से जानते हैं…
पुराने संसद भवन की आधारशिला करीब 100 साल पहले रखी गई थी। दरअसल, साल 1911 में जब किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सामरिक स्थिति के कारण राजधानी बनाने की घोषणा की, तब नई इमारतों की आवश्यकता पड़ी। गवर्नर जनरल का आवास (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) से लेकर विभिन्न सरकार कार्यालयों को भी बनाना था। राजधानी डिजाइन करने की जिम्मेदारी सर एडविन लुटियंस नामक एक अंग्रेज वास्तुकार को मिली।
उस दौरान यह सवाल उठा कि क्या नई राजधानी में विधान परिषद की बैठकों के लिए एक अलग भवन होना चाहिए? अंग्रेजों का विधान परिषद के लिए एक अलग भवन बनाने का कोई इरादा नहीं था। उस समय तक विधान परिषद एक सदनीय निकाय था। इसके सदस्यों की संख्या 1909 में बढ़कर 60 की गई थी। तब तक विधान परिषद की बैठकें कलकत्ता, शिमला और दिल्ली में बड़े परिषद कक्षों में आयोजित की जाती थीं।
अंग्रेज नहीं चाहते थे संसद भवन!
1912 में हाउस ऑफ कॉमन्स के एक सांसद ने इस कदम पर सवाल उठाया। उसने पूछा कि दिल्ली में विधान परिषद की बैठक कहां होगी? अंडर सेक्रेटरी ऑफ इंडिया एडविन मोंटेगू ने जवाब दिया कि विधान परिषद की बैठक गवर्नर-जनरल के आधिकारिक निवास के ही एक अलग विंग में बने हॉल में होगी। हालांकि बाद उन्हें भी विधान परिषद की बैठक के लिए एक अलग इमारत की जरूरत महसूस हुई।
ब्रिटिश वास्तुकार एडविन लुटियंस की परपोती जेन रिडले ने अपनी जीवनी में लिखा है कि लुटियंस और मोंटेगू दोनों ने गवर्नर-जनरल लॉर्ड हार्डिंग से विधान परिषद के लिए एक अलग भवन का आग्रह किया था। लेकिन हार्डिंग ने यह कहते हुए इनकार कर दिया था, “विधान परिषद की बैठक मेरे ही आवास में होनी चाहिए!”
परिणामस्वरूप, 1913 में जब लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने नई राजधानी के वास्तुकार की जिम्मेदारी संभाली, तब उन्हें केवल ‘गवर्नर जनरल हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन)’ और ‘राष्ट्रपति भवन के दो प्रमुख ब्लॉक’ को डिजाइन करना था। इसके अलावा उन्हें गवर्नर जनरल हाउस के हिस्से के रूप में एक विधान परिषद कक्ष, एक पुस्तकालय और लेखन कक्ष, एक पब्लिक गैलरी और कमेटी रूम डिजाइन करना था।
1919 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट और संसद भवन की कल्पना
छह साल बाद मोंटेग्यू और चेम्सफोर्ड के सुझाव पर साल 1919 में ‘गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट’ पारित किया गया। इसमें ही पहली बार दो सदनों की व्यवस्था की परिकल्पना की गई थी। इसका उद्देश्य प्रांतों में भी सरकारें बनाना था। अब सदस्यों की संख्या 140 होनी थी। इस सुधार ने राजधानी के योजनाकारों के सामने एक नई इमारत का सवाल खड़ा किया। एक ऐसी इमारत जिसमें दोनों सदन आपस में विचार-विमर्श कर सकें।
तंबू से लेजिस्लेटिव असेंबली चलाने का प्लान
दिल्ली की एडमिनिस्ट्रेशन ने अस्थायी आवास के लिए दो प्रस्ताव रखा। पहला यह था कि टेंट में लेजिस्लेटिव असेंबली चलाई जाए। हालांकि अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। दूसरा प्रस्ताव था किसी पुराने भवन की मरम्मत कर, उसमें असेंबली चलाने का। प्रशासन ने दूसरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और दिल्ली में सचिवालय भवन में एक बड़े विधानसभा कक्ष का निर्माण किया गया।
