हरियाणा की सिरसा लोकसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 2019 में भाजपा पहली बार बड़ी आसानी से यह सीट जीत गई थी। तीन लाख वोट के भारी अंतर से। लेकिन, इस बार उसे खूब पसीना बहाना पड़ रहा है।
किसानों के विरोध का सबसे ज्यादा असर हरियाणा के जिन संसदीय क्षेत्रों में है, उनमें हिसार प्रमुख है। पंजाब से सटा होने के कारण किसान आंदोलन का असर हिसार में ज्यादा दिख रहा है।
भाजपा के प्रत्याशी अशोक तंवर को लगातार किसाानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। खास कर ग्रामीण इलाकों में। तंवर चार साल में चार पार्टी बदल चुके हैं। उनकी जीत के लिए योगी आदित्यनाथ तक वोट मांग चुके हैं और कई बड़े नेता भी लगे हुए हैं।
बीजेपी का विरोध कर रहे किसान
पंजाब में भी भाजपा को लगातार किसानों का विरोध झेलना पड़ रहा है। बुधवार को बठिंडा में गोनियाना मंडी के गांव महिमा सरजा में भी भाजपा उम्मीदवार परमपाल कौर मलूका को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। वह वहां प्रचार के लिए गई थीं। किसान उनसे अपने सवालों के जवाब लेने के लिए उनके पास जाने पर अड़े थे। लेकिन 150-200 पुलिसकर्मियों ने किसानों को कार्यक्रमस्थल से 50 मीटर दूर ही रोक लिया। पुलिस और किसानों के बीच धक्कामुक्की भी हुई।

किसानों के विरोध से कांग्रेस उत्साहित
किसानों के विरोध से कांग्रेस उत्साहित है। उसे लगता है 20 साल बाद सिरसा लौटीं कुमारी सैलजा को इससे जीतने में बड़ी मदद मिलेगी। कांग्रेस को यह भी लगता है कि पिछली बार भाजपा की बड़ी जीत बालाकोट एयरस्ट्राइक की वजह से हुई थी। इस बार ऐसा कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है।
कांग्रेस ने प्रचार के लिए अंतिम दिन 23 मई को प्रियंका गांधी को भी प्रचार के लिए उतार दिया। लेकिन, यहां दोनों पार्टियों का चुनावी समीकरण ‘चौटाला फैक्टर’ पर भी काफी हद तक निर्भर है।

चौटाला परिवार का होम टाउन है सिरसा
सिरसा चौटाला परिवार का गृह जिला है। लिहाजा अपने घर में आगे रहने की होड़ में वह पीछे छूटना नही चाहेंगे। दुष्यंत चौटाला की जजपा ने रमेश खटक को उम्मीदवार बनाया है। पिछली बार जजपा को 95,941 वोट मिले थे। इनेलो के चरणजीत सिंह रेड़ी ने भी 2019 में 88 हजार वोट हासिल किए थे। ऐसे में इस बार भी इन दोनों पार्टियों के प्रदर्शन का असर भाजपा और कांग्रेस के जीत के समीकरण पर पड़े बिना नहीं रह सकेगा।
सिरसा जेल की सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह की वजह से भी चर्चा में रहता है। माना जाता है कि यहां मतदान में डेरा का भी असर रहता है। लेकिन, अभी इस फैक्टर की चर्चा नहीं हो रही है।