यशी
अब संसद सत्र नए संसद भवन में चलेगा। मौजूदा संसद को संग्रहालय में बदल दिया जाएगा। गोलाकार और स्तंभों से सुसज्जित संसद भवन लंबे समय तक न सिर्फ भारत के लोकतंत्र का बल्कि उत्कृष्ट वास्तुकला का भी प्रतीक रहा है।
हालांकि, भारत में कई शताब्दी पहले से गोल और स्तंभों वाली संरचना का चलन रहा है। कई लोग मानते हैं कि भारतीय वास्तुकला की विरासत ने ही 20वीं शताब्दी की इमारत (संसद भवन) को प्रेरित किया। पुराने संसद भवन जैसी संरचना मध्य प्रदेश के मितावली स्थित चौसठ योगिनी मंदिर की भी है।
पुरानी संसद और उसकी प्रेरणाएं
जब अंग्रेजों ने अपनी राजधानी को नई दिल्ली में स्थानांतरित करने का फैसला किया, तो ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को संसद डिजाइन करने का काम सौंपा गया। 164-स्तंभों वाली इमारत में पहली बार इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल 18 जनवरी, 1927 को चली थी, जो 15 अगस्त, 1947 तक जारी रही।
स्वतंत्रता के बाद, इसने भारत की संविधान सभा के रूप में कार्य किया। संविधान अपनाने के बाद भारत एक गणतंत्र बन गया और गोलाकार इमारत भारत की संसद बन गई।
जब नई दिल्ली की योजना बनाई जा रही थी, तब तत्कालीन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग, बिल्कुल स्पष्ट थे कि इमारतों में भारतीय तत्व होने चाहिए। इमारत भारतीयों पर थोपी गई नहीं लगनी चाहिए। लुटियंस पश्चिमी वास्तुकला की श्रेष्ठता को आश्वस्त थे लेकिन हार्डिंग ने लुटियंस और बेकर दोनों को प्रेरणा के लिए उत्तरी और मध्य भारत के अधिकांश प्राचीन और मध्ययुगीन स्थलों, जैसे मांडू, लाहौर, लखनऊ, कानपुर और इंदौर का दौरा कराया। इस प्रकार, संसद, राष्ट्रपति भवन और अन्य इमारतें भारतीय और पश्चिमी शैली की वास्तुकला का मिश्रण हैं।
चौसठ योगिनी मंदिर और उसके रहस्य
भव्य चौसठ योगिनी मंदिर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में ग्वालियर से लगभग 40 किलोमीटर दूर मितावली में एक पहाड़ी के ऊपर है। मुरैना जिले की वेबसाइट के अनुसार, इसका निर्माण 1323 के आसपास कच्छपघात वंश के राजा देवपाल ने करवाया था। 64 योगिनियों को समर्पित, इसकी वास्तुकला एक देवता को समर्पित मंदिरों से अलग है।
माना जाता है कि 64 योगिनियां शक्तिशाली योद्धा और जादूगरनी थीं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक राक्षस को रक्तबीज का वरदान प्राप्त था। उसे मारना लगभग असंभव था – जब भी उसके खून की एक बूंद जमीन पर गिरती थी, तो उससे सैकड़ों राक्षस पैदा हो जाते। जब देवी दुर्गा उससे युद्ध करने गईं, तो उन्होंने 64 योगिनियों की एक सेना को तैनात की, जिन्होंने जमीन पर गिरने से पहले ही खून को पी लिया और राक्षस अंततः मारा गया।
चौसठ योगिनी मंदिर गोलाकार है। उसमें 64 कक्ष हैं जो 64 योगिनियों को समर्पित हैं। एक केंद्रीय मंदिर शिव को समर्पित है। अधिकांश हिंदू मंदिरों में एक शिखर या उभरा हुआ गुंबद होता है लेकिन चौसठ योगिनी मंदिर हाइपेथ्रल है, जिसका अर्थ है कि इसमें कोई छत नहीं है। संसद जैसे स्तंभ मंदिर परिसर में अंदर की तरफ हैं। अतिरिक्त वर्षा जल की निकासी के लिए केंद्रीय मंदिर में छिद्रयुक्त एक स्लैब है। मध्य प्रदेश सरकार के पर्यटन पोर्टल पर मौजूद एक लेख के अनुसार, मंदिर का व्यास 125 फीट है।
वे मूर्तियां और नक्काशी जो कभी 64 कक्षों की शोभा बढ़ाती थीं, वे सभी नष्ट हो गई हैं। इसलिए मंदिर के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। हालांकि, मुरैना जिले की वेबसाइट का कहना है कि इस परिसर का उपयोग संभवतः ज्योतिष और गणित के अध्ययन के लिए भी किया जाता था। आज, यह मंदिर अपने रहस्यों को समेटे हुए, एकांत में पहाड़ी चोटी पर राजसी और रहस्यमयी तरह से खड़ा है।
क्या चौसठ योगिनी मंदिर ने संसद को प्रेरित किया?
क्षेत्र के स्थानीय लोग ऐसा मानते हैं कि चौसठ योगिनी मंदिर ने संसद को प्रेरित किया। हालांकि इसका कोई सबूत नहीं है कि लुटियंस या बेकर ने कभी यहां का दौरा किया था। एमपी पर्यटन वेबसाइट पर मौजूद लेख कहता है, “चौसठ योगिनी मंदिर भूकंपीय क्षेत्र 3 में है। 1300 के दशक में अपने निर्माण के बाद से, मंदिर ने कई भूकंपों का सामना किया है और लगभग कोई क्षति देखने को नहीं मिली है। इसी वजह से यह माना जाता है कि लुटियंस ने ऐसे असामान्य आकार की इमारत से प्रेरणा ली होगी।
इतिहासकार स्वप्ना लिडल ने पहले द इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, “लुटियंस और बेकर को भारतीय वास्तुकला के उदाहरण देखने के लिए दौरे पर भेजा गया था। उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एकत्र की गई तस्वीरें भी देखी होंगी। इसलिए भले ही उनके द्वारा भारतीय स्मारकों से प्रेरणा लेने का कोई सबूत नहीं है, लेकिन यह समझ से परे नहीं है कि उन्होंने ऐसा किया होगा।”
सोमवार (17 सितंबर) को लिडल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बेकर ने विभिन्न स्थलों का दौरा किया, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने यहां का दौरा किया था। बेशक उन्होंने तस्वीरें देखी होंगी, हालांकि फिर भी इसका कोई ठोस सबूत नहीं है।”