ये अस्थायी व्यवस्था थी। तब तक बेकर को नए काउंसिल हाउस को डिजाइन करने का काम सौंपा गया। नई इमारत में तीन चेंबर बनाने को कहा गया था, पहला- असेंबली के लिए, दूसरा- काउंसिल के लिए और तीसरा- काउंसिल ऑफ प्रिंस के लिए यानी राजकुमारों के लिए एक अलग परिषद। दरअसल, यह भारत की रियासतों को विधानमंडल की तरह का एक मंच प्रदान करने का तरीका था ताकि वह ब्रिटिश सरकार के सामने अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को रख सकें।
संसद भवन का मूल प्लान
राजधानी दिल्ली के निर्माण के लिए बनी समिति ने फैसला किया कि नई इमारत नॉर्थ ब्लॉक के नीचे रायसीना हिल के बेस पर होगी। नए काउंसिल हाउस के लिए जमीन का प्लॉट त्रिकोण के आकार का था। संसद में चेंबर भी तीन बनाने थे। ऐसे में बेकर को त्रिकोणीय इमारत तैयार करने का आइडिया आया। उनके डिजाइन में तीनों विधायी कक्ष एक केंद्रीय गुंबद से जुड़े थे।
इस समय तक, गवर्नर जनरल हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) की ओर जाने वाली सड़क के ढाल को लेकर चल रहे विवाद से, लुटियंस और बेकर के संबंध खराब हो गए थे। साल 1920 में जब बेकर ने लेजिस्लेटिव काउंसिल बिल्डिंग के लिए अपनी त्रिकोणीय डिजाइन समिति के सामने रखी, तो लुटियंस ने इसका कड़ा विरोध किया। वह एक गोलाकार इमारत चाहते थे।
बेकर ने अपने त्रिकोणीय डिजाइन का बचाव करते हुए समिति को एक लंबा ज्ञापन सौंपा। उन्होंने लेजिस्लेटिव काउंसिल बिल्डिंग के लिए रायसीना हिल से दूर एक वैकल्पिक स्थल का भी सुझाव दिया। उन्होंने गोलाकार इमारत की आलोचना करते हुए लिखा, “यह विचार करने का विषय है कि क्या भवन का यह वृत्ताकार रूप, चाहे वह अपने आप में कितना भी सुंदर क्यों न हो, राष्ट्रीय भावना को अलग छाप देगा।”
अंत में, लुटियंस ने समिति को एक गोलाकार इमारत के लिए राजी कर लिया। खुशी से लबरेज लुटियंस ने लिखा, “मुझे वह इमारत मिल गई है जहां मैं इसे चाहता हूं और जैसा आकार मैं चाहता हूं।” क्रिकेट के रूपक का इस्तेमाल करते हुए निराश बेकर ने लुटियंस को बताया कि समिति ने उन्हें “आउट” कर दिया था। बेकर ने तीनों चेम्बर को एक सर्कल में फिट करने के लिए अपने त्रिकोणीय डिजाइन को फिर से तैयार किया था। अंतिम डिजाइन में तीन अर्धवृत्ताकार कक्ष और एक बड़ा केंद्रीय हॉल था।
1921 में शुरू हुआ काम
ड्यूक ऑफ कनॉट, प्रिंस आर्थर ने 1921 में काउंसिल हाउस की इमारत की आधारशिला रखी और एक साल बाद इसकी नींव की खुदाई शुरू हुई। पूरी इमारत का व्यास 570 फीट है। भवन में 144 स्तंभों को निर्माण किया गया, प्रत्येक की लंबाई 27 फीट है।
निर्माण के लिए राजस्थान के धौलपुर से 3,75,000 क्यूबिक फीट पत्थर का खनन किया गया और ट्रेन से दिल्ली लाया गया। भवन के अंदर इस्तेमाल किया गया संगमरमर गया (बिहार) और मकराना (राजस्थान) से आया था। इमारत में इस्तेमाल के लिए लकड़ी असम, बर्मा और देश के दक्षिणी राज्यों से लाए गए थे।
जब दिल्ली में काउंसिल हाउस बन रहा था, तब ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में एक छोटा भवन भी बनाया जा रहा था। यह गर्मी के महीनों में शहर में आयोजित विधान सभा सत्रों के लिए था। भवन का उद्घाटन 1925 में हुआ था और अब यह हिमाचल प्रदेश की विधानसभा है। दिल्ली की इस बहुत बड़ी वृत्ताकार इमारत का उद्घाटन 1927 में गवर्नर-जनरल लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था।
